

आज जहां पूरी दुनिया की Gen Z मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रभाव में खोई हुई है, वहीं भारत के राजस्थान के डीग कस्बे में एक अनोखा गुरुकुल भविष्य की तस्वीर बदल रहा है. आधुनिक जीवनशैली के दबाव और पश्चिमी प्रभाव से अलग, यहां बच्चे मोबाइल और टीवी से दूर, शास्त्रों और वेदों का गहन अध्ययन कर रहे हैं.
नेपाल जैसे पड़ोसी देश में हाल ही में Gen Z द्वारा उपद्रव और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं चर्चा में रहीं. इसके विपरीत भारत में इसी पीढ़ी के युवा संस्कृति-संरक्षक के रूप में उभर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस “बुलंद भारत” का सपना दिखाते हैं, उसकी झलक यहां की अनुशासित और संस्कारित जीवनशैली में मिलती है.
इस Gen Z पीढ़ी को नैतिकता, धर्म, संस्कृति और मूल्य सिखा रहा है डीग के श्रीजड़खोर गोधाम में संचालित श्री गेणशदास भक्तमाली वेद विद्यालय. यहां वैदिक परंपरा से शिक्षा प्राप्त कर रहे बटुक ब्रह्मचारियों को भारत की संस्कृति, परंपराओं और रक्षार्थ तैयार किया जा रहा है. ब्रह्ममुहूर्त में उठना, गो सेवा करना, यज्ञ और हवन के साथ नियमित सूर्य उपासना तथा वेद मंत्रोच्चारण का अभ्यास उनकी दिनचर्या का हिस्सा है.
क्यों जरूरी है वैकल्पिक शिक्षा पद्धति?
सोशल मीडिया की लत: भारत में Internet and Mobile Association of India (IAMAI) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 16-24 वर्ष आयु वर्ग के 82% युवा प्रतिदिन औसतन 4-5 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं.
मानसिक स्वास्थ्य पर असर: World Health Organization (WHO) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में लगभग 15-20% किशोर अवसाद, तनाव या चिंता (डिप्रेशन/एंग्जायटी) से जूझ रहे हैं.
शिक्षा और ध्यान में गिरावट: NCERT के एक अध्ययन के अनुसार, सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग करने वाले बच्चों की पढ़ाई पर फोकस और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता औसतन 35% तक घट जाती है.
इन परिस्थितियों में गुरुकुल जैसे शिक्षा केंद्र बच्चों को मानसिक स्थिरता और संतुलित जीवन की राह दिखा रहे हैं.
शिक्षा और दिनचर्या
वेद विद्यालय में शिक्षा ले रहे बच्चों के लिए जिम से अधिक योग और शारीरिक व्यायाम को स्वास्थ्य का आधार बनाया गया है. सात वर्षीय पाठ्यक्रम के तहत बच्चे यहीं श्रीजड़खोर गोधाम में रहते हैं. इन्हें बटुक ब्रह्मचारी कहा जाता है. छठी से बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें संस्कारयुक्त वेदाधारित शिक्षा दी जाती है.
विशेष अनुभवी आचार्य वेद, संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी और गणित पढ़ाते हैं और बच्चों को राष्ट्र रक्षक तथा सनातन रक्षक के रूप में तैयार करते हैं. श्रीरैवासा धाम के अग्रपीठाधीश्वर, वृंदावन धाम के श्रीमलूक पीठाधीश्वर स्वामी श्री राजेन्द्र दास जी महाराज के मार्गदर्शन में यहां निशुल्क शिक्षा दी जाती है.
स्वामी श्री राजेन्द्र दास जी महाराज का कहना है, "हमारा उद्देश्य विलुप्त होती सनातन संस्कृति की रक्षा करना है. हम एक पथभ्रष्ट भावी पीढ़ी के बजाय संस्कारवान युवा शक्ति का निर्माण करना चाहते हैं, जो भविष्य में गो भक्त, संत भक्त, राष्ट्र भक्त, राष्ट्र रक्षक और सनातन संस्कृति के संवाहक बनें. जिस भी समय देश को इन युवाओं की आवश्यकता हो, वे सबसे आगे खड़े हों."
दिनचर्या आसान नहीं, मोबाइल सोशल मीडिया बैन
इस शिक्षा मंदिर में मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी जैसी चीजें पूरी तरह प्रतिबंधित हैं. बच्चों को सप्ताह में केवल एक बार अभिभावकों से फोन पर बात करने की अनुमति होती है और माह में एक बार माता-पिता उनसे मिल सकते हैं.
सुबह 4 बजे उठना, प्रार्थना, वेद अभ्यास, सफाई, योग, ध्यान और पारंपरिक खेल उनकी दिनचर्या का हिस्सा है. सूर्य नमस्कार, दो वक्त हवन, त्रिकाल संध्या आरती और गायत्री उपासना प्रतिदिन कराई जाती है. बच्चों में आत्मबल, दया, करुणा और कृतज्ञता का भाव विकसित करने के लिए विशेष अभ्यास भी कराया जाता है. साथ ही, गो सेवा अनिवार्य है.
सात्विक भोजन और गोवृति प्रसाद
विद्यालय में गोवृति प्रसाद को प्राथमिकता दी जाती है. मांस, मदिरा, बर्गर, पिज़्ज़ा और किसी भी प्रकार के व्यसन पर पूर्ण प्रतिबंध है. सात्विक भोजन ही उनके जीवन का आधार है.