
Devinder Singh, Founder of Punjab Digital Library, Chandigarh
Devinder Singh, Founder of Punjab Digital Library, Chandigarh सपने तो हर कोई देखता है, लेकिन सपने उसी के साकार होते है जो सपनों के लिए जमीन पर उतर कर काम करता है. आज की कहानी भी एक ऐसे ही शख्स की है जिन्होंने अपने जोश, जुनून और जज्बे से बदलाव की नींव रखी है. यह कहानी है चंडीगढ़ के रहने वाले 52 वर्षीय देविंदर सिंह की, जिन्होंने पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी की शुरुआत की है.
देविंदर बताते हैं कि आज से चार दशक पहले उन्होंने पंजाब का जोमाहौल देखा है उसमें हमेशा नकारात्मक, मारधाड़ या फिर मरने- मारने वाली जैसी खबरें अखबार में पढ़ी. लेकिन जब थोड़ी समझ आई तो उन्होंने सोचा कि पंजाब में बहुत सी अच्छी और सकारात्मक चीजें हैं तो क्यों न उन तमाम अच्छी और बेहतरीन चीजों को इकट्ठा किया जाए और आने वाली पीढ़ियों के लिए सहेजा जाए.
साल 2003 से शुरू हुआ सफर
इस सोच के साथ ही साल 2003 से सफर शुरू हुआ पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी का. वॉलिंटियर्स द्वारा बनाई गई इस लाइब्रेरी से पंजाब की विरासत को सहेजा जा रहा है. देविंदर का मानना है कि जरूरी नहीं सरकार ही हर काम करें. अगर आपके अंदर खुद जज्बा है तो आप भी अपनी विरासत को संजो सकते हैं. पंजाब का मतलब है- पंज आब, पंज मतलब पांच, और आब मतलब पानी यानी नदियां. पंजाब का मतलब है पांच नदियों की धरती.
देविंदर सिंह ने GNT Digital से बातचीत में बताया कि धीरे-धीरे सकारात्मक और प्रेरक चीजें मिलने लगीं. लेकिन बड़ा चैलेंज यह था कि उन चीजों को बचाया कैसे जा सकता है. यह वह दौर था जब सबकुछ डिजिटलाइजेशन की तरफ जा रहा था. वहीं से डिजिटल लाइब्रेरी का सफर और सिलसिला शुरू हो गया. देविंदर सिंह ने बताया अभी तक उनकी लाइब्रेरी में करीबन 60 मिलियन पेज को डिजिटलाइज किया गया है.
सहेजा गुरु ग्रंथ साहिब जी का मैन्यूस्क्रिप्ट
पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी का मकसद है पंजाब की तमाम विरासत को डिजिटलाइज करना. जिसमें गुरमुखी में लिखी गीं मैन्यूस्क्रिप्ट्स, किताबें, पुराने अखबार, डायरी, पुराने सिक्के, फुलकारी, और खान-पान की संस्कृति आदि शामिल हैं.
सबसे पुराना मैन्यूस्क्रिप्ट जिसको डिजिटलाइज किया है वह गुरु कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी का है. जिसके लिए दावा किया जा रहा है कि यह 15वीं शताब्दी का है. लेकिन इस पर कोई तारीख नहीं है. पंजाब में उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब जी का साल 1653 का मैन्यूस्क्रिप्ट सहेजा है. एक और गुरु ग्रंथ साहिब जी की मैन्यूस्क्रिप्ट है साल 1676 की, जिस पर गुरु तेग बहादुर जी के हस्ताक्षर हैं.
भारत का सबसे पुराना नक्शा

किताबों की बात करें तो सबसे पुरानी किताब जिसको डिजिटलाइज किया गया है वह सन 1782 की है. इस किताब का नाम है मैप ऑफ हिंदुस्तान. इस किताब को लिखा है James Rennell ने जोकि भारत का पहला सर्वेयर जनरल था. यह अब तक का सबसे सही और सबसे पुराना भारत का नक्शा है. इसमें हिंदुस्तान के बारे में बहुत ही सटीक और विस्तार से जानकारी है चाहे वह सरहद हो, दिशा हों, शहरों के नाम, नदियों के नाम हों, तमाम चीजों का बहुत ही सटीक विवरण दिया गया है.
इसमें हर सीमा को अलग रंग दिया है जिसस यह स्पष्ट होता है कि उस देश का अंग्रेजों के साथ उस समय कैसे संबंध थे. जैसे पीली सरहद का मतलब है कि यह देश अंग्रेजों का दुश्मन है जबकि लाल का मतलब है यह अंग्रेजो का इलाका है. नीली सीमा का मतलब है कि यह देश अंग्रेजों का दोस्त है और ऑरेंज का मतलब है कि यह न्यूट्रल है.
सिख राज का आखिरी सोने का सिक्का

देविंदर की टीम को कुछ सिक्के भी मिले जो बहुत ही अलग हैं. क्योंकि ये सिक्के सिख इतिहास में सिर्फ एक ही बार बनाए गए. सन् 1848-49 में मुल्तान में द्वितीय सिख एंग्लो युद्ध हुआ हुआ. अंग्रेजों ने पूरी तरह से किले को घेर लिया था. मूलराज उस समय गवर्नर थे. किले के अंदर चांदी के सिक्के खत्म हो गए थे और युद्ध कर रहे सैनिकों को तनख्वाह देनी थी. फिर उस समय सैनिकों को तनख्वाह देने के लिए सोने को पिघलाकर चांदी जितनी कीमत के सिक्के बनाए गए.
इन सोने के सिक्कों से सैनिकों को तनख्वाह दी गई. हालांकि, एक-दो दिन के बाद अंग्रेजों ने मुल्तान के किले पर कब्जा कर दिया और अंग्रेजों ने यह सोना लूट लिया. अब पूरे विश्व में ये गिने-चुने ही सिक्के बचे हैं जिनको पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी ने डिजिटलाइज कर रखा है.
पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी का मकसद
बात देविंदर के मकसद की करें तो उनका उद्देश्य पंजाब की तमाम विरासत को डिजिटलाइज करना है. ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए एक विरासत हो. आने वाली पीढ़ियों को इस समृद्ध विरासत की जानकारी हो. आने वाले सालों में वह चाहते हैं कि वे एग्जिबिशन और प्रदर्शनी लगाएं जिससे लोगों को पता चल सके पंजाब की अमीर विरासत के बारे में.