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अच्छी पहल! इस गांव ने खत्म की विधवापन से जुड़ी सभी कुरीतियां, कहा-संविधान में सभी को सम्मान से जीने का अधिकार 

पंचायत में इन सभी कुरीतियों को खत्म करने को प्रस्ताव रखा गया था. जिसे पारित कर दिया गया है. प्रस्ताव में देश के संविधान का हवाला देते हुए कहा गया था कि कानून के अनुसार, हर नागरिक को स्वतंत्रता के साथ जीने का समान अधिकार है. लेकिन इन प्रथाओं ने महिलाओं के अधिकारों को छीन लिया है. इस गांव और देश की प्रत्येक विधवा को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है.

Widow Widow
हाइलाइट्स
  • गांवों में औरतों को ऐसे देखना दर्दनाक है 

  • ऐसी कुरीतियों के खिलाफ बनना चाहिए कानून: सरपंच

भारतीय समाज में जब भी कोई औरत विधवा होती है तो उसे कई सारे सदियों से चल रहे रीति-रिवाजों को मानना पड़ता है. जैसे सफेद साड़ी पहनना, रंग-बिरंगे कपड़े न पहनना, चूड़ियां तोडना आदि. लेकिन अब पुणे से लगभग 250 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले का एक गांव ने विधवापन से जुड़ी सभी कुरीतियों पर प्रतिबंध लगा दिया है. 

जी हां, कोल्हापुर जिले की शिरोल तहसील के हेरवाड़ गांव ने सामाजिक सुधारों को तोड़ते हुए माथे से कुमकुम (सिंदूर) पोंछने, चूड़ियां तोड़ने और मंगलसूत्र तोड़ने जैसी सभी कुरीतियों को खत्म कर दिया है.

पंचायत में रखा गया था प्रस्ताव 

हाल ही में हुई ग्राम पंचायत की बैठक में यह ऐतिहासिक फैसला लिया गया. बैठक में पति की मृत्यु के बाद अपनाई जाने वाली सभी प्रथाओं को खत्म करने का प्रस्ताव रखा गया था. बैठक के बाद हेरवाड़ ग्रामपंचायत के सदस्यों ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया है. 

क्या लिखा था प्रस्ताव में?

आपको बता दें, इस प्रस्ताव में कहा गया था, "हमारे समाज में अंतिम संस्कार के दौरान पति की मृत्यु के बाद सिंदूर पोंछने, चूड़ियों को तोड़ने, बिछिया को हटाने आदि की प्रथा है. विधवाओं को किसी भी प्रकार के सामाजिक समारोह में शामिल होने की अनुमति नहीं है.”

प्रस्ताव में देश के संविधान का हवाला देते  हुए कहा गया, “कानून के अनुसार, प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता के साथ जीने का समान अधिकार है.  इन प्रथाओं ने महिलाओं के अधिकारों को छीन लिया है जो वास्तव में कानून और संविधान के खिलाफ है. इस गांव और देश की प्रत्येक विधवा को जीने का अधिकार है. इसलिए सम्मानपूर्वक विधवाओं से सभी प्रथाओं को तत्काल प्रभाव से समाप्त किया जा रहा है. साथ ही इस संकल्प के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए गांव में जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा."

गांवों में औरतों को ऐसे देखना दर्दनाक है 

एएनआई की रिपोर्ट के हवाले से हेरवाड़ गांव के सरपंच सुरगोंडा पाटिल ने कहा, "इस प्रस्ताव को लाने का उद्देश्य हमारे गांवों की विधवाओं को सशक्त बनाना था, जो इन प्रथाओं के कारण विभिन्न मुद्दों का सामना कर रही थीं. अकेले हमारे गांव में कोविड-19 के दौरान, 12-13 पुरुषों की जान चली गई. इन पुरुषों की पत्नियों को इन सभी कुरीतियों से गुजरना पड़ा. उन महिलाओं को ऐसे देखना दर्दनाक था जो पहले से ही अपने पति को खोने के बाद दर्द में थीं. इसलिए हमने इन सभी कुरीतियों को समाप्त करने का फैसला किया है.”

ऐसी कुरीतियों के खिलाफ बनना चाहिए कानून 

गांव के सरपंच ने आगे कहा कि इन कुरीतियों को खत्म करके हमने देश के सामने एक उदाहरण पेश किया है. हम सरकार से भी इसके खिलाफ कानून बनाने की अपील करना चाहते हैं. इस बीच, हम आस-पास के गांवों में भी जागरूकता अभियान चलाने वाले हैं. इसमें हम सभी को गांवों और विधवापन प्रथाओं को जड़ से खत्म करने की अपील करेंगे.