
कहते हैं कि अगर कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो तो कोई आपको सफल होने से नहीं रोक सकता है. कोशिश करने वालों के आड़े को उम्र भी नहीं आती है और इस बात को साबित किया है 76 साल के बालकृष्ण अय्या ने. गोवा के काणकोण के लोलिएम गांव के निवासी अय्या ने चट्टानों को चीरते हुए अपने समुदाय तक पानी पहुंचाया है. यह कहानी जितनी संकल्प की है, उतनी ही नवाचार की भी.
मड्डी-टोलोप का अर्थ कोंकणी में होता है "पथरीला क्षेत्र." यहां के निवासियों के लिए पानी हमेशा चिंता का विषय रहा, लेकिन भूवैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र को उसकी खतरनाक बनावट की वजह से पहले ही नामंज़ूर कर दिया था. यहां ऊपर एक पत्थरीली परत, उसके बाद चिकनी मिट्टी और फिर नीचे ठोस काली चट्टान है जिस कारण पानी लाना लगभग असंभव था. लेकिन अय्या ने वहां संभावना देखी जहां बाकी लोगों ने केवल पत्थर देखे.
नवाचार से मिली राह
अय्या ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उन्होंने ज़मीन का अध्ययन किया. फिर उनके दिमाग में एक ऐसा विचार आया जो किसी ने पहले नहीं आजमाया था. उनका नवाचार व्यावहारिक था लेकिन क्रांतिकारी भी. उन्होंने समझा कि पानी पाने के लिए बहुत गहराई तक खुदाई करनी होगी, लेकिन यह एक खतरनाक काम था. अगर खुदाई के दौरान मिट्टी या चट्टानें धंस जाएं, तो जान का जोखिम था.
इसलिए अय्या ने एक अनोखा सुरक्षा कवच तैयार किया- ज़मीन से लेकर मिट्टी की परत तक एक सीढ़ीनुमा रास्ता बनाना, ताकि अंदर काम कर रहे लोग किसी आपात स्थिति में बाहर निकल सकें. यह रास्ता एक सुरक्षात्मक उपाय था, जिससे मज़दूर गहराई तक सुरक्षित खुदाई कर सकते थे.
दूसरे घरों तक बिछाई पाइपलाइन
लेकिन अय्या केवल अपनी पानी की समस्या हल कर संतुष्ट नहीं हुए. उन्होंने अपनी जलस्रोत को जोड़ते हुए 25 अन्य घरों तक पाइपलाइन बिछाई. स्थानीय लोग उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते और गोवा राज्य जैव विविधता बोर्ड से उन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है. उन्हें ‘कला गौरव पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया है.
स्कूल में थे ड्राइंग टीचर
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अय्या गणेश की मूर्तियां बनाते हैं, झाड़ू बनाते हैं और समय के अनुसार खुद को ढालते हैं. अपने युवा दिनों में, जब उन्हें पता चला कि स्कूलों में चित्रकला शिक्षक की मांग है, तो उन्होंने ड्राइंग टीचर्स कोर्स किया और 17 वर्षों तक एक स्थानीय स्कूल में पढ़ाया.
रिटायरमेंट के बाद उन्होंने मूर्ति बनाना शुरू किया. इसके अलावा वे एक पंडित के रूप में भी काम करते हैं ताकि अपने परिवार की मदद कर सकें. जहां तक झाड़ू बनाने की बात है, तो उन्होंने इसके लिए एक विशेष उपकरण भी बनाया. इस उपकरण से वे कुछ ही मिनटों में सूखी ताड़ की पत्तियों के सामान्य गुच्छे को झाड़ू में बदल देते हैं. उनकी झाड़ू 250 से 300 रुपये में बिकती हैं. वे हर दिन दो से छह झाड़ू बनाते हैं.
अब अय्या अपनी यह कला युवा पीढ़ी को सिखाना चाहते हैं. वे कहते हैं, "उस ज्ञान का क्या जो आपके साथ ही मर जाए? उस नवाचार का क्या जो आपके पड़ोसी की मदद न करे?" इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अय्या आज बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा हैं.