
जब भी किसी का हौसला बढ़ाना हो तो हम अक्सर कहते हैं कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. लेकिन महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के एक युवा रामदास हेमराज मारबड़े ने इस पंक्ति को सच कर दिखाया है. एक आम से ग्रामीण परिवार का बेटा, जो कभी आजिविका कमाने के लिए गोलगप्पे बेचा करता था, आज भारत की टॉप अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था ISRO (इसरो) में काम कर रहा है.
रामदास की कहानी आपका मन छू लेगी और दिल को गर्व से भर देगी. उनकी जर्नी इस बात का प्रमाण है कि सपने चाहे कितने भी मुश्किल क्यों न लगें, अगर ज़िंदा रखे जाएं तो वे हकीकत बन सकते हैं. आज सोशल मीडिया और इन्फ्लुएंसर्स के जमाने में रामदास मारबड़े एक सच्चे हीरो हैं. वह इस बात की मिसाल हैं कि अगर समर्पण हो, तो कोई भी मुश्किल आड़े नहीं आ सकती.
छोटे गांव से बड़ा सपना
रामदास का जन्म महाराष्ट्र के गोंदिया जिले की तिरोड़ा तहसील के एक छोटे से गांव खैरबोड़ी में हुआ. उनका परिवार बेहद साधारण था. पिता एक सरकारी स्कूल में चपरासी के रूप में कार्यरत थे (अब सेवानिवृत्त) और मां गृहिणी थीं. आर्थिक तंगी हमेशा रही, लेकिन घर से मिले सपोर्ट और प्रोत्साहन उनकी सबसे बड़ी ताकत बना.
पढ़ाई और काम के बीच संतुलन
कॉलेज में पढ़ाई के लिए उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे. ऐसे में, रामदास के सामने दो ही रास्ते थे- या तो अपने सपनों को छोड़ दें, या फिर दोगुनी मेहनत करें। उन्होंने दूसरा रास्ता चुना. परिवार की मदद के लिए उन्होंने गोलगप्पे बेचना शुरू किया, और अपने ठेले को गांव-गांव ले जाकर बेचते थे. ज़्यादातर लोग उन्हें सिर्फ एक साधारण ठेले वाले के रूप में देखते थे, लेकिन बहुत कम लोग जानते थे कि दिनभर की मेहनत के बाद रामदास रात को हल्की रोशनी में बैठकर किताबों में डूब जाते थे.
उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई गणेश हाई स्कूल, गुमधवाड़ा से पूरी की और फिर 12वीं की पढ़ाई सी.जी. पटेल कॉलेज से की. उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने नासिक के वाईसीएम कॉलेज से डिस्टेंस से बी.ए. की डिग्री ली. जहां बाकी छात्र कोचिंग और क्लासरूम पर निर्भर रहते थे, रामदास ने सेल्फ-स्टडी पर फोकस किया.
तकनीकी कौशल की ओर बढ़ते कदम
रामदास को जल्द ही यह समझ आ गया कि सिर्फ अकादमिक डिग्रियां तकनीकी क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. इसलिए उन्होंने तिरोड़ा के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) में प्रवेश लिया और वहां पंप ऑपरेटर-कम-मेकैनिक कोर्स किया. यह फैसला उनकी जिंदगी के लिए निर्णायक साबित हुआ. ITI में उन्होंने स्किल ट्रेनिंग ली जैसे सेंट्रीफ्यूगल और रेसिप्रोकेटिंग पंपों का संचालन, तेल उपकरणों का रखरखाव, जल उपचार और फिल्ट्रेशन प्रणालियां आदि. ये तकनीकी कौशल बाद में ISRO में उनके काम की नींव बने.
इसरो में जगह बनाना
साल 2023 में इसरो ने अपने अप्रेंटिस ट्रेनी पदों के लिए आवेदन जारी किए. रामदास ने इसके लिए आवेदन कर दिया. कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद, उन्होंने 2024 में नागपुर में आयोजित लिखित परीक्षा पास की और फिर अगस्त 2024 में श्रीहरिकोटा में आयोजित स्किल टेस्ट में भी अच्छा प्रदर्शन किया. मई 2025 में वह ऐतिहासिक पल आया जब उन्हें ISRO से नियुक्ति पत्र मिला.
अब रामदास ISRO के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर में पंप ऑपरेटर-कम-मेकैनिक के रूप में कार्यरत हैं. भले ही उनका काम रॉकेट डिजाइन या सैटेलाइट प्रोग्रामिंग न हो, लेकिन उनकी भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है. वे ऐसी तकनीकी मशीनरी का संचालन और रखरखाव करते हैं जो भारत के सबसे आधुनिक अंतरिक्ष मिशनों में सहायक होती है.
रामदास मारबड़े की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि हर उस सपने की है जो सीमाओं से परे जाकर अपने लिए आसमान तलाशते हैं. वह आज उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं जो मुश्किलों के बावजूद हार मानने को तैयार नहीं हैं.