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Sundarban Tiger Project: कछुए की लुप्तप्राय प्रजाति Batagur Baska का संरक्षण, निरगानी में 650 से ज्यादा कुछएं

सुंदरवन से एक गुड न्यूज आई है. सुंदरबन टाइगर प्रोजेक्ट ने बटागुर बस्का कछुए की इस खास विलुप्त प्रजाति के संरक्षण में बड़ी सफलता हासिल की है. 2008 में सुंदरवन टाइगर प्रोजेक्ट ने 7 नर कछुओं और 5 मादा कछुओं के साथ संरक्षण कार्य शुरू किया था. फिलहाल इनमें से 650 से ज्यादा कछुए सुंदरवन टाइगर प्रोजेक्ट की निगरानी में हैं.

Batagur Turtle in Sundarban Tiger Reserve Batagur Turtle in Sundarban Tiger Reserve

इस धरती पर केवल सुंदरवन में बचे कछुओं की बेहद खास और एक समय लगभग लुप्तप्राय प्रजाति के संरक्षण में सुंदरवन टाइगर रिज़र्व ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की है. रॉयल बंगाल टाइगर के लिए देश-विदेश से पर्यटक सुंदरवन आते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सुंदरबन टाइगर प्रोजेक्ट के पास एक और जानवर है, जो फिलहाल दुनिया के किसी और जंगल, नदी या समुद्र में नहीं पाया जाता है. इस खास जानवर का नाम कछुए की एक खास प्रजाति है, जिसे बटागुर बस्का या पोरा काथा कहा जाता है. सुंदरबन टाइगर प्रोजेक्ट ने बटागुर बस्का कछुए की इस खास विलुप्त प्रजाति के संरक्षण में बड़ी सफलता हासिल की है.

सुंदरवन में 650 बतागुर बास्का-
बतागुर बास्का या पोरा काथा दुनिया में सबसे विलुप्त हो चुकी प्रजातियों में से एक है. कछुओं की यह खास प्रजाति कभी सुंदरवन से लेकर म्यांमार, थाईलैंड और मलेशिया के तट तक पाई जाती थी. सुंदरवन टाइगर प्रोजेक्ट का दावा है कि आज दुनिया के किसी भी जंगल, नदी या समुद्र में ये नहीं पाए जाते.

तटीय इलाकों से दूसरे कछुओं के अंडे इकट्ठा करते समय 1997 में इस विलुप्त हो चुकी प्रजाति के कछुए के अंडे मिले थे. उससे दो बच्चे पैदा हुए थे. 2008 में सुंदरवन टाइगर प्रोजेक्ट ने 7 नर कछुओं और 5 मादा कछुओं के साथ संरक्षण कार्य शुरू किया था. फिलहाल इनमें से 650 से ज्यादा कछुए सुंदरवन टाइगर प्रोजेक्ट की निगरानी में हैं.

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कृत्रिम तरीके से पैदा किए गए कछुए-
हालांकि शुरुआत में कछुओं का प्रजनन प्राकृतिक तरीके से हुआ था, लेकिन पिछले तीन सालों से सुंदरवन टाइगर प्रोजेक्ट अंडों से कृत्रिम तरीके से बच्चे पैदा करने की कोशिश कर रहा है. जिसकी सफलता इस साल वन विभाग के ध्यान में आई है. इस साल कुल 223 कछुए कृत्रिम तरीके से पैदा हुए हैं. फिलहाल वन विभाग ने सजनेखाली के अलावा दोबांकी, झीला, नेतिधपानी, झिंगेखाली, चामटा और हरिखाली में इनके संरक्षण और प्रजनन की व्यवस्था की है. 

कछुओं में सैटेलाइट ट्रांसमीटर लगाए गए-
कछुओं की इस प्रजाति के बारे में वन विभाग के पास विस्तृत वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी. इसलिए साल 2022 में दस वयस्क बाटागुर बास्का कछुओं को सैटेलाइट ट्रांसमीटर लगाकर सुंदरवन की गहराई में छोड़ा गया, ताकि कछुओं की आवाजाही, आवास और जन्म इतिहास के बारे में पता चल सके. वन विभाग का दावा है कि उस ट्रांसमीटर से नई जानकारी मिली है. सुंदरवन टाइगर प्रोजेक्ट का दावा है कि विलुप्त हो रही प्रजाति के संरक्षण के साथ-साथ उनका प्रजनन भी संभव हो गया है. फिलहाल कृत्रिम रूप से अंडों से बच्चे निकालना संभव हो गया है. नतीजतन, वन विभाग का मानना ​​है कि कई और कछुए उपलब्ध होंगे.

(अनुपम मिश्रा की रिपोर्ट)

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