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School Made from Sugarcane Waste: भारत में पहली बार! ईंट-पत्थर नहीं बल्कि गन्ने के कचरे से बना है नोएडा का यह स्कूल

उत्तर प्रदेश के नोएडा में गन्ने के कचरे से बनी Sugarcrete (कंस्ट्रक्शन ब्लॉक) यह स्कूल देश में ग्रीन आर्किटेक्चर की तरफ एक अहम कदम है.

India gets first school made of sugarcane waste bricks in Noida India gets first school made of sugarcane waste bricks in Noida

भारत में आर्किटेक्चर क्षेत्र में हर रोज नए-नए बदलाव आ रहे हैं. कंस्ट्रक्शन को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए अलग-अलग निर्माण मैटेरियल्स पर एक्सपेरिमेंट किए जा रहे हैं. हाल ही में, नोएडा में गन्ने के कचरे से बने कंस्ट्रक्शन मैटेरियल से एक स्कूल का निर्माण किया गया है. आपको शायद यकीन न हो लेकिन यह सच है. उत्तर प्रदेश के नोएडा में गन्ने के कचरे से बना यह स्कूल देश में ग्रीन आर्किटेक्चर की तरफ एक अहम कदम है. 

यह प्रोजेक्ट यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन (UEL), इंडियन मैन्यूफेक्चरर केमिकल सिस्टम्स टेक्नोलॉजीस (CST) और पंचशील बालक इंटर कॉलेज (PBIC) के बीच कॉलोबोरेशन है. यह स्कूल पंचशील बालक इंटर कॉलेज में बनाया गया है. अच्छी बात यह है कि गन्ना उत्पादन के मामले में दुनियाभर में भारत टॉप पर है. ऐसे में, यह कंस्ट्रक्शन सेक्टर में मददगार हो सकता है. 

क्या है शुगरक्रीट?

  • साल 2023 में UEL के रिसर्चर एलन चांडलर और आर्मर गुटीर्रेज़ रिवास ने शुगरक्रीट विकसित की. 
  • गन्ने से जूस निकालने के बाद जो कचरा बच जाता है उसे ही बैगास कहते हैं. इस कचरे में मिनरल बाइंडर्स मिलाकर इको-फ्रेंडली कंस्ट्रक्शन ब्लॉक बनाए, जिसे शुगरक्रीट नाम दिया गया. 
  • यह शुगरक्रीट पारंपरिक तौर से बनी ईंटों की तुलना में छह गुना कम कार्बन फुटप्रिंट छोड़ता है. 
  • यह पहली बार है कि शुगरक्रीट का इस्तेमाल पूरा कमरा बनाने के लिए किया गया है.  
  • कंक्रीट बेस पर बने इस क्लासरूम की दीवारें शुगरक्रीट ब्लॉक्स को इंटरलॉक किया गया है और सीमेंट की जगह चूने का इस्तेमाल किया गया है. 
  • छत के निर्माण के लिए स्टील फ्रेम का इस्तेमाल किया गया है और छत में एक क्लेरेस्टोरी विंडो शामिल है जहां से नेचुरल लाइट अंदर आती है और  वेंटिलेशन होता है. 
  • स्कूल के डिजाइन में मानसून के दौरान छात्रों को सुरक्षित रखने के लिए एक बरामदा भी शामिल है. 

और भी हो रहा हैं निर्माण?

शुगरक्रीट का प्रयोग सिर्फ इस स्कूल तक सीमित नहीं है. यह टीम अब एक एनजीओ प्रयत्न फाउंडेशन के सहयोग से हरियाणा के हिसार में एक और शुगरक्रीट-बेस्ड फैसिलिटी का निर्माण कर रही है. यह केंद्र 150 गरीब बच्चों को सुविधाएं देगा. 

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यूईएल के छात्रों और कर्मचारियों ने लोकल पॉलिटेक्निक छात्रों और रिसर्चर्स के साथ हिसार में वर्कशॉप्स भी आयोजित कीं. इन वर्कशॉप्स में बताया गया कि भारत के देशी रेशों और प्राकृतिक रंगों का उपयोग इनडोर तापमान को कंट्रोल करने के लिए कैसे किया जा सकता है.

सीसीएस हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के संस्थापक सुनील शिंगल और यूईएल के बीच भारत भर में शुगरक्रीट के इस्तेमाल का विस्तार करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए गए.