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History of Sarson ka Saag- Makke ki Roti: सर्दियों की जान हैं सरसों का साग और मक्के दी रोटी, सदियों पुराना है इतिहास, जानिए

History of Sarson ka saag: सर्दियां हों और आप सरसों के साथ के साथ मक्के की रोटी का मजा न लें, ऐसा कैसे हो सकता है. आज के जमाने में तो विदेशों में भी आपको यह डिश खाने को मिल जाएगी

Sarson ka Saag and Makka ki Roti Sarson ka Saag and Makka ki Roti
हाइलाइट्स
  • मैक्सिको से भारत आई मक्का 

  • सदियों पुराना है साग का इतिहास 

सर्दी का मौसम हो और सरसों के साग ते मक्के दी रोटी मिल जाए तो क्या कहने? दिलचस्प बात यह है कि सरसों का साग और मक्के की रोटी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोगों को पंसद आती है. दुनियाभर में पंजाब की पहचान बन चुकी है यह डिश. लेकिन क्या आपको पता है कि मक्का और सरसों, दोनों का ही इतिहास पंजाब से नहीं जुड़ा है. 

जी हां, आज दस्तरखान में जानिए मक्के की रोटी और सरसों के साग के बारे में. उत्तर भारत में सर्दियां शुरू होते ही घर-घर में यह डिश बनना शुरू हो जाती है. आज यह डिश इतनी पॉपुलर है कि दुनियाभर के बड़े से बड़े रेस्टोरेंट के मेन्यू में आपको मिलेगी. 

मैक्सिको से भारत आई मक्का 
सबसे पहले बात करते हैं मक्का की रोटी की. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पंजाब जैसी मक्के की रोटी आपको कहीं और नहीं मिलेगी. लेकिन क्या आपको पता है कि मक्का की जड़ें पंजाब या भारत से नहीं बल्कि यूरोप से जुड़ी हैं. और मक्का लगभग 400 साल पहले ही भारत में आई. बताते हैं कि मक्का के दाने 16वीं शताब्दी में यूरोप से भारत आये. 

इसे मैक्सिको और दक्षिण अफ्रीका में भी बड़े पैमाने पर उगाया और खाया जाता था. हालांकि, ऐसा माना जाता है कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान, रिफ्यूजियों को मक्के की रोटी बनाते-खाते देखा गया. इन रिफ्यूजियों में ज्यादातर पंजाब के लोग थे और तब से ही यह धीरे-धीरे पंजाब के खाने का अभिन्न हिस्सा बन गया. आज कोई भी सर्दियों में पंजाब जाए तो सबसे पहले मक्के की रोटी और सरसों के साग की मांग करता है. 

सदियों पुराना है साग का इतिहास 
बात अगर अब साग की करें तो भारत के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह का साग बनता है. जैसे पंजाब को सरसों के साग के साथ जोड़ा जाता है वैसे ही यूपी के कई हिस्सों में लाल चौलाई का साग बनता है तो कई इलाकों में पालक का साग मशहूर है. सरसों का साग मतलब सरसों के पत्तों को काटकर बनने वाली डिश. भारत में पंजाब-हरियाणा में सर्दियों से सरसों की खेती की जाती है. 

सरसों के पत्ते, बीज और फिर बीजों से तेल निकालने के बाद बचने वाली खली, सब चीजें उपयोगी हैं. आपको बता दें कि सरसों के साग का उल्लेख पहली बार तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में लिखी गई पुस्तक "अचारांग सूत्र" में किया गया थ, जिसमें धर्म और जैन जीवन शैली की व्याख्या की गई थी.

इसके अलावा, लगभग 2,500 साल पहले लिखी गई सुश्रुत संहिता में भी इसका उल्लेख है. हालांकि, आधुनिक समय में यह कैसे पंजाब की डिश बन गया इसके बारे में खास जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन यह सच है कि सरसों का साग सिर्फ स्वाद नहीं बल्कि स्वास्थ्य से जुड़े फायदों के लिए भी खाया जाता है. 

सुपर फूड है सरसों 
आपको बता दें कि सरसों का साग न केवल अपने स्वाद के लिए सराहा जाता है, बल्कि यह अपने स्वास्थ्यवर्धक गुणों के लिए भी जाना जाता है. सरसों की पत्तियों को एक सुपरफूड माना जाता है, विटामिन ए में उच्च और फाइबर में समृद्ध, और मुख्य रूप से आम सर्दी जैसी बीमारियों को दूर रखने में मदद करने के लिए इसे सर्दियों का भोजन माना जाता है. इसलिए सरसों का साग उत्तर भारत में शौक से खाया जाता है.