
एक नई रिसर्च में पाया गया है कि रोज़मर्रा के प्लास्टिक पैकेजिंग और किचन के सामान के इस्तेमाल से भी छोटे-छोटे प्लास्टिक कण हमारे खाने-पीने में शामिल हो सकते हैं. ये कण माइक्रोप्लास्टिक (1-1000 माइक्रोमीटर) और नैनोप्लास्टिक (1 माइक्रोमीटर से छोटे) कहलाते हैं.
स्टडी में क्या पाया गया?
यह स्टडी Food Packaging Forum (ज्यूरिख) से जुड़ी लिसा ज़िमरमैन ने स्विट्ज़रलैंड के Eawag और नॉर्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (NTNU) से जुड़े सहयोगियों के साथ मिलकर की. टीम ने 103 शोधपत्रों की समीक्षा की और पाया कि ज्यादातर में प्लास्टिक पैकेजिंग या उपकरणों के संपर्क में आने वाले फूड प्रोडक्ट्स में प्लास्टिक कण पाए गए.
हालांकि, सिर्फ 7 स्टडीज़ ही सबसे उच्च मानकों पर खरी उतरीं. करीब एक-तिहाई स्टडीज ने समय, तापमान और दोहराए जाने वाले इस्तेमाल जैसे पहलुओं को ध्यान में रखकर परिणाम दिए.
माइक्रोप्लास्टिक हमारे खाने में कैसे आते हैं?
किन आदतों और सामान से बचें
सेहत पर क्या असर पड़ता है?
एक शोध में पाया गया कि जिन मरीजों की धमनियों से निकाले गए प्लाक में माइक्रोप्लास्टिक थे, उन्हें दिल का दौरा, स्ट्रोक या मौत का ज्यादा खतरा था. ऐसे में, बहुत जरूरी है कि हम प्लास्टिक से जितना हो सके उतना बचें. रिसर्चर्स का कहना है कि सरकारों को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए. रियल यूज के दौरान (समय, तापमान, बार-बार इस्तेमाल) प्लास्टिक के कणों की जांच को अनिवार्य करना चाहिए. एकरूप टेस्टिंग से कंपनियां सुरक्षित उत्पाद बना पाएंगी और उपभोक्ता सही विकल्प चुन सकेंगे.
आपके लिए आसान बदलाव
यह स्टडी npj Science of Food जर्नल में प्रकाशित हुई है.
-------End------