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Keventers Success Story: लगभग 100 साल पुरानी है केवेंटर्स की कहानी... स्वीडिश शख्स ने की थी शुरुआत, भारतीयों ने संभाली विरासत, जानिए कैसे एक बार फिर चमक रहा है ब्रांड

Keventers Story: स्वतंत्रता आंदोलन के बीच में एडवर्ड केवेंटर का निधन हो गया था, और उनके भतीजे ने 1940 में देश के प्रमुख उद्योगपतियों में से एक राम कृष्ण डालमिया को ब्रांड बेच दिया. ये वो समय था जब देश अपनी आजादी के लिए लड़ रहा था.

Keventers Success Story Keventers Success Story
हाइलाइट्स
  • पहले लॉन्च किए केवेंटर्स डेयरी प्रोडक्ट्स  

  • फिर उठ खड़ा हुआ केवेंटर्स ब्रांड 

चिलचिलाती धूप में ठंडा मिल्कशेक बेस्ट कॉम्बो होता है. और जब मिल्कशेक की बात हो और केवेंटर्स का नाम न आए तो ऐसा मुश्किल है. हालांकि, बहुत कम लोग हैं जो ये जानते हैं कि ये पहला 'मेड इन इंडिया' ब्रांड है. 1889 में, एक स्वीडिश डेयरी आंत्रप्रेन्‍योर और टेक्नोलॉजिस्ट ने इस ब्रांड को बनाने का रास्ता गढ़ा. 1894 में, एडवर्ड केवेंटर ने अलीगढ़ डेयरी फार्म खोला पनीर, मक्खन और दूध जैसे डेयरी प्रोडक्ट्स से शुरुआत की. लेकिन भारत में केवेंटर्स की यात्रा 1925 से शुरू होती है. ये Swe-Deshi (स्वेडेन और देशी) ब्रांड अपने आप लोगों के दिलों में राज करता चला गया. 

पहले लॉन्च किए केवेंटर्स डेयरी प्रोडक्ट्स  

डेयरी के आ जाने से केवेंटर्स अपने ताजा डेयरी प्रोडक्ट जैसे दूध, मक्खन, पनीर और दूसरी चीजों के लिए पॉपुलर होता चला गया. इस ब्रांड को कसाटा आइसक्रीम के बेस्ट डिजाइन के लिए जाना जाता है. 1925 में, एडवर्ड केवेंटर ने केवेंटर्स ब्रांड को एक औपचारिक रूप दिया, और ब्रांड का आधिकारिक रूप से जन्म हुआ. एडवर्ड केवेंटर्स ने दिल्ली के चाणक्यपुरी में प्राइवेट लेबल डेयरी प्रोडक्ट कंपनी की स्थापना की. जल्द ही गुणवत्ता वाले डेयरी प्रोडक्ट का पर्याय बना केवेंटर्स ब्रांड अलीगढ़, शिमला, दार्जिलिंग, लाहौर और कोलकाता तक फैल गया. 

एडवर्ड के निधन के बाद एक भारतीय ने चलाया ब्रांड 

स्वतंत्रता आंदोलन के बीच में एडवर्ड केवेंटर का निधन हो गया था, और उनके भतीजे ने 1940 में देश के प्रमुख उद्योगपतियों में से एक राम कृष्ण डालमिया को ब्रांड बेच दिया. ये वो समय था जब देश अपनी आजादी के लिए लड़ रहा था. लेकिन उन दिनों की अराजकता के बावजूद, केवेंटर्स फला-फूला, उस दौरान दिल्ली के प्रसिद्ध कनॉट प्लेस सहित शहर में 48 से ज्यादा केवेंटर्स के आउटलेट थे. आजादी के बाद से केवेंटर्स ने शेक से लेकर मिल्क तक डेयरी प्रोडक्ट्स का उत्पादन शुरू कर दिया. 

(फोटो क्रेडिट-केवेंटर्स)
(फोटो क्रेडिट-केवेंटर्स)

भारतीय सेना को पहुंचाया दूध पाउडर 

हालांकि, 1960 में जब देश में दूध की कमी होने लगी और श्वेत क्रांति आई तब केवेंटर्स ने अपनी भूमिका निभाई और भारतीय सेना को दूध पाउडर उपलब्ध कराना शुरू किया. 1970 के दशक में सरकार ने भूमि के पुनर्अधिग्रहण के कारण मालचा वाला आउटलेट बंद कर दिया. लेकिन इस पूरे समय में राम कृष्ण डालमिया केवेंटर्स ब्रांड के मालिक बने रहे, और जिन लोगों ने उनके मिल्कशेक का स्वाद चखा, उन्हें उनका नाम याद रहा. 

फिर उठ खड़ा हुआ केवेंटर्स ब्रांड 

कई आउटलेट चल रहे थे, लेकिन मेन यूनिट बंद होने के कारण, मैनेजमेंट ने ब्रांड में रुचि खोनी शुरू कर दी. और ब्रांड नीचे जाने लगा. लेकिन 2015 में, राम कृष्ण डालमिया के पड़पोते अगस्त्य डालमिया ने अपने कॉलेज के दोस्त अमन के साथ ब्रांड को पुनर्जीवित करने और विरासत को जीवित रखने का फैसला किया. दोनों ने मार्च 2015 में दिल्ली के सेलेक्ट सिटी मॉल में अपना पहला आउटलेट शुरू किया. जनवरी 2016 तक, चार आउटलेट थे. जब आउटलेट सेट किए गए थे, तब दोनों को पता था कि उन्हें तेजी से बढ़ना है, और इसलिए, उन्होंने फ्रैंचाइजिंग वाला रास्ता चुना. केवेंटर्स की ऑफिशियल वेबसाइट पर अमन कहते हैं कि उन्हें हर महीने कम से कम आठ से 10 फ्रेंचाइजी खोलने की उम्मीद थी. 

इस जोड़ी में रेस्तरां मालिक सोहराब सीताराम भी शामिल थे, जिन्होंने अगस्त्य और अमन को दिशा और सलाह देने का काम किया. शालोम गोवा, स्मोक सिग्नल, तबुला रासा, ची एशियन कुक हाउस और लाइड बैक वाटर्स जैसे रेस्टोरेंट और बार से जुड़े रहने के बाद, सोहराब अपने 16 साल के अनुभव और विशेषज्ञता को केवेंटर्स में लेकर आए. 

कांच की बोतल का क्रेज  

इस दौरान कांच की बोतलों का भारत में क्रेज बढ़ता चला गया. इसी को देखते हुए केवेंटर्स ने भी अपनी विरासत को बनाए रखने का फैसला किया और स्वाद को और भी बेहतर करने का प्रयास किया. केवेंटर्स के मुताबिक, कंपनी का करोड़ों का कारोबार है. अब मिल्कशेक के अलावा, केवेंटर्स सुपर मिल्क प्रोडक्ट्स की भी तलाश कर रही है.