

एक पत्ते में लिपटे हुए छाली, कत्था, चूना और कुछ मसाले. पान ऐसी चीज़ है जिसके बारे में सुनकर कई लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. पान और भारत का रिश्ता इतना गहरा है कि पान के बीड़े ने साहित्य से लेकर लोकगीतों तक में जगह बनाई है. 'वेपिंग' के दौर में जीने वाले कई लोगों को लग सकता है कि पान का युग खत्म हो गया है लेकिन आगर मालवा जिले का एक पान इतना प्रसिद्ध है कि यहां से गुज़रने वाला हर शख्स इसका मज़ा लेना चाहता है.
क्यों फेमस है हाइवे का यह पान?
मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के हाइवे पर मौजूद है मनीषा पान की दुकान. यहां सादे पान से लेकर नवरत्न पान तक सब कुछ मिलता है. शादी स्पेशल पान भी मिलता है. लोग इस पान को खूब पसंद भी करते हैं. लेकिन आखिर इसका राज़ क्या है? दुकान के मालिक हेमराज गवली अपनी दुकान का नाम 'मनीषा के रसीले पान' बताते हुए कहते हैं, "हमारे पान कितने मशहूर हैं, यह तो जनता फैसला करती है. लेकिन हम अच्छी क्वालिटी के पान ही इस्तेमाल करते हैं."
वह कहते हैं, "हमारे पान के पत्ते उज्जैन और इंदौर से आते हैं. हम किसी और शहर से आए हुए पान के पत्ते इस्तेमाल नहीं करते." पान के पत्तों को लेकर हेमराज की संवेदनशीलता उनके ग्राहकों का दिल भी छूती आई है. उनका पान आगर मालवा सहित राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक, इस हाइवे से निकलने वाले तमाम राहगीरों की पसंद बना हुआ है. हेमराज कहते हैं, "जयपुर से लेकर इंदौर तक, जो एक बार पान खाकर गया, वह दोबारा लौटता है. अपने साथ औरों को भी लेकर आते हैं. पैक भी करवाते हैं."
आगर मालवा के इस मशहूर पान में बहुत तरह के मसाले डाले जाते हैं. साथ ही पान के ऊपर खसखस के दाने और मीठे दाने भी लगाए जाते हैं. पान के ऊपर चेरी भी लगाई जाती है. इसके बाद कई पान एक बार में बनाकर फ्रीज में रखे जाते हैं ताकि उनमें ठंडक आ जाए. पान में खास तरह का कत्था भी लगाया जाता है जो पेट और पाचन के लिए बहुत अच्छा होता है.
शादी के लिए विशेष पान
मनीषा के रसीले पानों के लिए लोगों का प्रेम इतना बढ़ गया है कि लोग अपने सबसे खास दिन पर भी इसे खाना पसंद करते हैं. मनीषा की दुकान पर शादियों के लिए भी विशेष तरह का पान बनाया जाता है जिसपर सोना चांदी का वरक लगाया जाता है. इसके अलावा कुछ खास चटनियां हैं जो इस पान की लज़्ज़त बढ़ाती हैं. नेशनल हाइवे से गुज़रते हुए एक ग्राहक ने कहा, "मैं यहां से गुज़र रहा था और मनीषा पान के बारे में बहुत कुछ सुना था. यहां आया तो देखा कि इनके पास छह-सात तरह के पान हैं."
इसे टेक्नोलॉजी का पिछड़ापन ही कहा जा सकता है कि मोबाइल स्क्रीन पर खबर पढ़ते हुए हेमराज के बनाए हुए पानों का स्वाद और सुगंध महसूस नहीं की जा सकती. हालांकि रुक-रुककर और पलट-पलटकर ये पान खाने के लिए आने वाले लोगों की दीवानगी देखकर समझा ज़रूर जा सकता है कि यह पान कितना लाजवाब होगा.
(आगर मालवा से प्रमोद कारपेंटर का इनपुट)