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खुद थीं इंग्लिश से बीए ग्रेजुएट, पति कॉर्पोरेट में जनरल मैनेजर... और फिर बन गईं टीवी मैकेनिक, जानिए क्यों

आज हम आपको बता रहे हैं पुणे की स्नेहलता ऋषिपाठक के बारे में जिनका टीवी रिपेयरिंग में 17 साल का शानदार करियर रहा है. दिलचस्प बात है कि उन्होंने यह काम 1973 में शुरू किया था.

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जब भी कोई मैकेनिक शब्द बोलता है तो हमारे दिमाग में किसी पुरुष की छवि आती है क्योंकि हमने यही सीखा है कि रिपेयरिंग या मैकेनिक का काम कोई पुरुष ही करता है. महिलाओं के लिए यह काम नहीं है. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं पुणे की स्नेहलता ऋषिपाठक के बारे में जिनका टीवी रिपेयरिंग में 17 साल का शानदार करियर रहा है. दिलचस्प बात है कि उन्होंने यह काम 1973 में शुरू किया था. 

आज अगर उनके कोई पूछता है कि उन्होंने टीवी रिपेयरिंग का काम क्यों किया तो वह कहती हैं, "पुरुष नहीं कर पाए, तो मैंने किया."
लोग हंसते हैं, सोचते हैं मज़ाक कर रही हैं. लेकिन यह उनका सच है. संपन्न परिवार से होने के बावजूद उन्होंने यह काम किया क्योंकि वह करना चाहती थीं. 

शिक्षित परिवार, पारंपरिक माहौल
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, फरवरी 1948 में अहमदनगर में जन्मी स्नेहलता एक शिक्षित परिवार से थीं. पिता डॉक्टर थे, भाई एमबीबीएस कर रहे थे और स्नेहलता ने अंग्रेजी में बीए ऑनर्स किया. 1969 में उनकी शादी पद्माकर ऋषिपाठक से हुई, जो एक्साइड बैटरीज में जनरल मैनेजर थे. शादी के बाद पुणे में उनकी जिंदगी अच्छी चल रही थी. 

टीवी के खराब होने से शुरू हुई कहानी
1973 में उन्होंने नया टीवी खरीदा. कीमत थी 1,700 रुपये- तब के समय में यह बड़ी रकम थी.  लेकिन टीवी में कुछ खराबी आ गई और फिर स्क्रीन पर केवल आवाज आती थी, तस्वीर नहीं. मरम्मत करने वाले कई लोग आए, कोशिश की, लेकिन टीवी वैसा ही रहा. एक साल बीत गया. स्नेहलता का सब्र जवाब देने लगा. 

रिपेयरिंग सीखने का बड़ा फैसला
एक दिन पुणे की एक सड़क पर घूमते समय उन्होंने ज्ञान प्रभोदिनी स्कूल के पास एक टीवी रिपेयरिंग की दुकान देखी. स्नेहलता अंदर गईं और पूछा, "क्या आप टीवी रिपेयर सिखाते हैं?" दुकानदार ने हां कहा. जब स्नेहलता ने संकोच जताया कि क्या वह ये काम सीख पाएंगी, तो बुज़ुर्ग तकनीशियन ने कहा, "अगर खुद पर शक है, तो अभी निकल जाओ. इंसानी दिमाग कुछ भी कर सकता है." यही बात उन्हें छू गई, और उन्होंने हार नहीं मानी. 

17 साल का करियर 
छह महीने की ट्रेनिंग के बाद स्नेहलता ने अपने टीवी का कवर खोला, एक स्क्रू कसा, कॉइल सही की, और जैसे ही टीवी चालू किया तो तस्वीर स्क्रीन पर उभर आई. यही वह पल था, जिसने 17 साल के लंबे करियर की शुरुआत की. ब्लैक-एंड-व्हाइट टीवी से शुरुआत करने वाली स्नेहलता ने रंगीन टीवी के दौर तक खुद को ढाल लिया.

मर्फी, ओनिडा, बीपीएल जैसे ब्रांड्स के नए सर्किट्स सीखे. स्कूटर पर टूलकिट रखकर शहर भर में ग्राहकों के घर गईं. टीवी ही नहीं, बल्कि मिक्सर, केतली और कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी रिपेयर किए. पति की ऑफिस पार्टियों में जब उन्होंने अपना काम बताया, तो तुरंत उनके पास रिपेयरिंग के लिए फोन आने लगे.

अमेरिका तक पहुंची पहचान
एक बार अमेरिका से एक व्यक्ति पुणे आया. उसके पास एक खास "टी अलार्म केतली" थी, जिसे कोई ठीक नहीं कर पा रहा था. उसने स्नेहलता के बारे में "माहेर माशिका" पत्रिका में पढ़ा था. वह केतली लेकर उनके पास पहुंचा. स्नेहलता ने चुनौती स्वीकार की और केतली सही कर दी. उन्होंने पुणे के रवीराज और रंजीत जैसे बड़े होटलों में भी कमरे के टीवी रिपेयर किए. 

नई पीढ़ी के लिए संदेश
आज उनके बेटे पुणे में डॉक्टर हैं, बेटी अमेरिका में कैंसर रिसर्चर हैं. उनके तीनों पोते-पोतियां भी दुनिया भर में पढ़ाई और काम कर रहे हैं. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "अगर हमारा पहला टीवी ठीक होता, तो शायद मैं सिर्फ टीवी देखने वाली बन जाती." LED और स्मार्ट टीवी के आने के बाद उन्होंने रिपेयरिंग का काम छोड़ दिया, लेकिन जुनून आज भी कायम है.

76 साल की उम्र में भी स्नेहलता तैराकी, शतरंज और ब्रिज गेम्स खेलती हैं. उनका युवाओं के लिए संदेश साफ है. आज के बच्चों के पास सबकुछ है- स्मार्ट गैजेट्स, यूट्यूब, सीखने के लाखों मौके और फिर भी कहते हैं ‘बोर हो रहे हैं’? इससे बेहतर है कि कुछ न कुछ सीखो और अपनी खुशी ढूंढो. 

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