
हिसार के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) को गिर नस्ल की उच्च गुणवत्ता वाली गायों की संख्या बढ़ाने की दिशा में एक बड़ी सफलता मिली है. संस्थान ने देश की पहली क्लोन गिर गाय ‘गंगा’ के अंडाणु से ओपीयू-आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल कर गिर नस्ल की एक बछड़ी का जन्म करवाया है. खास बात यह है कि भ्रूण साहीवाल नस्ल की गाय के गर्भ में प्रत्यारोपित किया गया था, जिसने 11 जुलाई को बछड़ी को जन्म दिया.
क्लोन और ओपीयू-आईवीएफ तकनीक का प्रयोग
वैज्ञानिकों ने बताया कि इस तकनीक के जरिए उन्होंने सिर्फ 39 महीनों में दो पीढ़ियां तैयार कर दीं, जबकि सामान्य तरीके से ऐसा करने में 60 से 84 महीने लगते हैं. क्लोन ‘गंगा’ के अंडों को अल्ट्रासाउंड से पहचानकर ओपीयू तकनीक से बाहर निकाला गया और फिर गिर नस्ल के सांड के सीमेन से लैब में निषेचित कर भ्रूण बनाए गए. कुल 12 भ्रूणों में से 5 को साहीवाल गायों में प्रत्यारोपित किया गया, जिनमें से एक गाय ने स्वस्थ बछड़ी को जन्म दिया.
तेजी से बढ़ेगी दूध उत्पादन करने वाली नस्ल
एनडीआरआई वैज्ञानिकों के अनुसार, इस तकनीक से गिर जैसे उत्तम नस्ल के दुधारू पशुओं की संख्या तेजी से बढ़ाई जा सकती है. जहां एक गाय प्राकृतिक तरीके से अपने जीवन में 10-12 बच्चे देती है, वहीं इस तकनीक से एक ही मादा से हर महीने 4 बार अंडाणु निकाले जा सकते हैं. एक बार में 20–50 अंडे लिए जाते हैं, जिनसे 4–20 भ्रूण बन सकते हैं और इन्हें अलग-अलग गायों के गर्भ में प्रत्यारोपित कर नई पीढ़ी पैदा की जा सकती है.
देश में गिर गायों की संख्या लगभग 9 लाख
इस सफलता में डॉ. धीर सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम डॉ. मनोज कुमार सिंह, डॉ. नरेश सेलोकर, डॉ. प्रियंका सिंह, सहित कई अन्य विशेषज्ञ शामिल रहे. राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान के निदेशक डॉ. धीर सिंह ने कहा कि देश में गिर गायों की संख्या लगभग 9 लाख है और इस तकनीक से इस नस्ल को संरक्षित और संवर्धित करने में मदद मिलेगी. बछड़ी का नाम ‘श्रावणी’ रखा गया है क्योंकि इसका जन्म सावन माह में हुआ. अब इसके डीएनए की जांच की जाएगी ताकि यह पता चले कि यह कितने प्रतिशत गिर नस्ल की है.
-कमलदीप की रिपोर्ट