
अब तक थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली फ्लाई ऐश (राख) को एक इंडस्ट्रियल कचरा और पर्यावरणीय के लिए बोझ माना जाता था, लेकिन नई रिसर्च के अनुसार यह खेती के लिए एक उपयोगी संसाधन बन सकती है. भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (IISS) सहित देश के पांच प्रमुख अनुसंधान केंद्रों की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि फ्लाई ऐश मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने और फसल उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.
एनटीपीसी की पहल और वैज्ञानिक अध्ययन
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) ने 2021 में फ्लाई ऐश के खेती में इस्तेमाल पर एक 10 साल की साइंटिफिक स्टडी की शुरुआत की थी. यह स्टडी भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान के नेतृत्व में भोपाल, झांसी, भुवनेश्वर, दिल्ली और मोहनपुर (पश्चिम बंगाल) में की जा रही है. इन सभी स्थानों की मिट्टी अलग-अलग तरह की है, लेकिन हर जगह फ्लाई ऐश के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं. खासकर जलोढ़ मिट्टी वाले इलाकों में धान की उपज में अच्छी बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
वैज्ञानिकों के अनुसार यह रिसर्च अभी ‘अल्पकालिक श्रेणी’ में है, लेकिन अब तक के नतीजे सकारात्मक है. फ्लाई ऐश की नियंत्रित मात्रा मिलाने से न सिर्फ मिट्टी की संरचना में सुधार हुआ है, बल्कि फसल की उपज में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के ऊंचाहार पावर प्लांट के पास हुए प्रयोग में गेहूं और धान की पैदावार में 30% तक की बढ़ोतरी देखी गई.
फ्लाई ऐश में पौधों के लिए जरूरी तत्व
फ्लाई ऐश में फॉस्फोरस, कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, सल्फर जैसे पोषक तत्वों के साथ-साथ आयरन, मैंगनीज, जिंक, कॉपर, बोरॉन और कोबाल्ट जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व मौजूद होते हैं. यह अम्लीय मिट्टी की पीएच वैल्यू को संतुलित करने में भी मददगार है. हालांकि, इसमें जैविक कार्बन और नाइट्रोजन की कमी होती है, जिसे दूसरे तरीकों से पूरा किया जा सकता है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. दिनेश तोमर के अनुसार, 2022 की सीईआर रिपोर्ट बताती है कि देश में जितनी फ्लाई ऐश उत्पन्न होती है, उसका सिर्फ 0.3% ही कृषि में प्रयोग हो रहा है यानी लगभग 0.07 मीट्रिक टन. यह आंकड़ा बेहद कम है.
मिट्टी के प्रकार और लाभ
फ्लाई ऐश का कैल्शियम चिकनी मिट्टी में सोडियम को विस्थापित कर मिट्टी की संरचना बेहतर बनाता है, जबकि रेतीली मिट्टी में यह छोटे छिद्र बढ़ाकर जल धारण क्षमता सुधारता है. भोपाल की सिकुड़ने और फूलने वाली काली मिट्टी में भी यह सिल्ट की मात्रा बढ़ाकर मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करता है.
सतर्कता है जरूरी
हालांकि, फ्लाई ऐश में अनेक लाभकारी तत्व होते हैं, लेकिन इसमें भारी धातुएं और विषैले अवशेष भी मौजूद हो सकते हैं. इसलिए वैज्ञानिकों ने इसके नियंत्रित और संतुलित उपयोग की सलाह दी है. यह तकनीक तभी पूरी तरह से विश्वसनीय मानी जाएगी जब इसके लॉन्ग-टर्म परिणाम सभी तरह की मिट्टियों और फसलों पर साबित हो जाएंगे.
भविष्य की संभावनाएं
फ्लाई ऐश अब केवल राख नहीं, बल्कि कृषि में नई क्रांति लाने वाला घटक बन सकता है. जरूरत है तो बस इसके संतुलित और वैज्ञानिक उपयोग की.