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रेगिस्तान के करीब इन गांवों में पानी के लिए जाना पड़ता था कोसों दूर, दोस्तों ने मिलकर 6 महीनों में 132 गांवों में 156 तालाबों को किया पुनर्जीवित

वो कहते हैं ना..अगर आपमें किसी चीज को पाने की ललक है और आप उसके लिए दिन-रात एक करके मेहनत कर रहे हैं तो पक्का है कि वो चीज देर से ही सही लेकिन आपको मिलेगी जरूर. ये कहानी कुछ ऐसी ही है..जहां 3 दोस्त मिलकर केवल 6 महीनों में ही सैकड़ों से ज्यादा तालाबों को पुनर्जीवित कर दिया.

तीन दोस्त मिलकर 156 तालाबों को पुनर्जीवित कर दिया तीन दोस्त मिलकर 156 तालाबों को पुनर्जीवित कर दिया
हाइलाइट्स
  • इस गांव में तापमान 50 डिग्री तक पहुंच जाता है

  • 132 गावों में 156 तालाबों को पुनर्जीवित किया

गुजरात के कच्छ में रेगिस्तान से 26 किलोमीटर दूर एक गांव है कमागुना. यह गांव इस इलाके का आखिरी गांव है और आगे जाते ही रेगिस्तान का रास्ता शुरू हो जाता है. आज से कुछ महीनों पहले यह गांव पानी की समस्या से जूझ रहा था. गांव में पानी आता तो था, लेकिन 45 किमी दूर से और इसलिए कई बार कई दिनों तक गांव में पानी तक नहीं पहुंच पाता था. भीषण गर्मी के कारण सारे तालाब भी सूख चुके थे. लेकिन तीन दोस्तों की मुहिम ने गांव की तस्वीर बदल कर रख दी. अब गांव के सभी तालाबों में पानी है और यहां गांव का सूखा पूरी तरह से खत्म हो चुका है.

गांवों की तस्वीर बदल दी

भुज में रहने वाले तीन दोस्तों ने साल के शुरुआत में इन गांवों की तस्वीर बदलने की ठानी. तीनों ने सोचा था कि छः महीनों में कम से कम सौ तालाबों को पुनर्जीवित करेंगे, लेकिन यह मुहिम इतनी तेज़ी से गति पकड़ ली कि छः महीनों में 132 गावों में 156 तालाबों को पुनर्जीवित कर दिया.

जयेश लालका, मनीष आचार्य और धवल अहीर...इन तीन दोस्तों ने मिलकर इस कच्छ जल मंदिर अभियान की शुरुआत की और आज उनकी शुरुआत ने गांव की तस्वीर को बदलकर रख दिया है. मनीष आचार्य बताते हैं कि इस गांव में तापमान 50 डिग्री तक पहुंच जाता है और इसीलिए इस गांव में पानी का हर स्त्रोत सूख जाता है. हर साल गर्मियों के दौरान और गर्मियों के बाद गांव वालों को पानी की किल्लत होती है. छोटी-छोटी बच्चियों को और घर की महिलाओं को पानी लाने के लिए कोसों दूर जाना पड़ता था. कई बार तो ऐसा भी होता था कि घर के बच्चे प्यार से ही सो जाते थे और पानी ना होने के कारण घर पर खाना भी नहीं बन पाता था.

गांव वालों को भी इस मुहिम में जोड़ा

वे कहते हैं कि 'इन सब परेशानियों को ध्यान में रखते हुए हमने सोचा कि इस समस्या का हल ढूंढना बेहद जरूरी है. और हम तीन दोस्तों ने मिलकर अपने साथ अन्य लोगों को भी जोड़ा और गांव वालों को इस मुहिम में जुड़ने के लिए राज़ी किया.'

जयेश लालका और धवल अहीर कहते हैं कि गांव में पानी के स्त्रोत को पुनर्जीवित करने की शुरुआत जनवरी महीने में की थी. गांव में जेसीबी पहुंच पाना बहुत मुश्किल था क्योंकि गांव तक पहुंचने के लिए कच्ची सड़क से गुजरना पड़ता था. फिर भी हमने हर संभव प्रयास किया और आज हमारे प्रयासों का सफल परिणाम देखने को मिल रहा है.

गांव के लोगों का भी यही कहना है कि उन्हें सभी का छोड़कर पहले पानी का बंदोबस्त करना पड़ता था. लेकिन अब 10 कदम चलते ही उन्हें पानी का तालाब मिल जाता है. यह तालाब सूखा नहीं भरा हुआ है यही देखकर हर बार खुशी होती है. आज गांव में पानी आने के कारण घर के पुरुष खेती करने जा पा रहे हैं और बच्चियां स्कूल में पढ़ रही हैं. मनीष आचार्य कहते हैं कि अब उनका कक्षा से ज्यादा गांवों तक पहुंचाना है.