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इस भारतीय लेखिका ने जीता International Booker Prize... जानिए कौन हैं बानू मुश्ताक

'हार्ट लैंप' सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि कर्नाटक की मुस्लिम महिलाओं के जीवन का आइना है. इस लघुकथा संग्रह में 12 कहानियों के माध्यम से बानू मुश्ताक ने धर्म, पितृसत्ता, समाज और राजनीति के जाल में फंसी महिलाओं की संवेदनशील और संघर्षपूर्ण दुनिया को सामने रखा है.

Banu Mushtaq becomes first Kannada writer to win International Booker Prize Banu Mushtaq becomes first Kannada writer to win International Booker Prize

भारतीय लेखिका बानू मुश्ताक की लेखनी उस आवाज़ की प्रतीक हैं, जो महिलाओं की चुप्पियों को शब्द देती हैं. उनकी किताब "हार्ट लैंप" के लिए उन्हें और किताब की अनुवादक दीपा भस्थी को International Booker Prize से सम्मानित किया गया है. 'हार्ट लैंप' सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि कर्नाटक की मुस्लिम महिलाओं के जीवन का आइना है. इस लघुकथा संग्रह में 12 कहानियों के माध्यम से बानू मुश्ताक ने धर्म, पितृसत्ता, समाज और राजनीति के जाल में फंसी महिलाओं की संवेदनशील और संघर्षपूर्ण दुनिया को सामने रखा है. ये कहानियां हास्य, भावनाओं और सामाजिक यथार्थ के माध्यम से गहरे मुद्दों को उजागर करती हैं. 

पहली कन्नड़ लेखिका जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय बुकर मिला
77 वर्षीय बानू मुश्ताक कन्नड़ भाषा की पहली लेखिका हैं जिन्हें यह वैश्विक सम्मान मिला है. वह दूसरी भारतीय लेखिका हैं जिन्होंने यह पुरस्कार जीता है. इससे पहले गीतांजलि श्री की रेत समाधि को इंटरनेशनल बुकर प्राइज मिल चुका है. आपको बता दें कि बानू मुश्ताक की कहानियां महज कल्पनाएं नहीं, बल्कि सामाजिक सच्चाईयों का आईना हैं. उन्होंने महिलाओं के हक में लगातार आवाज उठाई और पितृसत्ता को चुनौती दी. निजी जीवन में भी उन्होंने परंपराओं को तोड़ा, अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुना और समानता को अपनाया. 

स्कूली दिनों में लेखन की शुरुआत
उनका लेखन सफर स्कूल के दिनों में ही शुरू हुआ. उनकी पहली कहानी प्रतिष्ठित पत्रिका प्रजामाता में प्रकाशित हुई. तब वह 26 साल की थीं. उनके पिता ने हमेशा उनके लेखन को समर्थन दिया, खासकर तब जब उन्होंने स्कूल के मुश्किल वातावरण के खिलाफ लिखा. बानू मुश्ताक की विचारधारा पर कर्नाटक के प्रगतिशील आंदोलनों, विशेषकर बंदया साहित्य आंदोलन का गहरा असर पड़ा. इन आंदोलनों ने उनके लेखन को धार दी और उन्हें जाति व वर्ग आधारित अन्याय के विरुद्ध लेखनी को हथियार बनाने की प्रेरणा दी.

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मिले हैं कई प्रतिष्ठित सम्मान
"हार्ट लैंप" के अलावा उन्होंने छह लघुकथा संग्रह, एक उपन्यास, कई निबंध और कविताएं भी लिखी हैं. उन्हें कर्नाटक साहित्य अकादमी और दाना चिंतामणि अत्तिमाबे पुरस्कार जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं. उनकी चर्चित रचनाओं में हसीना गटटू इथारा कथेगलु (2013) और हदीना स्वयंवर (2023) शामिल हैं. बानू मुश्ताक का लेखन केवल साहित्य नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की मशाल है. उनकी कहानियां महिलाओं की वेदना, संघर्ष और आत्मसम्मान की मुखर आवाज बनकर पाठकों के दिलों को गहराई से झकझोरती हैं.