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Jalandhar: पांच सालों से खेत में पराली न जलाकर इस गांव के किसानों ने पेश की मिसाल, आसपास के इलाकों के लोगों को भी कर रहे जागरूक 

जालंधर के बाजरा गांव के किसान पराली जलाने की बजाय उसे वापस मिट्टी में मिला देते हैं. यदि फसल की ठूंठ को वापस जोत दिया जाए तो यह अन्य फसलों की बुवाई के लिए अच्छी जमीन तैयार करता है. यहां के किसान गेहूं की पराली का उपयोग पशुओं के चारे के लिए कर रहे हैं. 

बाजरा गांव के किसान पराली को नहीं जलाते हैं बाजरा गांव के किसान पराली को नहीं जलाते हैं
हाइलाइट्स
  • पराली जलाने से खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति हो जाती है कम

  • बाजरा गांव के किसानों ने पराली नहीं जलाने का लिया है फैसला

पंजाब राज्य में जहां पराली जलाने के मामले बढ़ रहे हैं, वहीं जालंधर का एक छोटा सा गांव बदलाव लाने की कोशिश कर रहा है. जी हां, बाजरा गांव के किसानों ने पांच सालों से खेतों में पराली नहीं जलाई है. कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि की है. कृषि अधिकारी डॉ. जसविंदर सिंह ने बताया कि यहां के ग्रामीणों ने सालों से धान या गेहूं की पराली नहीं जलाई है, जो दूसरों के अनुसरण के लिए एक बहुत अच्छा उदाहरण है.  

पराली जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताते हैं
सरपंच अविनाश कुमार कहते हैं कि गांव की आबादी लगभग 800 है. जब पराली जलाने की बात आती है तो मैं बहुत सख्त हो जाता हूं. यदि कोई पराली जलाने की कोशिश करता है तो मैं इसकी सूचना विभाग और पुलिस को देता हूं. हालांकि समय के साथ किसानों ने अब इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है कि पराली जलाना एक अपराध है. इससे खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति के साथ पर्यावरण को भी काफी नुकसान होता है. सरपंच का कहना है कि वह तरारा, मल्को, कडोवाली और सामीपुर सहित आसपास के गांवों के किसानों को भी जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें पराली जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताते हैं. 

पराली को मिला देते हैं मिट्टी में 
सरपंच अविनाश कुमार ने बताया कि उनके गांव के किसान पराली जलाने की बजाय उसे वापस मिट्टी में मिला देते हैं. वे फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए सुपर-सीडर, बेलर और रोटावेटर जैसी मशीनों का उपयोग करते हैं. यदि ठूंठ को वापस जोत दिया जाए तो यह अन्य फसलों की बुवाई के लिए अच्छी जमीन तैयार करता है. गेहूं की पराली का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जा रहा है.

उर्वरक की जरूरत हो जाती है कम 
इकबाल सिंह, जिनके पास 40 एकड़ जमीन है कहते हैं कि वे सात साल पहले तक धान की पराली जलाते थे. अब हमने ऐसा नहीं करने का फैसला किया है. प्रदूषण फैलाना सही नहीं है. एक अन्य किसान मनिंदर सिंह का दावा है कि अगर पराली को वापस मिट्टी में मिला दिया जाए तो उर्वरक की जरूरत काफी हद तक कम हो जाती है.

सूक्ष्म जीवों का हो जाता है नाश
पराली जलाने से राख पैदा होता है और उस जगह पर पाई जाने वाले सूक्ष्म जीवों का नाश हो जाता है. इससे फसलों की पैदावार कम हो जाती है और मिट्टी की गुणवत्ता में कमी आती है. पराली जलाने से मुख्य तौर पर हवा प्रदषित होती है. हवा में उपस्थित धुएं से आंखों में जलन और सांस लेने में दिक्कत होती है. प्रदूषित कणों की वजह से अस्थमा और खांसी जैसी बीमारियों को बढ़ावा मिलता है. इसके अलावा निमोनिया और दिल की बीमारी जैसे रोग भी बढ़ रहे हैं. हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में बड़ी मात्रा में पराली जलाने से दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्र में बहुत धुंध छा जाती है, जो कि कोहरे का रूप ले लेती है. इससे यातायात प्रभावित होता है और सड़क दुर्घटनाएं बढ़ जाती हैं.