
गुजरात के सूरत शहर में एक बेमिसाल दोस्ती की कहानी सामने आई है. यह कहानी दो परिवारों की है, जो खून के रिश्ते से नहीं जुड़े हैं, लेकिन उनकी दोस्ती 80 साल से अधिक समय से कायम है.सूरत के भटार इलाके में स्थित मैत्री हाउस एक ऐसी कहानी का गवाह है जो दोस्ती की ताकत और परिवारों के बीच अटूट रिश्ते को दर्शाती है. यह कहानी कुलवंत देसाई और विपिन देसाई की दोस्ती की है, जो चार पीढ़ियों तक कायम है. आइए इस प्रेरणादायक कहानी को जानते हैं.
ऐसे हुई थी दोस्ती
कुलवंत देसाई और विपिन देसाई की दोस्ती 1940 में शुरू हुई थी, जब वे स्कूल में साथ पढ़ते थे. यह दोस्ती स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और इमरजेंसी के समय भी बरकरार रही. दोनों ने एक साथ जेल की सजा भी काटी. उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि वे एक ही छत के नीचे रहते थे और साथ खाना खाते थे.
दोस्ती की विरासत चार पीढ़ियों तक
कुलवंत और विपिन देसाई के निधन के बाद भी उनकी दोस्ती की विरासत उनके बेटों, पोते-पोतियों और परपोते-परपोतियों तक पहुंच चुकी है. आज मैत्री हाउस में चार पीढ़ियां एक साथ रहती हैं, जो इस दोस्ती की ताकत और परिवारों के बीच अटूट रिश्ते को दर्शाती है.
दोस्ती को बना दिया एक मिसाल
सूरत के मैत्री हाउस में रहने वाले परिवारों ने इस दोस्ती को एक मिसाल बना दिया है. परिवार के एक सदस्य ने बताया, मेरे पिताजी और विपिन जी के बीच 80 साल की दोस्ती थी. यह दोस्ती आज भी हमारे परिवारों के बीच कायम है. यह कहानी आज के समय में, जब रिश्ते कमजोर हो रहे हैं, एक प्रेरणा है.
फिल्मी दोस्ती से भी बढ़कर
कुलवंत और विपिन देसाई की दोस्ती को फिल्म 'शोले' के जय और वीरू की दोस्ती से भी बढ़कर माना जा सकता है. यह दोस्ती न केवल उनके जीवनकाल में बल्कि उनकी अगली चार पीढ़ियों तक कायम रही. परिवार के एक सदस्य ने कहा, दोस्ती निभाने के लिए लेन-देन की भावना से ऊपर उठना जरूरी है. यह संदेश आज के समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. सूरत का मैत्री हाउस आज दोस्ती और परिवार के बीच अटूट रिश्ते की मिसाल बन चुका है. यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची दोस्ती खून के रिश्ते से भी बढ़कर हो सकती है.
(संजय सिंह राठौड़ की रिपोर्ट)