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Library of Honesty: 30 साल के इस शख्स ने शुरू की ईमानदारी की लाइब्रेरी...24 घंटे खुली रहती है, नहीं लगता कभी ताला

पहल छोटी हो या बड़ी लेकिन अगर इरादे मजबूत हो तो वो जरूर कामयाब होती है. ऐसी ही एक लाइब्रेरी है "लाइब्रेरी ऑफ ऑनेस्टी" यानी की ईमानदारी की पुस्तकालय खोली है जिसमें कोई भी आकर किताब पढ़ और दान दे सकता है वह भी बिना किसी पैसे और खर्च के.

Library of Honesty Library of Honesty

यह छोटी सी लाइब्रेरी सैकड़ों और हजारों के लिए उम्मीद की एक नई राह और रास्ता है. इस लाइब्रेरी के ब्रेन चाइल्ड 30 साल के संदीप कुमार हैं. संदीप ने कहा जिन किताबों को पढ़कर बहुत से लोगों ने अपने सपने पूरी किए हैं हम चाहते हैं कि इन किताबों को पढ़कर जरूरतमंद बच्चों भी अपने सपने पूरे करें और नई उड़ान और ऊंचाइयां छूएं. यह लाइब्रेरी 24 घंटे खुली रहती हैं वह भी बिना किसी ताले से.

क्या है काम?
संदीप कुमार ने गुड न्यूज़ टुडे से खास बातचीत में बताया कि इस लाइब्रेरी में जितनी भी किताबें हैं वह सारी किताबें पहले लोगों द्वारा पढ़ी हुई हैं और लोगों द्वारा ही दान की गई हैं. हमने एक पहल की है जिसमें हमने ईमानदारी की लाइब्रेरी को पढ़ने और बढ़ाने का प्रयास किया है. हमारा सिर्फ यह प्रयास है कि हम बेकार पड़ी हुई किताबें यानी की जिन किताबों को पढ़ने के बाद अक्सर लोग रद्दी में फेंक देते हैं, उन किताबों को इकट्ठा करके जरूरतमंदों तक पहुंचने का प्रयास करते हैं. उसमें चाहे सिलेबस यानी कि एकेडमिक्स की किताबें हो या फिर स्टेशनरी का समान हो उन तमाम चीजों को हम अलग करके उन्हें स्कूल के बच्चों तक पहुंचाते हैं. वहीं नोवेल्स या फिर दूसरी किताबों की लाइब्रेरी बनाकर उसमें रख देते हैं.

संदीप कुमार ने बताया कि यह एक छोटा सा प्रयास है जिसमें हमने ट्राई सिटी यानी कि पंचकूला चंडीगढ़ और मोहाली में 6 जगह पर ईमानदारी की लाइब्रेरी लगाई है. इसके बहुत ही सकारात्मक और अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं. लोग indirectly जरूरतमंदों तक इन किताबों को पहुंच रहे हैं. संदीप ने बताया कि 2016 में उन्होंने इस पहल की शुरुआत की थी और धीरे-धीरे कब यह छोटी सी पहल बड़े ही इतनी बड़ी हो गई पता ही नहीं चला.

क्या है पहल का मूल मंत्र?
संदीप कुमार से जब हमने पूछा कि क्या आपको लगता है कि जो लोग इस लाइब्रेरी से किताबें ले जाते हैं वह सभी लोग ईमानदारी से उन किताबों को वापस करते हैं ??  तो संदीप कुमार ने बताया कि अगर 10 लोग किताब लेकर जाते हैं तो पढ़ने के बाद सिर्फ तीन लोग किताब वापस नहीं करते जबकि सात लोग ईमानदारी से किताब पढ़ने के बाद वापस करते हैं. लेकिन वह सात लोग इतनी किताबें वापस करते हैं कि उन तीन लोगों की कमी भी पूरी हो जाती है. संदीप बताते हैं समाज में हर किस्म के लोग हैं जब लोग हमारी ईमानदारी पर विश्वास कर रहे हैं तो हमें भी लोगों पर विश्वास करना चाहिए. कहीं ना कहीं से हमें विश्वास करना पड़ेगा यही हमारी इस पहल का मूल मंत्र है.

संदीप बताते हैं कि आने वाले दिनों में जैसे-जैसे लोग उनकी मुहिम के साथ आगे जुड़ेंगे और किताबें इकट्ठी होगी तो उनका सपना है कि वह शहर के बाहर बसे हुए झुग्गी झोपड़ियां तक अपनी इस मुहिम को पहुंचाना चाहते हैं जिससे वहां पर जरूरतमंद बच्चों को लाइब्रेरी मिल सके. वह बच्चे भी इन किताबों को पढ़कर अपने सपने पूरे कर सकें. 

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