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History of Halwa: भारत नहीं अरब की देन है हलवा, फिर भी कर रहा है हिंदुस्तानियों के दिल पर राज, जानिए इसकी कहानी

हर साल 1 फरवरी को Budget के भाषण से पहले Halwa Ceremony आयोजित की जाती है जिसमें खुद वित्त मंत्री हलवा बांटते हैं. लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर हलवा हिंदुस्तान में कबसे बनाया जा रहा है? आज दस्तरखान में जानिए हलवे की कहानी.

History of Halwa History of Halwa

हमारे देश में इलाका कोई भी हो या त्योहार कोई भी हो, हलवा बनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. मेहमानों के आने पर सूजी का हलवा, सर्दियों में गाजर का हलवा, बच्चे के होने पर आटे की हलवा और न जाने कितने तरह के हलवे हमारे यहां बनाए जाते हैं. बात हलवे की हो तो बेसन, सिंघाड़ा, लौकी, मूंग दाल और तो और बादाम तक को भी हमारी दादी-नानी ने नहीं छोड़ा है. 

आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी हलवा की जो भारत देश में सदियों पुरानी है. आखिर कैसे भारतीय परंपरा का इतना अहम हिस्सा बन गया हलवा? 

अरबी शब्द से बना हलवा 
बताया जाता है कि 'हलवा' शब्द अरबी शब्द 'हुलव' से आया है, जिसका अर्थ मीठा होता है और माना जाता है कि यह 1840 और 1850 के बीच अंग्रेजी भाषा में आया था. 20वीं सदी के लेखक और इतिहासकार अब्दुल हलीम शरर की किताब 'गुज़िश्ता लखनऊ' के ​​अनुसार , हलवे की उत्पत्ति अरबी भूमि में हुई और फारस के रास्ते भारत में आया. 

यह मूल मध्य पूर्वी मिठाई खजूर के पेस्ट और दूध से बनाई गई थी. कोलीन टेलर सेन अपनी पुस्तक 'फीस्ट्स एंड फास्ट्स' में लिखती हैं कि हलवा भारत में दिल्ली सल्तनत के दौरान 13वीं सदी की शुरुआत से 16वीं सदी के मध्य तक आया था. कुछ अन्य किंवदंतियों के अनुसार, हलवा पकाने की विधि की जड़ें ओटोमन साम्राज्य में हैं. साम्राज्य के दसवें और सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले सुल्तान सुलेमान को मिठाइयों का इतना शौक था कि उन्होंने केवल मीठे व्यंजनों के लिए एक अलग रसोईघर बनाया था, हलवा उनमें से एक था. 

13वीं शताब्दी की किताब में जिक्र 
खाद्य इतिहासकारों के अनुसार, हलवा का पहला ज्ञात नुस्खा 13वीं शताब्दी के अरबी पाठ, 'किताब अल-तबीख' (व्यंजन की पुस्तक) में दिखाई देता है, जो मुअम्मद इब्न अल-हसान इब्न अल-करीम द्वारा लिखा गया है. इसमें हलवे की आठ अलग-अलग किस्मों और उनके व्यंजनों का उल्लेख है. इसके अलावा, अरब प्रभाव वाले शुरुआती भारतीय शहरों में से दो कराची और कोझिकोड के तटीय शहर थे और इस प्रकार, हलवा इन शहरों में खाद्य परंपराओं का एक अभिन्न अंग है.

आज पूरे देश में हलवे की अनगिनत किस्में उपलब्ध हैं. पुणे से 'हरी मिर्च का हलवा', पश्चिम बंगाल से 'छोलार दाल हलवा', उत्तर प्रदेश और बिहार से 'अंडा हलवा', कर्नाटक से 'काशी हलवा', केरल से 'करुथा हलुवा', हलवे की कुछ किस्मों में से कुछ हैं जो भारत में मिलती हैं. देशभर में पसंद किए जाने वाला 'गाजर का हलवा' भी विश्वपटल तक पहुंच चुका है. गाजर अफगानिस्तान की मूल निवासी थीं और डचों के माध्यम से भारत में पहुंचीं. इन्हें पंजाब में उगाया जाने लगा और बाद में इनका प्रयोग किया गया, जिसका परिणाम गाजर के हलवे के रूप में सामने आया. 

हलवे ने जीता भारत का दिल
भले ही हलवे की उत्पत्ति अरब में हुई, लेकिन इससे ज्यादा भारतीय कोई और मिठाई नहीं हो सकती है. क्योंकि उपमहाद्वीप में इसका इतना प्रभाव है कि मिठाई बनाने वालों को आज तक 'हलवाइयों' के नाम से जाना जाता है और हमेशा कहा जाता रहेगा. हलवे ने भारत आकर सभी मिठाई प्रेमियों का दिल जीत लिया. तभी तो देश के महत्वपूर्ण इवेंट जैसे की बजट से पहले भी हर साल हलवा सेरेमनी आयोजित की जाती है.