
हम अपनी आम सी जिंदगी में कई सारे मजाक करते हैं या मुहावरे हमारी जुबान पर चढ़ जाते हैं. कई बार तो हमें इनके पीछे की कहानी भी नहीं पता होती है, और हम अपनी बातचीत में इन्हें इस्तेमाल कर लेते हैं. “12 बज गए” के पीछे भी कुछ ऐसी ही कहानी है. हम अक्सर किसी का जब मजाक उड़ाना होता है तो बगैर सोचे समझे “तेरी शक्ल पर 12 बज गए हैं“ वाला मुहावरा इस्तेमाल कर लेते हैं. अगर आपने कभी सरदारों से जुड़ा ये जोक क्रैक किया है तो इसे पढ़ने के बाद आपको भी बहुत शर्मिंदगी महसूस होगी
क्या है इसके पीछे ही कहानी?
कई सारी कहानियों की मानें तो इसका लिंक 18 वीं शताब्दी से है. जब भारत पर फारस के शाह नादिर शाह ने आक्रमण किया था. मार्च 1739 में नादिर शाह की सेना दिल्ली पहुंची और उसके बाद नरसंहार हुआ. अनगिनत हिंदू और मुसलमान मारे गए और महिलाओं को बंदी बना लिया गया. जब नादिर शाह की सेनाएं पंजाब से गुजर रही थीं, तो सिखों ने उन पर हमला करने और महिलाओं को आजाद करवाने की योजना तैयार की. हालांकि, नादिर शाह की सेना सिखों की तुलना में बहुत बड़ी थी, इसलिए उन्होंने इसे लिए अलग योजना बनाई.
रात के 12 बजे किया था हमला
सिखों ने रात में ही 12 बजे उनके शिविरों में जाने का फैसला किया. इस दौरान वे जितनी महिलाओं को नादिर शाह के चंगुल से छुड़ा सकते थे उन्होंने छुड़वाया. उन्होंने बचाई गई महिलाओं की सकुशल घर वापसी में मदद भी की क्योंकि वे जानते थे कि एक महिला की गरिमा कितनी जरूरी होती है. लेकिन समय के साथ, कुछ लोगों ने “12 बज गए” को मजाक के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.
सिखों ने एक अभियान भी शुरू किया
कई मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ये एक तरह से अभियान बन गया था. अहमद शाह अब्दाली हिंदू लड़कियों और महिलाओं घरों से उठाकर बेचने के लिए गजनी के बाजार में लेकर जाता था. इसके बाद सिख जरनैल 12 बजे ही अत्याचार के खिलाफ अभियान चलाते थे. इसी अभियान का डर बस मुगलों के अंदर पैदा हो गया. वे कहते थे कि सावधान हो जाओ 12 बज गए हैं, सरदार आ जाएंगे.