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Garhwali chocolate: उत्तराखंड के इस शहर में है अंग्रेजों के जमाने की चॉकलेट की दुकान... जहां खोए से बनती है चॉकलेट, देश-विदेश से मिलते हैं ऑर्डर

ब्रिटिश शासन के दौरान, लैंसडाउन में कुछ मिठाई की दुकान के मालिकों ने 'चॉकलेट' बनाना शुरू किया था.'चॉकलेट' अंग्रेजों के लिए सबसे अधिक मांग वाला व्यंजन था. लेकिन शहर का ये स्वाद अब विलुप्त होने की कगार पर आ गया है. यहां अब सिर्फ दो मिठाई की दुकानें अभी भी इसे बना रही हैं.

Chocolate bar (Representative Image) Chocolate bar (Representative Image)

लैंसडाउन (Lansdowne)उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित एक छावनी नगर है जो अपने पुराने चर्चों और विचित्र संरचनाओं के लिए जाना जाता है. लैंसडाउन को सन् 1887 में ब्रिटिश काल में बसाया गया था. यहां पर भारत के औपनिवेशिक इतिहास से जुड़ा पाक कला का एक भाग है जिसे अगर संरक्षित नहीं किया गया तो वह विलुप्त भी हो सकता है. 

अंग्रेजों के जमाने की दुकान
ब्रिटिश शासन के दौरान, लैंसडाउन (तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन के नाम पर) में कुछ मिठाई की दुकान के मालिकों ने 'चॉकलेट' बनाना शुरू कर दिया था. स्थानीय सामग्रियों का उपयोग करके बनाया गया, 'चॉकलेट' अंग्रेजों के लिए सबसे अधिक मांग वाला व्यंजन था और उनके शीर्ष अधिकारी अक्सर शहर की यात्रा पर किलो और किलो पैक कराते थे. स्थानीय लोगों के अनुसार, अंग्रेजों ने स्थानीय दुकानदारों को भी इसे थोक में बनाने के लिए प्रोत्साहित किया और जल्द ही लैंसडाउन की अपनी 'चॉकलेट' की बात दूर-दूर तक पहुंच गई.

एक सदी से भी अधिक समय के बाद, भारत के औपनिवेशिक इतिहास का यह छिपा हुआ पाक ​​रत्न अब विलुप्त होने के कगार पर है और शहर में सिर्फ दो मिठाई की दुकानें अभी भी इसे बना रही हैं. दोनों दुकानों के मालिक भी एक ही गोत्र के हैं लेकिन अब लैंसडाउन के सदर बाजार में अलग-अलग कारोबार चला रहे हैं.

विदेश से मिलते हैं ऑर्डर
वर्तमान में यह चॉकलेट 380 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर बिकती है. इसे तीन सामग्रियों - खोया, शुद्ध देसी घी और 'भूरा' (कुटी हुई चीनी) का उपयोग करके बनाया जाता है. कई लोग जिन्हें दुकान के बारे में पता है वो अभी भी इसे खरीदते हैं और दोनों दुकानों को विदेश से भी कुछ ऑर्डर मिलते हैं. हालांकि, किसी भी सरकार द्वारा कभी भी लुप्त होती स्वादिष्टता को संरक्षित करने या राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटकों के बीच इसे बढ़ावा देने का प्रयास नहीं किया गया,जिसकी वजह से स्थानीय लोगों को खेद है.

गढ़वाली चॉकलेट की दो दुकानों में से एक, लक्ष्मी मिष्ठान भंडार, सदर बाजार के मालिक मनोज कुमार मिश्रा ने इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से कहा, “मेरे परदादा ने यह दुकान 1903 में शुरू की थी. अंग्रेजों के जमाने में हमने 'चॉकलेट' बनाना शुरू किया था. हमने सुना है कि अंग्रेज लोग इसका स्वाद चखते थे. इस मिठाई को इसका नाम चॉकलेट जैसे भूरे रंग और बनावट के कारण मिला है. कई दशकों तक, लैंसडाउन के लोगों और बच्चों के लिए, चॉकलेट का मतलब यह मिठाई थी, न कि ब्रांडेड बार जो बाद में बाजारों में भर गए. हम अभी भी विदेशों में कई ऑर्डर भेजते हैं.

दूर-दूर से आते हैं लोग
सदर बाजार में नई मिश्रा मिठाई की दुकान चलाने वाले अपने परिवार की चौथी पीढ़ी के 28 वर्षीय विनय मिश्रा कहते हैं, "'चॉकलेट' बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली तीन सामग्री - पिसी चीनी, खोया और घी - शुद्ध होना चाहिए नहीं तो फाइनल प्रोडक्ट के रंग, बनावट और स्वाद में वो कमी दिखाई देती है.'' इन सामग्रियों को उच्च तापमान पर कम से कम एक घंटे के लिए एक साथ भूना जाता है और फिर एक ट्रे में डाला जाता है. उन्हें जमने में 4-5 घंटे लगते हैं और फिर चॉकलेट को टुकड़ों में काट दिया जाता है. इसकी शेल्फ लाइफ कम से कम 15 दिनों की होती है.

कम ही लोग खरीद पाते थे
विनय ने बताया कि जो लोग इसके बारे में जानते हैं वे अभी भी दूर-दूर से खरीदारी करने आते हैं लेकिन बहुत से लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं. हमने लैंसडाउन की चॉकलेट को बढ़ावा देने या संरक्षित करने के लिए सरकार की किसी पहल के बारे में कभी नहीं सुना. कस्बे में रहने वाले एक बुजुर्ग मनमोहन सिंह याद करते हैं कि ऐसे दिन थे जब सभी के लिए 'चॉकलेट' खाना संभव नहीं था और परिवार विशेष अवसरों पर इसे खरीदते थे.

उन्होंने आगे कहा, “यह एक उच्च व्यंजन था जो ब्रिटिश काल के दौरान बहुत महंगा था. अंग्रेज इसे बहुत पसंद करते थे और उन्होंने लैंसडाउन के स्थानीय लोगों को इसे बनाने के लिए प्रोत्साहित किया. समय के साथ, अधिकांश दुकानों ने कम मांग के कारण इसे बनाना बंद कर दिया, लेकिन जिन्होंने इसे एक बार चखा है, वे इसे जीवन भर याद रखते हैं और इसे खरीदने के लिए फिर से वापस आते हैं.”

लैंसडाउन उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है, इसलिए मिठाई को राज्य के कुछ हिस्सों में 'गढ़वाली चॉकलेट' के रूप में भी जाना जाता है जो पुराने लोग लैंसडाउन आते हैं, उन्हें पता है कि यहां की चॉकलेट खाए बिना उनकी यात्रा अधूरी है. इस मिठाई का एक अन्य प्रकार "बाल मिठाई" उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में लोकप्रिय है.