Coaching Centre (Representative Image)
Coaching Centre (Representative Image) चंडीगढ़ के सेक्टर 20 मार्केट में एक कमरे की कक्षा में एक साइनबोर्ड लगा हुआ है जिसपर लिखा है, "जहां पढ़ाई ईमानदारी की शपथ के साथ शुरू होती है.. जीपी सर की क्लास... जीपी सर के साथ कानून सीखें." पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के वकील और बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष, चौसठ वर्षीय गुरिंदर पाल सिंह, कक्षा में एक व्हाइटबोर्ड के पास खड़े होकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं. इनमें से अधिकांश बच्चे पंजाब के ग्रामीण और गरीब परिवारों से हैं. गुरिंदर इन बच्चों को पंजाब सिविल सेवा (न्यायिक) परीक्षा के लिए निःशुल्क ट्रेनिंग देते हैं. "जीपी सर की क्लास" के जरिए गुरिंदर इस बार अद्भुत काम करने में कामयाब रहे. PCS(J)का परिणाम आने के बाद उनके तेरह छात्रों ने पीसीएस न्यायिक परीक्षा उत्तीर्ण की है जो आगे चलकर मजिस्ट्रेट/सिविल जज बनेंगे.
जिन छात्रों ने इस बार परीक्षा उत्तीर्ण की है उनमें कपूरथला के एक ऑटो चालक की बेटी शिवानी, मलेरकोटला के एक पिकअप ड्राइवर की बेटी गुलफ़ाम सय्यद, रमनदीप कौर, संगरूर के एक मजदूर की बेटी, परमिंदर, मोहाली के एक सुरक्षा गार्ड की बेटी, किरणदीप, खरड़ की एक विधवा फैक्ट्री कर्मचारी की बेटी, मनमोहन प्रीत, पठानकोट के एक किसान की बेटी, सतनाम सिंह, होशियारपुर के एक पूर्व सैनिक की विधवा का बेटा और शिवप्रीत, जो राजपुरा में एक हाशिए के समुदाय से हैं शामिल हैं. इन सभी ने गुरिंदर पाल सिंह से फ्री में ट्रेनिंग ली थी. अब दूसरे ट्रेनिंग संस्थानों गुरिंदर पाल सिंह की ट्रेनिंग कितनी अलग है, आइए जानते हैं.
बच्चों को लेनी होती है प्रतिज्ञा
गुरिंदर सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “मेरी कक्षा में प्रवेश करने से पहले, यहां प्रत्येक छात्र को सत्यनिष्ठा की शपथ लेनी होती है. उन्हें राम, अल्लाह या वाहेगुरु, जिस भी भगवान में विश्वास हो, उसे याद रखना होगा और शपथ लेनी होती है कि न्यायाधीश बनने के बाद वे कभी भ्रष्टाचार नहीं करेंगे या रिश्वत नहीं लेंगे. मैं उनसे कहता हूं कि इस देश में आशा का एकमात्र स्तंभ न्यायपालिका है और अगर वे न्यायाधीश बनने के बाद बेईमान हो गए और मुझे इसके बारे में पता चला, तो मैं उन्हें गोली मार दूंगा और फिर खुद को गोली मार लूंगा. मैं जानता हूं कि यह अति है लेकिन इस तरह मैं उनके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ता हूं. बच्चे गुरिंदर को एक शिक्षक से भी अधिक अपना पिता/भाई मानते हैं. गुरिंदर का मानना है कि कानून और अधिनियम वही रहेंगे और कोई भी उन्हें पढ़ा सकता है, लेकिन मैं उन्हें प्रेरित करने के लिए ही यहां आता हूं. सवाल इस बारे में नहीं है कि आप क्या पढ़ाते हैं, यह इस बारे में है कि आप कैसे पढ़ाते हैं.''
शेरपुर गांव की 32 वर्षीय रमनदीप कौर ने कहा कि उसके पिता एक मजदूर थे और वह उसके लिए निजी कोचिंग का खर्च उठाने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. इस बार यह उसका तीसरा प्रयास था. पिछले साल ही एक दोस्त ने रमनदीप को जीपी सर की क्लास के बारे में बताया और वो चंडीगढ़ आ गई. रमनदीप ने जीपी सर की क्लास ज्वाइन करने के एक साल के भीतर इस एक्जाम को पास कर लिया. जीपी सर की क्लास में इस तरह के कई उदाहरण हैं.
पत्नी भी वकील हैं
हालांकि उनकी क्लास में पढ़ने वाले सभी बच्चे वंचित या गरीब नहीं है. जो बच्चे अपनी फीस भर सकते हैं वो देते हैं और इससे गरीब बच्चों की मदद की जाती है. करेंट बैच में लगभग 50 प्रतिशत ऐसे छात्र है जो फीस नहीं दे रहे हैं. बच्चे एक दूसरे की मदद करते हैं. अन्य बच्चे जो फीस देते हैं उससे हम उन बच्चों के कमरे का किराया, बिजली और अन्य खर्चों का भुगतान करते हैं जो इसे देने में असमर्थ है. यह एक तरीके का सेल्फ-फाइनेंस मॉडल है. इसके अलावा, मैं और मेरी पत्नी भी इन छात्रों को सपोर्ट करते हैं. गुरिंदर की पत्नी सुषमा सिंह भी एक वकील हैं.इस कोचिंग की शुरुआत साल 2019 में हुई थी जब गुरिंदर को दो छात्र ऐसे मिले थे जो अपनी फीस का भुगतान नहीं कर पाए थे और इस वजह से उन्हें कोचिंग छोड़नी पड़ी थी.