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ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स सिस्टम से होती है पढ़ाई...रोबोट शालू को मिला बच्चों की शिक्षा का जिम्मा

कार्डबोर्ड और बाकी वेस्ट मेटेरियल से बनाया गया रोबोट. आज बच्चों को शिक्षा देने में कर रहा है मदद. यह रोबोट 9 भारतीय और 38 विदेशी भाषाओं सहित 47 भाषाएं बोल सकता है.

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हाइलाइट्स
  • बच्चों को पढ़ाता है रोबोट

  • 47 भाषाएं बोल सकता है रोबोट

भारत में पिछले कुछ सालों से शिक्षा का महत्व काफी बढ़ा है. आज के हालात में भारत शिक्षा के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ रहा है. वहीं पिछले कुछ सालों में शिक्षा का स्तर इतना ऊंचा हुआ है कि भारत से पढ़ाई करे हुए छात्र देश का नाम अलग-अलग क्षेत्र में रोशन कर रहे हैं. वहीं भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी अपना वर्चस्व कायम कर रहा है. भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सबसे तेजी से बढ़ रही है. 

बच्चों को पढ़ाता है रोबोट
आज की दुनिया में शिक्षा बेहद ही जरूरी है. वहीं बच्चों के भविष्य को पढ़ाई के क्षेत्र में सवारने का ज़िम्मा शिक्षकों का होता है. एक तरफ जहां भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी काफी लेवल पर विकसित हो रही है. अब शिक्षा का जिम्मा मुंबई में artifical इंटेलिजेन्स सिस्टम को सौंपा गया है. लगातार दुनिया में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अलग-अलग और नए अविष्कार हो रहे हैं. ऐसे में ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स सबसे उपयोगी अविष्कारों में से एक है. वहीं भारत में भी ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स को लेकर काफी अविष्कार किये जा रहे हैं. ऐसे ही मुंबई में एक रोबोट आज कल छात्रों को पढ़ा रही है. इस रोबोट का नाम शालू है और यह देश की दूसरी ऐसी रोबोट है जो बच्चों को पढ़ाने में सक्षम है. 

47 भाषाएं बोल सकता है रोबोट
केंद्रीय विद्यालय, IIT बॉम्बे में कंप्यूटर विज्ञान के शिक्षक, दिनेश कुंवर पटेल ने दुनिया का पहला सामाजिक और शैक्षिक ह्यूमनॉइड रोबोट 'शालू' विकसित किया है. यह रोबोट 9 भारतीय और 38 विदेशी भाषाओं सहित 47 भाषाएं बोल सकता है. इस रोबोट को घर में ही बनाया गया है और इसकी सबसे खास बात ये है कि इसको कार्डबोर्ड और बाकी वेस्ट मटेरियल से बनाया गया है. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को शालू के जरिए पढ़ाई करने में काफी आसानी होती है. बच्चों को अपने सवालों के जवाब भी मिल जाते है और मजा भी आता है. बच्चों को पढ़ाने के लिए इसमें जो सब्जेक्ट और टॉपिक पढ़ना होता है उसकी फाइल अपलोड  कर दी जाती है और उसके जरिए ही शालू बच्चों को पढ़ाती है.