

भारत और ईरान का एक-दूसरे से सदियों पुराना रिश्ता है. ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो दोनों देशों को एक-दूसरे से जोड़ती हैं. और इनमें सबसे ज्यादा पॉपुलर है पाककला. जी हां, आज भारतीय कहलाने वाले कई व्यंजनों की जड़ें आपको ईरान के इतिहास में मिलेंगी. भारत में बहुत से व्यंजन हैं जो ईरान से छोटे-छोटे बदलावों के साथ हमारे देश में पहुंचे और फिर वक्त के साथ-साथ उन्हें आज का आधुनिक रूप मिला.
कई व्यंजनों के नाम सुनकर तो आप चौंक जाएंगे क्योंकि पूरी दुनिया में इन व्यंजनों को आज भारत की देशी डिशेज के तौर पर जाना जाता है. जैसे समोसा, पुलाव, कबाब, गुलाब जामुन, फालूदा, और तो और बिरयानी के तार भी ईरान से जुड़े हुए हैं.
भारत कैसे पहुंचा समोसा
अब तक हम सब यही मानते रहे कि समोसा एक पारंपरिक भारतीय स्नैक है, लेकिन यह जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि समोसे की उत्पत्ति भारत में नहीं, बल्कि 10वीं सदी में मध्य पूर्व (Middle East) में हुई थी. इतिहासकारों के अनुसार, समोसे का पहला लिखित ज़िक्र ईरानी इतिहासकार अबुल-फज़ल बेहक़ी की कृति 'तारीख़-ए-बेहक़ी' में मिलता है, जहां इसे ‘संबोसा’ (Sambosa) कहा गया है. उस समय ये समोसे आकार में बेहद छोटे होते थे और इसी वजह से यात्रियों के बीच यह एक लोकप्रिय नाश्ता था. वे इन्हें अपने बैग में आसानी से रख सकते थे और चलते-फिरते खा सकते थे.
भारत में समोसे का उल्लेख सबसे पहले दिल्ली सल्तनत के मशहूर कवि और विद्वान अमीर खुसरो ने किया था. इसके बाद 14वीं सदी के प्रसिद्ध यात्री इब्न बतूता ने भी समोसे का जिक्र किया. उन्होंने लिखा कि मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार में मेवे और मसालों से भरे ‘संबूसक’ (सामोसा) परोसे जाते थे. यहां तक कि मुगलकालीन दस्तावेज 'आइन-ए-अकबरी' में भी समोसे का उल्लेख मिलता है, जिसे उस समय ‘संबूसा’ कहा जाता था. समोसा भले ही अब भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका हो, लेकिन इसकी जड़ें ईरान और आसपास के इलाकों से जुड़ी हुई हैं.
बिरयानी: ईरान से भारत तक का सफर
बिरयानी सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि स्वाद, संस्कृति और इतिहास से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है. इसके नाम की उत्पत्ति को लेकर भी कई रोचक तथ्य हैं. कहा जाता है कि ‘बिरयानी’ शब्द की जड़ें पर्शियन (ईरानी) भाषा में हैं. वहां ‘बिरंज बिरयान’ का अर्थ होता है – ‘फ्राई किया हुआ चावल.’ पर्शियन में चावल को ‘बिरंज’ कहा जाता है और ‘बिरयान’ का मतलब है पकाने से पहले तलना.
चावल और मांस को मसालों के साथ एक साथ पकाने की परंपरा भारत में बिरयानी के लोकप्रिय होने से बहुत पहले ही फारस (ईरान) और मध्य एशिया में प्रचलित थी. भारत में बिरयानी को लोकप्रिय बनाने का श्रेय अक्सर मुगल साम्राज्य को दिया जाता है. मुगलों के खानपान में विविधता और भव्यता थी. वे जब भारत आए, तो अपने साथ कई चावल आधारित व्यंजन, मसाले और रसोई की नई तकनीकें लाए. बिरयानी इन्हीं में से एक थी. समय के साथ बिरयानी ने स्थानीय स्वाद और सामग्रियों के अनुसार खुद को ढाल लिया, जिससे अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग बिरयानी जन्मीं — जैसे हैदराबादी, लखनवी और कोलकाता बिरयानी.
फालूदा: चीन की तकनीक, ईरान की रेसिपी
फालूदा जैसी स्वादिष्ट डिश की शुरुआत ईरान (तत्कालीन फारस) से हुई, लेकिन इसके पीछे की तकनीक चीन से आई थी.आज से करीब 4000 साल पहले, जब फ्रिज जैसी कोई चीज़ नहीं थी, तब भी चीन में फ्रोज़न डिशेज़ का आनंद लिया जाता था. इसका कारण था चीनियों का अनोखा वैज्ञानिक जुगाड़. उन्होंने खोजा कि बर्फ में पोटेशियम नाइट्रेट मिलाने से वह जल्दी जम जाती है. इसके बाद अगर इस बर्फीले मिश्रण को किसी बर्तन के बाहर लगाया जाए, तो बर्तन के अंदर रखा भोजन भी जम जाता है. यही तकनीक व्यापार के ज़रिए ईरान पहुंची.
चीन की इस तकनीक से प्रेरित होकर, ईरानी रसोइयों ने 400 ईसा पूर्व एक नया प्रयोग किया. उन्होंने गुलाबजल और पतली सेवइयों (वर्मीसेली) को मिलाकर एक ठंडा, मीठा व्यंजन तैयार किया- जिसे उन्होंने ‘फालूदेह’ नाम दिया. यह एक तरह से खीर और शरबत का मेल था, और इसने धीरे-धीरे फारसी खानपान में खास जगह बना ली. हालांकि ईरान में फालूदेह सदियों पहले बन चुका था, लेकिन भारत में इसकी एंट्री मुगल काल में हुई. बर्फ के ज़रिए मुगल ठंडे शरबत और मिठाइयाँ तैयार करने लगे। इसी दौरान, जब जहांगीर ईरान के एक इलाके में फतह के इरादे से पहुंचा, तो वहां के शाही व्यंजनों ने उसे प्रभावित किया. विशेष रूप से, उसे फालूदेह बहुत पसंद आया. भारत लौटने के बाद जहांगीर ने इसे मुगल दरबार की रसोई में शामिल करवा दिया, और यही फालूदेह भारतीय स्वाद और शैली के साथ बन गया ‘फालूदा.’
पाकशैली में भी है समानता
विशेष व्यंजनों के प्रभाव के अलावा, भारत और ईरान की पाक कला तकनीकें और सामग्रियां भी काफी हद तक एक जैसी हैं. चना (काबुली चना), अनार और अंजीर जैसे फल, आम सब्जियां, बेसन (चना आटा) आदि का उपयोग, इन दोनों देशों की रसोई को आपस में गहराई से जोड़ता है. भारत का पुलाव, ईरान में पोलो कहलाता है. कबाब, दोनों देशों में बनाया जाने वाला एक आम और लोकप्रिय व्यंजन है, जिसे थोड़ी अलग सामग्रियों से तैयार किया जाता है. 'हलवा' भी एक साझा शब्द है, हालांकि दोनों जगह इसे अलग-अलग तरीकों से पकाया जाता है. दोनों भाषाओं में 'सब्ज़ी' शब्द साइड डिश या हरी सब्ज़ी के लिए समान रूप से उपयोग होता है. और जिस नान रोटी ने भारतीय खाने को वैश्विक पहचान दी, ईरानी व्यंजन में भी उतनी ही पॉपुलर और आम है.