
राजस्थान की संस्कृति, रंगों, पहनावे और खानपान में एक गहरी मिठास है- और उसी मिठास का एक अहम हिस्सा है "घेवर", जो सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और भावनाओं का प्रतीक है. तीज, गणगौर और सिंजारे जैसे त्योहारों पर बनने वाला घेवर हर साल सावन में हर घर की थाली की शान बनता है.
मैदे, घी और दूध से बनी इस जालीदार मिठाई को तलकर तैयार किया जाता है और फिर उस पर चाशनी, रबड़ी या मलाई डाली जाती है. परंपरागत रूप से घेवर तीन रूपों में बनाया जाता था- फीका, मीठा और रबड़ी वाला. लेकिन अब इसका स्वाद बदल रहा है, और इसके पीछे हैं कुछ युवा इनोवेटर- जैसे जयपुर की चार्टर्ड अकाउंटेंट अंजलि जैन.
परंपरा से जुड़ा नवाचार
अंजलि जैन मिठाइयों में इनोवेशन के लिए जानी जाती हैं. वह मानती हैं, “परंपराएं तभी ज़िंदा रह सकती हैं जब वे हर पीढ़ी तक उनकी भाषा में पहुंचें.” आज की पीढ़ी, खासकर Gen-Z, पारंपरिक मिठाइयों से थोड़ी दूर हो गए हैं. कारण है स्वाद में बदलाव और हेल्थ को लेकर बढ़ती समझदारी. ऐसे में अंजलि ने घेवर को नया जीवन देने का फैसला किया और उसे मॉडर्न ट्विस्ट के साथ फिर से पेश किया.
नए स्वाद, नई सोच
अंजलि ने सबसे पहले घेवर को चॉकलेट, स्ट्रॉबेरी, रोज़ और मैंगो जैसे फ्लेवर में पेश किया. लेकिन उनका सफर यहीं नहीं रुका. धीरे-धीरे उन्होंने घेवर में कुछ बेहद इनोवेटिव और जेन-ज़ी फ्रेंडली स्वाद शामिल किए, जैसे:
हर एक फ्लेवर किसी खास संस्कृति, मौसम या स्वाद की याद दिलाता है, जो पारंपरा को आज की दुनिया से जोड़ता है.
घेवर सिर्फ मीठा नहीं... खट्टा, तीखा और नमकीन भी
घेवर के साथ प्रयोग सिर्फ मीठे तक सीमित नहीं रहा. अंजलि ने चार यूनिक और चौंकाने वाले फ्लेवर तैयार किए हैं जो घेवर को एक पूरी तरह नया अनुभव बना देते हैं:
घेवर है उत्सव
घेवर को उपहार के रूप में भी खास बनाने के लिए अंजलि ने इसकी पैकेजिंग में सावन और तीज की झलक जोड़ी है. डिज़ाइन में झूले झूलती महिलाएं दिखाई देती हैं, जो न सिर्फ उत्सव की भावना को ज़िंदा करती हैं, बल्कि घेवर को एक सांस्कृतिक अनुभव भी बनाती हैं.
घेवर का इतिहास: एक हजार साल पुरानी परंपरा
घेवर की जड़ें करीब 1000 साल पुरानी मानी जाती हैं. इसका ज़िक्र प्राचीन राजस्थानी साहित्य और लोकगीतों में मिलता है. कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति जयपुर या अलवर क्षेत्र से हुई थी और धीरे-धीरे यह पूरे उत्तर भारत में लोकप्रिय हो गया. घेवर बनाना आसान नहीं- यह एक कला है, जिसकी परतें और जालीदार बनावट सटीक तापमान और तकनीक की मांग करती हैं. अच्छे घेवर बनाने के लिए हलवाई को सालों तक अभ्यास करना पड़ता है.
नवाचार और परंपरा का अद्भुत संगम
अंजलि जैन ने यह साबित कर दिया है कि अगर परंपरा में इनोवेशन जोड़ा जाए, तो वह नई पीढ़ियों के दिलों तक भी पहुंच सकती है. घेवर अब सिर्फ तीज की मिठाई नहीं- वह स्वाद और संस्कृति का अनोखा संगम बन चुकी है.