
पांच साल से लापता हुई 23 साल की आदिवासी युवती रसमणि आधार कार्ड में मौजूद डाटाबेस की सहायता से अपने परिजनों से मिल गईं. मिली जानकारी के मुताबिक साल 2017 में झारखंड के रहने वाले दिहाड़ी मजदूर की बेटी को एक दिल्ली के एजेंट ने नौकरी दिलवाने का वादा किया था. युवती को दिल्ली में नौकरी लगवा देने का वादा किया था. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय होने की वजह से युवती उसकी बातों में आ गई थीं.
एजेंट ने किया था नौकरी का वादा
दरअसल, एजेंट की बातों में आकर परिजनों ने अपनी बेटी रसमणि को दिल्ली के लिए रवाना कर दिया. लेकिन ट्रेन में चढ़ने के वक्त रसमणि को एजेंट की गतिविधियों पर कुछ शक हुआ तो वह वहां से भाग निकली और फतेहपुर रेलवे स्टेशन पर मौजूद आरपीएफ के जवानों ने से जा मिली. जिसके बाद आरपीएफ के जवानों ने उसे बचा लिया और 23 वर्षीय युवती को आश्रय गृह में रखा गया. इस आश्रय गृह में उसका नाम राशि रखा गया.
आधार का डाटा रहता है सुरक्षित
वहीं यूपी के यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया के डिप्टी डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशांत कुमार सिंह ने बताया कि आधार एक डिजिटल आईडेंटिटी है. इसमें विशेष चीज यह होती है कि एक आदमी का एक ही आधार हो सकता है न की दो आधार. प्रशांत कुमार सिंह ने बताया कि हम लोग आधार कार्ड का इस्तेमाल इस तरीके से करते हैं कि यदि कोई बच्चा खो गया है और उसका आधार बना है तो उस आधार में उसका फिंगरप्रिंट और बायोमेट्रिक हमारे सिस्टम में डाटा के तौर पर सुरक्षित (save) रहता है. ऐसे में यदि वह व्यक्ति द्वारा आधार कार्ड बनवाने की कोशिश करेगा तो रिजेक्ट हो जाएगा और इन्हीं सब चीजों से जो लोग बिछड़ जाते हैं या कुछ बताने में सक्षम नहीं होते हैं तो आधार कार्ड बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है.
बिछड़ों को मिलवाने में आधार करता है मदद
लेफ्टिनेंट कर्नल बताते हैं कि आधार उस समय बड़ी भूमिका निभाता है जब कोई व्यक्ति गूंगा या बहरा होता है. ऐसे में आधार की मदद से उसके परिजनों से संपर्क किया जा सकता है. लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशांत ने आगे बताया कि अभी तक आधार कार्ड की डेटाबेस की मदद से यूपी में 100 से अधिक लापता और ऐसे लोग जो कुछ भी बताने में असमर्थ हैं, उन्हें उनके परिजनों से मिलाया गया है. वहीं पूरे भारत की बात करें तो इसका आंकड़ा 500 से ज्यादा है.
वहीं प्रशांत बताते हैं कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांधीनगर में हुई वर्कशॉप में यूपी के लखीमपुर की रहने वाली रोशनी का भी जिक्र किया था जो आधार कार्ड के डेटाबेस के जरिए अपने परिजनों से 6 साल बाद मिली थी. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हम टेक्नोलॉजी का कैसे इमोशनल चीजों में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
कैसे मिली लड़की अपने परिजनों से ?
प्रशांत बताते हैं कि आधार कार्ड की मदद से जब लापता लोग अपने परिवार वालों से मिलने लगे तो हम लोगों ने उन सभी लोगों को मिलवाने के लिए एक पहल की. इस पहल के तहत आश्रय गृह और अन्य जगहों से संपर्क किया और वहां बड़े पैमाने पर से भी लगाया जाए ताकि और भी फायदा हो सके. इसी के मद्देनजर हम लोग लखनऊ आश्रय गृह के बाहर शिविर लगाए हुए थे और वहीं पर जब लड़की आई तब उसने अपना आधार कार्ड बनवाना चाहा. लेकिन आधार कार्ड नहीं बन रहा था. लड़की ने 5 अटेम्पट किए लेकिन फिर भी आधार कार्ड नहीं बना जब 6वीं बार कोशिश की तो उसमें भी वह असफल हो गई. लेकिन इस बार आधार कार्ड ना बननेे की वजह जानने की कोशिश की गई तो इसके पीछे का कारण सामने आया. मालूम चला कि लड़की का आधार पहले से ही बना हुआ है जिसका आंकड़ा हमारे यूआईडीएआई के सिस्टम पर फिंगरप्रिंट्स और बायोमेट्रिक के तौर पर मौजूद था. साथ ही युवती रसमणि के घर का पता भी दिया हुआ था, जिसके बाद इसकी मदद से बिछड़ी रसमणि को उसके परिवार वालों से मिलावा दिया गया.
(सत्यम मिश्रा की रिपोर्ट)