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History of Bhakarwadi: महाराष्ट्र नहीं गुजरात में पहली बार बनाई गई थी भाकरवड़ी, जानिए फिर कैसे बनी पॉपुलर महाराष्ट्रियन स्नैक

History of Bhakarwadi: भाकरवड़ी आज न सिर्फ पश्चिम भारत बल्कि पूरे देश और विदेशों में भी मशहूर है. भाकरवड़ी की रेसिपी लगभग 90 साल पुरानी है. जानिए इसके इतिहास के बारे में.

History of Bhakarwadi History of Bhakarwadi
हाइलाइट्स
  • गुजरात से जुड़ा है इतिहास 

  • महाराष्ट्र ने बना दी ग्लोबल डिश 

आपने बहुत बार फरसाण शब्द सुना होगा लेकिन क्या आपको पता है कि फरसाण शब्द का मतलब क्या है? फरसाण शब्द गुजरातियों से जुड़ा हुआ है. दरअसल, फरसाण का मतलब होता है स्नैक्स. जी हां, गुजरात में लोकल स्नैक्स को फरसाण कहते हैं. उनके इस फरसाण में खाखरा, फाफड़ा, खमण, गांठिया, भजिया जैसी चीजों के साथ भाकरवड़ी भी शामिल होती है. कुरकुरी, स्वादिष्ट और स्वाद से भरपूर भाकरवड़ी पहली ही बार में लोगों का दिल जीत लेती है. 

गुजरात में भाकरवड़ी इतनी फेमस है कि सोनी सब टीवी पर इस नाम से एक सीरियल भी चलाया गया था. सर्दियों या बरसात में एक गर्म कप चाय के साथ भाकरवड़ी मिल जाए तो स्वाद और बढ़ जाता है. हालांकि, अगर आप ज्यादातर लोगों से भाकरवड़ी के बारे में पुछेंगे तो उनके दिमाग में सबसे पहले महाराष्ट्र का नाम आएगा. क्योंकि महाराष्ट्र के मशहूर चितले बंधु की भाकरवड़ी दुनियाभर में पॉपुलर है. 
आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं सबकी फेवरेट भाकरवड़ी की कहानी कि आखिर कैसे गुजरात में बना यह फरसाण महाराष्ट्र की भी खासियत बन गया. 

गुजरात से जुड़ा है इतिहास 
इस बात में कोई दो राय नहीं हैं कि भाकरवड़ी एक प्रिय महाराष्ट्रीयन नाश्ता है, लेकिन इसकी उत्पत्ति गुजरात में हुई है. बताते हैं कि वडोदरा में न्यू वीआईपी रोड पर स्थित जगदीश फरसाण ने पहली बार इस स्नैक कोबनाया था. जगदीश फरसाण एक पॉपुलर फरसाण स्टोर है, जो 1938 से ग्राहकों को हर तरह का नाश्ता उपलब्ध कराता रहा है; चेवड़ो (सभी प्रकार की), फुलवाड़ी, नमकीन कुरकुरी चना दाल, वेफर्स, सेव, भेल और मिठाई सभी यहां बेची जाती हैं. स्टोर ताज़ा, और गर्म स्नैक्स भी उपलब्ध कराता है. 

जगदीश फरसाण को राजा रतनलाल केशवलाल कंदोई ने शुरू किया था. उन्होंने अपने घर से काम शुरू किया था और लगातार मेहनत करते हुए नए स्नैक्स लोगों को परोसना शुरू किया जो समय के साथ पॉपुलर हो गए. आज उनकी चौथी पीढ़ी से आकाश कंदोई बिजनेस को संभाल रहे हैं. जगदीश फरसाण की वेबसाइट के मुताबिक, लीलो चेवडो, सूखो लीलो चेवडो के अलावा भाकरवड़ी भी उनकी सिग्नेचर डिश है. गुजराती भाकरवड़ी का स्वाद हल्का मीठे की तरफ होता है और यह गुजरातियों के खाने का अहम हिस्सा है. आपको बता दें कि साल 1960 में महाराष्ट्र और गुजरात के अलग-अलग राज्य बनने से पहले ही भाकरवड़ी बहुत मशहूर थी. 

महाराष्ट्र ने बना दी ग्लोबल डिश 
अब सवाल है कि अगर एक गुजराती ने भाकरवड़ी बनाई तो इसका नाम महाराष्ट्र से क्यों जोड़ा जाता है. दरअसल, इसका क्रेडिट जाता है पुणे के मशहूर चितले बंधु मिठाई वाले को, जो एक जमाने में डेयरी का काम करते थे. साल 1939 में नरसिंह चितले और रघुनाथ राव चितले, दो भाइयों ने डेयरी शुरू की थी और साल 1950 में उन्होंने मिठाइयों का काम शुरू किया. इसके बाद, साल 1976 में उन्होंने भाकरवड़ी बनाना शुरू किया. 

दरअसल, नरसिंह चितले ने एक बार अपने पड़ोसी के घर एक खास तरह की भाकरवड़ी चखी. दरअसल यह एक 'नागपुरी' वर्जन था. पूछने पर उन्हें पता चला कि यह नागपुरी स्नैक 'पुदाची वड़ी' के नाम से मशहूर है. यह खाने में तीखा और मजेदार था. यहां से चितले बंधुओं को एक अलग तरह की भाकरवड़ी बनाने का ख्याल आया. उन्होंने मसालेदार पुदाची वड़ी और गुजराती भाकरवड़ी के आकार का मिश्रण करके चितले भाकरवड़ी बनाई. बताते हैं कि नरसिंह की बड़ी भाभी विजया और पत्नी मंगला ने इस रेसिपी को पक्का किया और साल 1976 में यह बिक्री के लिए उपलब्ध हुई. जल्द ही ब्रांड ने इस स्नैक की भारी मांग देखी. उनकी भाकरवड़ी का स्वाद लोगों को इतना पसंद आया कि आज विदेशों तक भी चितले बंधु की भाकरवड़ी पहुंच रही है. 

अब मिलती हैं कई वेरिएशन
आपको अब हर जगह भाकरवड़ी मिल सकती है और वह भी अलग-अलग वेरिएशन में. लगभग सभी फरसाण दुकानें इसका स्टॉक रखती हैं, और अब कम फैट वाले वेरिएशन भी उपलब्ध हैं. भाकरवड़ी सभी प्रकार के स्वादों के साथ आती है - सूखे मेवों से भरी हुई, मसालेदार लहसुन और मेथी के ऑप्शन के साथ, और साथ ही भाकरवड़ीचाट की बहुत सारी रेसिपी भी हैं. आपको अलसी के बीज वाली भाकरवड़ी भी मिल सकती है. कभी किसी का पुणे घूमना हो तो चितले बंधु की भाकरवड़ी टेस्ट करना न भूलें.