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Slums to Oxford Movement: बेटी की याद में शुरू की अनोखी पहल, गरीबों का भरते हैं पेट, दे रहे शिक्षा, बदल दीं हजारों जिंदगियां

सुहैल सिर्फ़ पढ़ाई तक ही सीमित नहीं हैं. पिछले 15 सालों से, यानी हर दिन बिना रुके, उनकी टीम गरीबों और भूखों को मुफ़्त खाना पहुंचाती है.

Mohammed Asif Hussain Sohail is Changing Lives Through Education and Service Mohammed Asif Hussain Sohail is Changing Lives Through Education and Service

हर शाम हैदराबाद की कुछ गलियों में कुछ अलग ही नज़ारा देखने को मिलता है. बच्चे, बुजुर्ग, सब्ज़ी वाले, मज़दूर- सब पेंसिल और किताबों के साथ बैठते हैं. कोई 78 साल की दादी पहली बार लिखना सीख रही होती है, कोई मार्केट के लंबे दिन के बाद अक्षर रटता है. ये हैं ‘Slums to Oxford’ अभियान जिसके तहत सीखने की कोई तय उम्र नहीं है.

बुजुर्गों से प्रेरणा
इस पहल के संस्थापक मोहम्मद आसिफ हुसैन सुहैल ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि जब बुजुर्ग पढ़ाई करते हैं, तो बच्चे और युवा भी उन्हें देखकर प्रेरित होते हैं. तीन सायंकालीन स्कूलों में 8 से 80 साल के 1,000 से ज्यादा लोग पढ़ाई कर रहे हैं. यहां पढ़ाई सिर्फ़ अक्षर और संख्या तक सीमित नहीं है; घरेलू हिंसा, नशा, मानव तस्करी जैसी सामाजिक समस्याओं पर भी बच्चों और बड़े दोनों को जागरूक किया जाता है.

भूखों के लिए रोज़ का खाना
सुहैल सिर्फ़ पढ़ाई तक ही सीमित नहीं हैं. पिछले 15 सालों से, यानी हर दिन बिना रुके, उनकी टीम गरीबों और भूखों को मुफ़्त खाना पहुंचाती है. शुरुआत में 50 प्लेटें बनती थीं, आज हजारों लोग रोज़ खाना खाते हैं. यही खाना न केवल पेट भरता है, बल्कि कई लोगों को नौकरी और पुनर्वास का रास्ता भी देता है. सुहैल कहते हैं कि भोजन जाति या धर्म नहीं देखता, यह मानवता की ज़रूरत है.

सक़ीना फाउंडेशन हर महीने 300-400 यूनिट रक्त इकट्ठा करता है. जरूरतमंद परिवारों को राशन, बच्चों को इलाज और शिक्षा में मदद भी मिलती है. इन केंद्रों पर लोग सिर्फ़ सेवा ही नहीं पाते, बल्कि सम्मान और भरोसा भी महसूस करते हैं.

दुख से शुरू हुआ मिशन
15 साल पहले सुहैल की बेटी सकीना की छोटी उम्र में ही मृत्यु हो गई. उस समय वे राजनीति में थे, लेकिन इस दर्द ने उनकी जिंदगी बदल दी. उन्होंने सक़ीना की याद में सक़ीना फाउंडेशन बनाया. आज उनका संगठन 40 लाख से ज्यादा लोगों को खाना दे चुका है, 15,000 यूनिट से अधिक रक्तदान कर चुका है, हजारों परिवारों को राशन, दवा और शिक्षा में मदद दी है. 111 से ज्यादा मेडिकल और रक्तदान शिविर आयोजित किए

सुहैल कहते हैं, “मैं पुरस्कारों के लिए काम नहीं करता. मेरी असली इनाम मुझे ऊपरवाले से मिलता है.” वे दान भी स्वीकार नहीं करते, सिर्फ़ अपनी कमाई से समाज की सेवा करते हैं. उनकी सोच बहुत सीधी है कि जो इंसान झुग्गी में रहता है, उसे भी ऑक्सफोर्ड पहुंचने का मौका मिलना चाहिए. इस कहानी में दिखता है कि अगर इरादा मजबूत हो और दिल बड़ा हो, तो उम्र या परिस्थितियां कभी रोक नहीं सकती.

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