History of Kalakand
History of Kalakand व्रत-त्योहार कोई भी हो लेकिन एक मिठाई है जिसके बिना कुछ पूरा नहीं होता है. यह मिठाई है कलाकंद या आज के बच्चों का मिल्ककेक. बहुत से इलाकों में बिना कलाकंद का भोग लगाए दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा पूरी नहीं होती है. बहुत से घरों में तो दिवाली-होली से पहले घर में कलाकंद बनाया जाता है ताकि घर-परिवार में बांटा जा सके. लेकिन क्या आपको पता है कि देश-विदेश में मशहूर यह मिठाई कैसे बनी या कहां से आई?
आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कलाकंद के इतिहास के बारे में. भारत में दो जगहों का कलाकंद बहुत मशहूर है- एक अलवर और दूसरा झुमरी तलैया का. झुमरी तलैया का नाम आपने बहुत से फिल्मों में सुना होगा लेकिन क्या आपको पता है कि झारखंड का यह शहर अपने कलाकंद के लिए जाना जाता है.
आजादी से जुड़ी हैं कलाकंद की जड़ें
बताया जाता है कि कलाकंद को सबसे पहले बाबा ठाकुर दास नामक एक व्यक्ति ने बनाया था. बाबा ठाकुर दास आजादी से पहले पाकिस्तान वाले हिस्से में रहते थे. उनकी मिठाई की दुकान थी. बताते हैं कि दास एक दिन दूध उबाल रहे थे और किसी कारणवश उनका दूध फट गया. दास इसे बेकार नहीं जाने देना चाहते थे तो उन्होंने इस फटे दूध को ही और उबलने दिया.
उन्होंने देखा कि इस दूध में दाने पड़ने लगे हैं और टेक्सचर अच्छा आ रहा है. इसके बाद उन्होंने इसमें चीनी डालकर इसे और भून लिया. कई घंटे में तैयार हुई इस डिश को जिस किसी ने भी चखा उसे स्वाद बहुत पसंद आया. जब लोगों ने उनसे पूछा कि यह क्या है तो उन्होंने कहा- यही तो कला है. और तब से इस मिठाई का नाम हो गया कलाकंद. आजादी के बाद दास परिवार राजस्थान के अलवर में आकर बस गया. यहां पर उन्होंने ही कलाकंद को मशहूर किया और आज उनकी तीसरी पीढ़ी यह काम संभाल रही है.
कलाकंद के लिए भी मशहूर है झुमरी तलैया
झारखंड का झुमरी तलैया सिर्फ टूरिज्म के लिए नहीं बल्कि अपने केसरिया कलाकंद के लिए भी मशहूर है. बताया जाता है कि यहां पर कलाकंद बनना 1960 के बाद शुरू हुआ. यहां का कलाकंद दुनियाभर में लोगों को भाता है. इस शहर में सबसे पहले भाटिया बंधुओं ने कलाकंद बनाने की शुरुआत की और आज बहुत से लोग यहां कलाकंद के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं.
समय के साथ कलाकंद बनाने के तरीके में कई बदलाव आए हैं लेकिन इसका स्वाद लोगों को इतना पसंद हैं कि त्योहार पर घरों में कुछ आए न आए कलाकंद जरूर आता है. विदेशों से भारत घुमने आने वाले बहुत से सैलानी भी इस मिठाई का आनंद उठाते हैं.
और क्या आपको पता है कि अलवर का कलाकंद खाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपना काफिला रूकवा देते थे. दरअसल, जब भी वाजपेयी का काफिला अलवर से गुजरता था तो वे दास परिवार का कलाकंद खाने के लिए जरूर रूकते थे. आज ठाकुरदास का कलाकंद दुबई जैसे देशों में भी पहुंच चुका है.