scorecardresearch

India Pakistan War: पहले 1965 और फिर 1971.... जब पाकिस्तान पर भारी पड़ा भारत का यह जासूस... कहानी एक 'पगी' की...जिसके साथ सैम मानेकशॉ ने खाई बाजरे की रोटी

पगी जनजाति का जिक्र होते ही भारतीय सेना द्वारा सम्मानित रणछोड़ दास रबारी की याद ताजा हो जाती है. उन्हें आज भी रणछोड़दास 'पगी' के नाम से याद किया जाता है.

Ranchordas Pagi worked as a scout on behalf of the Indian Army (Wikipedia Image) Ranchordas Pagi worked as a scout on behalf of the Indian Army (Wikipedia Image)

भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान के साथ बॉर्डर शेयर करने वाले राज्य और केंद्र-शासित प्रदेशों में हाई अलर्ट जारी है. सीमाओं की सुरक्षा काफी ज्यादा बढ़ा दी गई है. गुजरात राज्य पाकिस्तान के साथ जल और थल, दोनों ही सीमाएं साझा करता है. ऐसे में, गुजरात के बॉर्डर पर सुरक्षा का चाकचोबंद इंतजाम है. गुजरात में पुलिस प्रशासन, बीएसएफ और मरीन टास्क फॉर्स आदि सभी सुरक्षा के लिए तैनात हैं. 

इस सबके साथ सामान्य नागरिकों की मदद भी ली जा रही है. मछुआरों के साथ-साथ पगी जनजाति से भी मदद ली गई है. पगी जनजाति का जिक्र होते ही भारतीय सेना द्वारा सम्मानित रणछोड़ दास रबारी की याद ताजा हो जाती है. उन्हें रणछोड़दास 'पगी' के नाम से याद किया जाता है. ‘पगी’ का मतलब होता है ‘मार्गदर्शक’, वह व्यक्ति जो रेगिस्तान में रास्ता दिखाता है. 

बताया जाता है कि रणछोड़ दास रेगिस्तान में ऊंट के पैरों के निशान देखकर बता सकते थे कि उस पर कितने लोग सवार थे, कितने वजन का सामान होगा और ये भी की पैरों के निशान बने लगभग कितना समय बीत चुका है. उनके इस अद्भुत कौशल और देश के लिए समर्पण की भावना ने भारत-पाकिस्तान के दो बड़े युद्धों (1965 और 1971) के दौरान भारतीय सेना की बड़ी मदद की. 

सम्बंधित ख़बरें

पाकिस्तान से भारत आकर बसे 
1901 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के पेथापुर गांव में जन्मे रणछोड़भाई पेशे से पशुपालक थे. पेथापुर में उनकी काफी ज्यादा एकड़ जमीन थी और उनके पास गाय-भैंस, बैल भेड़ों और बकरियों सहित करीब 300 मवेशी थे. 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान उन्होंने पाकिस्तान में ही रहना तय किया. लेकिन जब पाकिस्तान सेना का अत्याचार उनके इलाके में बढ़ा तो वह अपने परिवार समेत भारत आ गए और सभी मवेशियों को भी लाने में सफल रहे. क्योंकि उन्हें भारत में शामिल होने के सभी खुफिया रास्ते पता थे.  

भारत में वह गुजरात के बनासकांठा जिले के गांव में आकर बस गए है. यहां लोगों ने जाना कि उनके पास पदचिह्न पहचानने की कला है तो उन्हें गांव का चौकीदार नियुक्त किया गया. उन्होंने पदचिह्नों की पहचान करके चोरों को भी पकड़वाया. इस बारे में जब स्थानीय पुलिस को पता चला तो उन्हें 58 वर्ष की उम्र में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने उन्हें पुलिस गाइड नियुक्त किया. 

जब भारतीय सेना तक पहुंचाई अहम सूचना  
1965 के युद्ध की शुरुआत में पाकिस्तान सेना ने गुजरात की कच्छ सीमा में ‘विधकोट’ पर कब्जा कर लिया था. इस मुठभेड़ में करीब 100 भारतीय सैनिक शहीद हुए. भारतीय सेना के 10,000 जवानों का दस्ता ‘छरकोट’ तीन दिनों में पहुंचना था. तब पहली बार सेना को रणछोड़दास पगी की जरूरत महसूस हुई. पगी ने भारतीय सेना की ओर से स्काउट का काम संभाला।

रेगिस्तानी रास्तों पर उनकी मजबूत पकड़ की वजह से उन्होंने सेना को तय समय से 12 घंटे पहले मंज़िल पर पहुंचा दिया. उन्हें खुद सैम मानेकशॉ साहब ने सेना को रास्ता दिखाने के लिए चुना था. इसके बाद, उन्होंने पैरों के निशान देखकर अंदाजा लगाया कि करीब 1200 पाकिस्तानी सैनिक भारत की सीमा में आ चुके हैं. उन्होंने यह जानकारी भारतीय सेना तक पहुंचाई और फिर यह भी बताया कि पाकिस्तानी सैनिक कहां छिपे हैं. यह जानकारी भारतीय सेना की जीत के लिए काफी थी.

सेना तक पहुंचाया गोला-बारूद  
रणछोड़ दास ने साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी अहम भूमिका निभाई. इस युद्ध में सेना को मार्गदर्शन देने के साथ-साथ मोर्चे पर गोला-बारूद पहुंचाना भी पगी की जिम्मेदारी थी. इस दौरान रणछोड़दास पगी ऊंट के सहारे पाकिस्तान की सीमा तक पहुंचे और उन्होंने यह महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई कि पाकिस्तानी सैनिक 'धोरा' इलाके में डेरा डाले हुए हैं और वहीं से आगे बढ़कर हमले की योजना बना रहे हैं. 

उनकी इस सटीक खुफिया सूचना के आधार पर भारतीय सेना ने तुरंत धोरा पर सटीक और निर्णायक हमला कर दिया. युद्ध के दौरान जब भारतीय सैनिकों का गोला-बारूद खत्म हो गया, तब रणछोड़ पगी 50 किलोमीटर दूर तक ऊंट पर सफर कर हथियार और गोलाबारूद लेकर लौटे और मोर्चे पर सैनिकों की मदद की. उनकी मदद के कारण भारतीय सेना 'पालीनगर' चेकपोस्ट को फिर से भारत के कब्ज़े में लेने में सफल रही. उनके इस योगदान से प्रभावित होकर भारतीय फील्ड मार्शल ने उन्हें युद्ध जीतने के बाद ढाका में आयोजित डिनर के लिए विशेष रूप से बुलाया. 

जब मार्शल मानेकशॉ ने खाई बाजरे की रोटी 
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के इनविटेशन पर पगी को उनके गांव से ढाका लाने के लिए एक विशेष हेलीकॉप्टर भेजा गया. सैम मानेकशॉ ने इस रेगिस्तानी गाइड को अपने अंतिम समय तक भी नहीं भूले थे. जब वे अस्पताल में भर्ती थे, तो उन्होंने कई बार 'पगी' नाम लिया और तब वहां के डॉक्टर और स्टाफ ने उनसे पगी के बारे में पूछा. तब सैम मानेकशॉ ने मुस्कुराते हुए यह किस्सा सुनाया. 

उन्होंने बताया कि जब पगी को हेलीकॉप्टर से ढाका लाया गया और सम्मान के साथ डिनर में शामिल किया गया, तो वहां लगे बुफे को देखने की बजाय पगी ने एक पोटली निकाली. इस पोटली में दो बाजरे की रोटियां, प्याज और बेसन से बनी गाठिया थीं. हालांकि, दिलचस्प बात यह थी कि पगी के सम्मान में खुद फील्ड मार्शल ने उनके साथ बैठकर एक बाजरे की रोटी और प्याज खाई. 

उनके नाम पर है चेकपोस्ट 
पगी को उनके सेवा कार्यों के लिए 'समर सर्विस मेडल', 'संग्राम मेडल' और 'पुलिस मेडल' से सम्मानित किया गया. उनकी मौत के बाद, भारत सरकार ने कच्छ के एक चेकपोस्ट का नाम ‘रांछोड़ पगी चेकपोस्ट’ रखा ताकि उनके बलिदान और योगदान को अमर किया जा सके. आज उनकी कहानी गुजरात के स्कूल पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती है. 2008 में सैम मानेकशॉ की मृत्यु के एक साल बाद, साल 2009 में पगी ने 108 वर्ष की उम्र में 'वॉलंटियरली रिटायरमेंट' ली और 2013 में 112 साल की उम्र में उनका निधन हुआ. 

आज भी उनके पराक्रम की कहानियां गुजराती लोकगीतों में गाई जाती हैं. रणछोड़दास रबारी यानी हमारे ‘पगी’ देशभक्ति, साहस, वीरता, बलिदान, समर्पण और सरलता के कारण भारतीय सैन्य इतिहास में अमर हो गए हैं.