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जानिए क्या है Fulltime Grandchildren ट्रेंड... नहीं मिली नौकरी तो दादा-दादी की सेवा कर रहे हैं चीन के युवा... बदले में मिल रही सैलरी

Fulltime Grandchildren का चलन एक तरफ युवाओं की बेरोजगारी की समस्या का समाधान देता है, वहीं दूसरी ओर बुजुर्गों की अकेलेपन की बढ़ती समस्या को भी दूर करता है.

What is Fulltime Grandchildren trend? What is Fulltime Grandchildren trend?

जैसे-जैसे चीन में नौकरी का संकट गहराता जा रहा है, एक नया चलन तेजी से वायरल हो रहा है. यहां युवा ‘फुल-टाइम पोता/पोती’ बन रहे हैं, यानी बेरोजगार युवा अपने बुजुर्ग दादा-दादी या नाना-नानी की देखभाल के लिए घर लौट रहे हैं और इसी को अपना पूरा समय दे रहे हैं. 

यह चलन एक तरफ युवाओं की बेरोजगारी की समस्या का समाधान देता है, वहीं दूसरी ओर बुजुर्गों की अकेलेपन की बढ़ती समस्या को भी दूर करता है. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, ये ‘फुल-टाइम पोते-पोतियां’ अपने बुजुर्ग या विकलांग परिजनों को साथ रहते हुए उनका साथ देते हैं, भावनात्मक सहारा देते हैं और रोजमर्रा के कामों में मदद करते हैं. 

बच्चों से ज्यादा पोते-पोतियों में सेवा-भाव

रिपोर्ट के मुताबिक, जहां "फुल-टाइम चाइल्ड" यानी बच्चे अपेन माता-पिता के साथ ज्यादा समय तब बिताते हैं जब वे स्वस्थ होते हैं लेकिन जैसे-जैसे माता-पिता की उम्र बढ़ती है तो उनके बच्चों के अपनी जिंदगी में जिम्मेदारियां बढ़ने लगती हैं और वे उनका इतना ख्याल नहीं रख पाते हैं जितना ये पोते-पोतियां रख रहे हैं. 

एक 26 वर्षीय युवती, जो पोस्टग्रेजुएट और सिविल सेवा परीक्षा पास नहीं कर सकी और नौकरी नहीं मिल रही थी, अपने नाना के बुलावे पर घर लौट आई. उसके नाना ने कहा, “अगर तुम मेरी अच्छे से देखभाल करोगी और मुझे कुछ साल और जीने का मौका दोगी, तो यह दुनिया के किसी भी काम से बेहतर है.”

अब वह युवती अपने नाना की 10,000 युआन (लगभग 1.15 लाख रुपये) की पेंशन में से हर महीने 7,000 युआन (83000 रुपये) लेती है.

बेरोजगारी से उपजा चलन

यह नया ट्रेंड चीन में गंभीर युवाओं की बेरोजगारी की समस्या से जुड़ा हुआ है. अप्रैल में 16 से 24 वर्ष की उम्र के युवाओं की शहरी बेरोजगारी दर 15.8% थी, यानी हर 6 में से 1 युवा बेरोजगार था. और जब इन बच्चों के पास नौकरी नहीं थी तो इनके दादा-दादी या नाना-नानी इन्हें अपने घर पर रख रहे हैं और इनका खर्च उठा रहे हैं. बदले में उन्हें सेवा और साथ मिल रहा है. 

जीवन के नए रोल में ढलते युवा

हालांकि, पहले ये युवा अपने घरों में लाड़-प्यार से पले थे, लेकिन अब वे जल्दी ही अपने नए रोल में ढल जाते हैं. वे अस्पतालों के चक्कर लगाते हैं, दवाइयों का ध्यान रखते हैं, रूटीन का ख्याल रखते हैं और घर की जिम्मेदारियों को निभाते हैं. 

कुछ अपने बुजुर्गों को हेल्दी लाइफस्टाइल की ओर प्रेरित करने के लिए उन्हें मिल्क टी शॉप्स ले जाते हैं, छोटी-छोटी आउटिंग्स को मज़ेदार अनुभव बनाते हैं. कुछ युवा जानते हैं कि उनके दादा-दादी खर्च करने में संकोच करते हैं, इसलिए वे उन्हें ट्रेंडी रेस्टोरेंट में खाना खिलाते हैं. 

इमोशनल सपोर्ट है ज्यादा बड़ी जरूरत

बुजुर्गों को इन युवाओं की जरूरत अपने किसी काम से ज्यागा इमोशनल सपोर्ट के लिए है. बहुत से बुजुर्ग अपने काम खुद करना पसंद करते हैं, इसलिए इन युवाओं की भूमिका मुख्य रूप से भावनात्मक और मानसिक सहारे की होती है. ये बच्चे उनका अकेलापन दूर करते हैं. उन्हें जीवन की ढलती शाम में एक सहारा मिल जाता है. 

अपनी दादी की देखभाल करने वाले एक युवक ने एससीएमपी को बताया कि नौकरी से ज्यादा उनके लिए यह काम अच्छा है. ऑफिस में झूठ ज्यादा है लेकिन यहां अगर वह रात को किसी चीज़ की इच्छा जाहिर करत हैं तो उनकी दादी सुबह तक उसे पूरा कर देती हैं. वहीं, एक ग्रैंडचाइल्ड का कहना है कि उनके दादा-दादी की उम्र कम हो रही है. वह आगे चलकर बोनस कमा सकते हैं, लेकिन उनके साथ बिताया गया समय अगर खो गया, तो दोबारा नहीं मिलेगा. 

सोशल मीडिया पर हो रही चर्चा 

यह ट्रेंड सोशल मीडिया पर भी काफी चर्चा का विषय बना हुआ है. एक यूज़र ने कहा, “बुजुर्गों की देखभाल के लिए किसी को बाहर से हायर करना महंगा है. अगर परिवार के सदस्य यह जिम्मेदारी निभाएं, तो ज्यादा बेहतर है.” लेकिन एक यूजर ने सवाल उठाया, ‘फुल-टाइम ग्रैंडचाइल्ड’ बनने के लिए हालात बहुत खास होने चाहिए. कितने लोगों के दादा-दादी के पास इतनी पेंशन होती है कि पोते को वेतन दे सकें? मेरे दादा किसान हैं और उनकी पेंशन सिर्फ 100 युआन (1,150 रुपये) है.”