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भगवान बुद्ध के चरणों में चढ़े फूलों की खुशबू से महकेगा घर-आंगन, गया में शुरू हुआ फूलों से अगरबत्ती बनाने का काम

वन विभाग द्वारा भगवान पर चढ़ाए गए फूलों से अगरबत्ती बनाने का काम पूरी तरह से हस्तनिर्मित है. शाम के समय वन विभाग की गाड़ी से बोधगया के प्रत्येक मंदिर से बासी फूलों को उठाया जाता है. साथ ही मंगला गौरी मन्दिर से भी फूलों को लाया जाता है. इन फूलों को सुखाकर उसका पाउडर बनाया जाता है. इसके बाद इसकी अगरबत्ती तैयार की जाती है.

Agarbatti making from waste flowers Agarbatti making from waste flowers
हाइलाइट्स
  • बासी फूलों को जमा कर बनाई जा रही अगरबत्ती

  • सैनिटरी नैपकिन बनाने का भी किया जा रहा काम

भगवान के दर्शन करना और उनके चरणों में फूल चढ़ाना आम तौर पर सभी की दिनचर्या में होती है. चढ़ाए हुए फूल अगले दिन कचरे में फेंक दिए जाते हैं या फिर नदी में प्रवाहित किए जाते हैं. इन्हीं फूलों से दोबारा खुशबू महकाने का काम अमरिका पीपुल यूएसएईडी व बिहार सरकार के पयार्वरण, वन एवं जलवायु परिवतर्न विभाग कर रहे हैं. वन विभाग इन फूलों का दोबारा उपयोग कर अगरबत्ती बनाने का काम स्थानीय महिलाओं के सहयोग से कर रहा है. जिसके लिए वन विभाग ने ढ़ुंगेश्वरी के पास एक प्लांट भी बनाया है. यहां महिलाओं के लिए सेनेटरी नैपकिन भी बनाया जा रहा है. ढ़ुंगेश्वरी के आस-पास रहने वाली 20 से 25 महिलाएं इसमें काम कर रही हैं. इस तरह इन महिलाओं को अपने गांव के दायरे में रहने के साथ रोजगार भी मिल गया है. महिलाओं को अगरबत्ती के लिए 10 दिनों व सेनेटरी नैपकिन के लिए दो दिनों का प्रशिक्षण भी दिया गया है.  

बासी फूलों को जमा कर बनाई जा रही अगरबत्ती
वन विभाग द्वारा भगवान पर चढ़ाए गए फूलों से अगरबत्ती बनाने का काम पूरी तरह से हस्तनिर्मित है. शाम के समय वन विभाग की गाड़ी से बोधगया के प्रत्येक मंदिर से बासी फूलों को उठाया जाता है. साथ ही मंगला गौरी मन्दिर से भी फूलों को लाया जाता है. इन फूलों को सुखाकर उसका पाउडर बनाया जाता है. इसके बाद इसकी अगरबत्ती तैयार की जाती है. आरण्यक अगरबत्ती के नाम से अगरबत्ती को मार्केट में उतारा गया है. पूरे निमार्ण कार्य में कहीं भी कोयला और चारकोल का प्रयोग नहीं होता है. फिलहाल वन विभाग व सरकारी स्टॉल सहित बाजार की कई दुकानों में अगरबत्ती का स्टॉल लगाया गया है. यह सारे उत्पादन हर्बल होने से उम्मीद की जा रही है कि लोग इन्हें पसंद करेंगे. बेकार फूलों को डालने के लिए मंदिर की ओर से महाबोधि मंदिर के विभिन्न जगहों में कूड़ेदान लगाए गए हैं. सभी कूड़ेदानों पर आकषर्क ढंग से लिखा है कि रास्ते में पड़े फूलों को कूड़ेदान में डालें. इससे किसी की आस्था को ठेस भी नहीं पहुंचती और फूलों को जगह तक पहुंचने में आसानी भी होती है.

सैनिटरी नैपकिन बनाने का भी किया जा रहा काम
मंदिरों से निकलने वाले फूलों के साथ पत्तियां व अन्य चीजें शामिल होती हैं, इसलिए कचरे से फूलों को अलग किया जाता है. इन फूलों को पहले बेहतर तरीके से धोया जाता है. उसके बाद इन्हें पंखे के नीचे सुखाकर उसका ग्रेंडर मशीन के द्वारा पाउडर बनाया जाता है. इस पाउडर के साथ अन्य मसाले मिलाकर अगरबत्ती व धूप बत्ती बनाई जाती है. इनसे होली के रंग बनाने में भी सफलता मिली है. साथ ही महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिन बनाने का काम 9 महिलाओं की देख-रेख में किया जा रहा है. फूलों से अगरबत्ती बनाने में सफल होने के बाद इससे धूप बत्ती बनाने में सफलता मिल गई है. अगरबत्ती और धूप बत्ती को लोगों ने पसंद किया है इसलिए अब दूसरे चरण में इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन करने की शुरुआत की जा रही है. इसके लिए कई मंदिरों व उनके पुजारियों से सम्पर्क किया गया है. वन विभाग का प्रयास है कि ढ़ुंगेश्वरी में खुले इको शॉप में लोगों के लिए हर्बल व इको फ्रेंडली समानों को उपलब्ध करवाया जा सके.

(गया से बिमलेंदु चैतन्य की रिपोर्ट)