
eco friendly thermocol
eco friendly thermocol दिल्ली के मैकेनिकल इंजीनियर अर्पित धूपड़ ने ऐसा काम कर दिखाया है, जिसे पढ़कर समझ आएगा कि नवाचार किसे कहते हैं. अर्पित ने 2020 में धराक्षा नाम की कंपनी शुरू की. इसका मतलब है धरा + रक्षा यानी धरती की सुरक्षा. उनका मकसद था वायु प्रदूषण रोकना और पराली को जलने से बचाकर उसका बेहतर उपयोग करना. आज उनकी लैब में तैयार माईसीलियम पराली से मिलने के बाद एक ऐसा प्रोडक्ट बनाता है, जो थर्माकोल जैसा दिखता भी है और काम भी आता है. अच्छी बात ये है कि ये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है.
शुरुआत मशरूम उगाने से की थी
अर्पित बताते हैं कि शुरुआत में उन्होंने पराली से मशरूम बनाना शुरू किया था. लेकिन जल्दी ही उन्हें महसूस हुआ कि यह मॉडल बहुत स्केलेबल नहीं है. तभी उन्होंने पराली और मशरूम यानी माईसीलियम पर गहरी रिसर्च शुरू की. इसी दौरान उन्हें पता चला कि माईसीलियम पराली में मिलकर एक मजबूत, हल्का और पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल मैटीरियल बना सकता है, जिसका इस्तेमाल पैकेजिंग में थर्माकोल की जगह किया जा सकता है.
अर्पित कहते हैं, 'हमें थर्माकोल से होने वाले नुकसान का पर्यावरण पर कितना बड़ा असर पड़ता है, यह दिखता नहीं, लेकिन हवा, मिट्टी और पानी तीनों को यह बर्बाद करता है. हमने इसका क्लीन अल्टरनेट बनाया.'
हर महीने 100 टन पराली बचा रहे
धराक्षा के प्लांट में हर महीने 100 टन पराली को जलने से बचाया जाता है. यानी साल में 1200 टन पराली के धुएं को हवा में घुलने से रोक दिया जाता है. अर्पित दावा करते हैं, 'हम हर महीने लगभग 3100 करोड़ लीटर हवा को पॉल्यूशन से बचा रहे हैं. पराली जलने से पैदा होने वाला स्मॉग सिर्फ दिल्ली नहीं, पूरे उत्तर भारत को प्रभावित करता है. हमारा लक्ष्य है इसे इंडस्ट्री के इस्तेमाल लायक बनाना.'

माईसीलियम थोड़ा महंगा लेकिन नुकसान बचाता है
अर्पित बताते हैं कि उनका माईसीलियम-आधारित प्रोडक्ट थर्माकोल से थोड़ा महंगा जरूर है, लेकिन कंपनियों के लिए ज्यादा फायदेमंद है. वे उदाहरण देकर बताते हैं मान लीजिए एक कंपनी 4,000 रुपए की ग्लास प्रोडक्ट भेज रही है. अगर थर्माकोल उसे ठीक से सुरक्षित नहीं रख पाया और ग्लास टूट गया, तो ट्रांसपोर्ट और रीप्लेसमेंट मिलाकर 8-10 हजार का नुकसान होता है. हमारा पैकेजिंग प्रोडक्ट ग्लास को पूरी तरह सेफ रखता है, इसलिए कंपनियां इसे पसंद कर रही हैं. इसके अलावा यह प्रोडक्ट न जलता है, न नमी पकड़ता है. टिकाऊ है और पूरी तरह प्राकृतिक है.
गमले में डालो खाद बन जाएगी
माईसीलियम पैकेजिंग के साथ वे एक पौधे का बीज भी डालकर देते हैं. अगर ग्राहक चाहे तो इसे गमले में डाल दे. यह मिट्टी में मिलकर खाद बन जाती है. अगर यह लैंडफिल में भी पहुंच जाए, तो भी पूरी तरह डीग्रेड होकर मिट्टी का हिस्सा बन जाती है. यानी इस प्रोडक्ट का पर्यावरण पर जीरो नुकसान है.
शार्क टैंक में फंड नहीं, एक्सपर्ट एडवाइज लेने गए
अर्पित 'शार्क टैंक इंडिया' में भी पहुंचे थे. लेकिन वे फंड नहीं एक्सपर्ट एडवाइज लेने गए थे. उन्होंने शो में मौजूद शार्क से सिर्फ 100 घंटे मांगे, जो उन्हें मिल भी गए. अर्पित कहते हैं कि अगले कुछ सालों में वे अपने प्लांट्स बढ़ाने वाले हैं. उम्मीद यही कि शायद एक दिन ऐसा आए जब पराली का अधिकतर इस्तेमाल इस तरह के प्रोडक्ट बनाने में हो ताकि हमारी हवा जहरमुक्त हो जाए.