
 IITian couple Sakshi and Arpit 
 IITian couple Sakshi and Arpit हम सब शहरी जीवन की तरफ भाग रहे हैं और प्रकृति और और साधारण जीवन को पूरी तरह भूल चुके हैं. हम पेड़ों को काटकर उन गगनचुंबी इमारतों को बनाकर खुद को प्रकृति से दूर कर रहे है. हवा दिन-ब-दिन प्रदूषित होती जा रही है और हम जो भोजन करते हैं वह कीटनाशकों और केमिकल से भरा हुआ है. शहरी जीवन की ये ग्लैमर भरी दुनिया की ओर भागना वास्तव में पर्यावरण को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा रहा है. लेकिन कुछ लोग है जो इसके लिए लगातार काम कर रहे हैं. इन्हीं में एक है ये IIT कपल जिसने अमेरिका की चकाचौंध और ग्लैमर की दुनिया को छोड़ पर्यावरण को बचाने का सोचा. साक्षी और अर्पित आज जैविक खेती कर रहे हैं. इसलिए उन्होंने अपनी अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी को अलविदा कहने का फैसला किया.
छोड़ी ग्लैमर की दुनिया
दरअसल, रॉबर्ट फ्रॉस्ट की प्रसिद्ध कविता द रोड नॉट टेकन इस कपल पर बहुत सटीक बैठती है. साक्षी और अर्पित ने एक असामान्य रास्ते पर चलकर ग्लैमर की दुनिया से दूर रहने का एक स्थायी तरीका अपनाया. साक्षी और अर्पित ने IIT बॉम्बे और दिल्ली से ग्रेजुएशन करने के बाद भारत और अमेरिका की कुछ बेहतरीन टेक और फाइनेंस कंपनियों में कई साल तक काम किया. कॉरपोरेट जगत में इतने साल तक मेहनत करने के बाद, दोनों ने खुद को थका हुआ महसूस किया.

एक समय के बाद, इस पावर कपल ने महसूस किया कि जीवन में क्या जरूरी है इसको नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, उन्हें ग्लैमर की दुनिया की चकाचौंध से अंधा नहीं होना चाहिए. ये वो समय था जब दोनों ने फैसला किया और अपना बैग पैक किया और साल भर का ब्रेक लिया और 2016 में दक्षिण अमेरिका चले गए. उन्होंने चिली पब्लिक स्कूल में स्वेच्छा से काम किया. उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ बातचीत की, संस्कृति की खोज की और पूरी प्रक्रिया के दौरान अपनी समझ को बढ़ाया.
अमेरिका से जीवंतिका फार्म तक का सफर कैसे तय हुआ?
जब आपके पास कुछ करने का जुनून और जोश होता है, तो आप इसे तब भी करते हैं, जब परिस्थितियां आपके खिलाफ हो. साक्षी और अर्पित अपने कृषि-आधारित जीवन को एक वास्तविकता बनाने के लिए इतने उत्सुक थे कि वे प्राकृतिक खेती के बारे में जानने के लिए ऑरोविले, तमिलनाडु चले गए. फिर, उन्होंने मध्य प्रदेश के बड़नगर में एक मिट्टी का घर बनाया और वहीं से अपनी खेती की यात्रा शुरू की.

मिट्टी का घर रहता है एकदम ठंडा
जहां हम एसी और पंखे के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते वहीं साक्षी और अर्पित को इसकी जरूरत महसूस भी नहीं होती है. चिलचिलाती गर्मी के दिनों में भी उनका मिट्टी का घर ठंडा रहता है. दोनों अपने 1.5 एकड़ के खेत में सब कुछ उगाते हैं - सब्जियां, फल और दालें. ये सभी बिना केमिकल और कीटनाशकों से उगाई जाती हैं.
जीवंतिका के बारे में अर्पित और साक्षी अपनी आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से कहते हैं, “हमारी आर्थिक व्यवस्था हमें प्रकृति का अंधाधुंध शोषण करने की अनुमति देती है. लेकिन हमें अभी इसका एहसास नहीं है. यह हमें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से गहरे तरीके से नुकसान पहुंचाती है. हमारी भलाई इसी में है कि हम इन सब मे कुछ बदलाव करें. हम जीने का एक वैकल्पिक तरीका खोजने के लिए सक्रिय रूप से प्रयोग कर रहे हैं जो आने वाले भविष्य के लिए ज्यादा सार्थक और प्रासंगिक है.”