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मटके पर बैठाकर घुमाते हैं...लगाते हैं बारिश का अनुमान, बड़ी अनोखी है राजस्थान के इस गांव की परंपरा

मटके से बारिश का अनुमान लगाने के लिए सबसे पहले जमीन को गाय के गोबर से लीपकर उस पर गोल चौक बनाया जाता है. उसके बाद उस पर अक्षत कुमकुम आदि से रंगोली बनायीं जाती हैं. फिर भगवान श्री गणेश को साक्षी मानकर दीपक जलाया जाता है. फिर शुरू होती है प्रक्रिया.

मटका मटका

कैसा होगा साल, जमकर होगी बारिश या पड़ेगा अकाल ये सारी बाते एक 'मटका' बोलेगा और बारिश के सारे भेद खोलेगा. चौंक गए न ? लेकिन यह हकीकत है. जो एक परंपरा की तरह ही हर साल एक खास दिन अक्षय तृतीया के मौके पर राजस्थान के सिरोही जिले के कई गांवों में वर्षों से चली आ रही है. इस विधि के जरिये ग्रामीण बारिश के मौसम का अनुमान लगाते हैं और फिर उसी हिसाब से अपनी तैयारियां करते हैं. सदियों से जारी बारिश के मौसम का शगुन देखने की यह रस्म यहां निभाई जा रही है. सिरोही के नजदीक रामपुरा गांव में इस रस्म को यहां के ग्रामीण सदियों से निभाते आ रहे हैं.

क्या है शगुन देखने की विधि
बरसात का शगुन देखने की इस विधि में सबसे पहले जमीन को गाय के गोबर से लीपकर उस पर गोल चौक बनाया जाता है. उसके बाद उस पर अक्षत कुमकुम आदि से रंगोली बनायीं जाती हैं. फिर भगवान श्री गणेश को साक्षी मानकर दीपक जलाया जाता है. इसके बाद एक नए मिटटी के घड़े में पानी भरा जाता है.

चौक पर मटका पीटने वाली थापी (मटका बनाने वाला लकड़ी का औजार) रखा जाता है. उस पर पानी से भरे मटके को रखा जाता है और मटके के भीतर विघ्न हरता भगवन गणेश को स्थापित किया जाता है. इतना हो जाने के बाद किसी भी चुने हुए व्यक्ति को मटके पर बिठाया जाता है और फिर शुरू होता है सवालों का सिलसिला. इसके बाद पूछे गए सवाल के जवाब में मटका और उस पर बैठा व्यक्ति घड़ी की सुई की तरह सीधा घूमे तो जवाब हां में और अगर उलटी दिशा में घूमे तो जवाब ना में होता है.

कैसा रहेगा इस साल बारिश का मौसम 
रामपुरा के स्थानीय ग्रामीणों ने इस बार अक्षय तृतीया पर मटके के माध्यम से देखे जाने वाले इस शगुन में माना है की बारिश मध्यम या इससे कम रहेगी.

हैरान करती है तकनीक 
बारिश का शगुन के नतीजे भले ही भविष्य में कुछ भी रहे लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में अपनाई जाने वाली तकनीक हैरान करती है. दरसल मिटटी के घड़े का लकड़ी के एक छोटे टुकड़े पर रखा जाना और उस पर 70 से 80 किलो के व्यक्ति का बैठ कर घूमना हैरान करता है. इस पूरी विधि में कई बार मटका लकड़ी टुकड़े से हट कर घूमते हुए जमीन पर भी आ जाता है. लेकिन फूटता नहीं है.

Sirohi

शगुन देखने वाले ग्रामीणों का कहना है कि पानी से भरा मटका अपने आप घूमता है और उस पर बैठे व्यक्ति को घूमाता है. ऐसे में अगर घूमते हुए मटका जमीन पर आ जाये और फूट जाये तो उस साल बाढ़ आती है. इस बार भी शगुन देखते हुए मटका घूमा, लकड़ी की थापी से सरक कर चौक पर भी आया लेकिन फूटा नहीं. शायद यही वजह है की ग्रामीण इसे औसत बारिश या उससे भी कम वाला साल मान रहे हैं.  
 
खैर आने वाले मौसम में बरसात की स्थिति क्या रहेगी यह तो वक्त बतायेगा. लेकीन मौसम का शगुन देखने की यह प्रक्रिया अजब भी है और गजब भी. 

(सिरोही से राहुल त्रिपाठी की रिपोर्ट)