
हैदराबाद के रहने वाले पदकांति विश्वनाथ कार्तिकेय ने मंगलवार को इतिहास रच दिया जब वह 'सेवन समिट्स' चैलेंज को पूरा करने वाले दुनिया के दूसरे सबसे कम उम्र के और भारत के सबसे युवा पर्वतारोही बन गए. 'सेवन समिट्स' पर्वतारोहण का सबसे मुश्किल लक्ष्य माना जाता है, जिसमें सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों पर चढ़ाई करनी होती है.
विश्वनाथ ने सबसे आखिर में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की और उन्होंने यह अद्भुत उपलब्धि 16 साल, 6 महीने और 27 दिन की उम्र में हासिल की. अमेरिकी पर्वतारोही जॉर्डन रोमेरो ने 2011 में 15 साल, 5 महीने और 12 दिन की उम्र में यह रिकॉर्ड अपने नाम किया था.
चार साल से कर रहे थे तैयारी
विश्वनाथ पहले ही दक्षिण अमेरिका की एकोनकागुआ, उत्तर अमेरिका की डेनाली, यूरोप की माउंट एल्ब्रस, अफ्रीका की किलिमंजारो और ऑस्ट्रेलिया की माउंट कोसियास्को पर चढ़ चुके थे. लेकिन एवरेस्ट पर 16 साल से कम उम्र वालों की चढ़ाई पर रोक के कारण वह विश्व रिकॉर्ड से चूक गए.
उनके मेंटर्स भरत तम्मिनेनी और लेफ्टिनेंट रोमिल बार्थवाल का मानना है कि यदि यह नियम न होता तो विश्व रिकॉर्ड भी उनका होता. भरत ने TOI को नेपाल के काठमांडू बेस कैंप से बताया कि विश्वनाथ पिछले चार सालों से इसकी तैयारी कर रहे थे और इस मुकाम को हासिल करने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की. वह अपने प्रशिक्षण में पूरी तरह समर्पित रहे.
11 साल की उम्र से बढ़ी दिलचस्पी
लेफ्टिनेंट बार्थवाल और विश्वनाथ वर्तमान में बेस कैंप लौट रहे हैं. विश्वनाथ वर्तमान में रेजोनेंस कॉलेज में इंटरमीडिएट (MPC) दूसरे साल के छात्र है. पर्वतारोहण के प्रति उनकी रुचि 2020 में 11 साल की उम्र में शुरू हुई जब उन्होंने अपने माता-पिता से जिद करके अपनी बहन वैश्नवी के साथ उत्तराखंड की रुदुगैरा चोटी पर ट्रेक करने की अनुमति ली. हालांकि, वह उस ट्रेक को पूरा नहीं कर सके, लेकिन यहां से पर्वतारोहण में उनकी दिलचस्पी बढ़ी.
इसके बाद विश्वनाथ ने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग में 10 दिन का एडवेंचर कोर्स किया और जरूरी कौशल सीखे. उन्होंने 13 साल की उम्र में यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रस पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन टीम के एक साथी के बेहोश होने के कारण चढ़ाई पूरी नहीं हो सकी. इसके बावजूद उन्होंने एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक, नांकार्तशांग पीक (5,364 मीटर), और फ्रेंडशिप पीक जैसे अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा किया. उन्होंने कांग यात्से II और जो जोंगो चोटी को 72 घंटे के भीतर फतह किया, और ऐसा करने वाले सबसे युवा पर्वतारोही बन गए.
माता-पिता को समर्पित
विश्वनाथ का कहना है कि उनकी यह यात्रा शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण थी. लेकिन एवरेस्ट की चोटी पर खड़ा होना और सेवन समिट्स को पूरा करना एक सपना पूरा होने जैसा है. उन्होंने अपनी इस उपलब्धि को अपने माता-पिता, पदकांति राजेंद्र प्रसाद और लक्ष्मी को समर्पित किया. उनके पिता गुम्मडिदाला में एक राइस मिल चलाते हैं और मां एक गृहिणी हैं.
पिछले पांच सालों से विश्वनाथ अपने सेवन समिट्स के सपने को साकार करने के लिए मेहनत कर रहे हैं. भरत और लेफ्टिनेंट बार्थवाल (जो भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी और अनुभवी पर्वतारोही हैं) के मार्गदर्शन में वह लगातार प्रशिक्षण करते रहे.