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Unique Initiative: संगरूर के लक्ष्मण सिंह चठा का अनोखा अभियान, पक्षियों की खातिर कर रहे बाजरे की खेती

चठा द्वारा लगाए गए घोंसलों में आज देसी चिड़ियां, तोते, उल्लू की प्रजातियां और नीलकंठ जैसे पक्षी प्रजनन कर रहे हैं. उनका मानना है कि ये पक्षी खेतों में कीड़े खाकर फसल को बचाते हैं, यानी पक्षियों की रक्षा से खेती भी सुरक्षित होती है.

Laxman Singh Chatha Laxman Singh Chatha

पंजाब की धरती जहां हरियाली और खेतीबाड़ी की पहचान रही है, वहीं आधुनिक कृषि पद्धतियों और कीटनाशकों के कारण अब पर्यावरण और पक्षी जीवन पर गहरा असर पड़ा है. लेकिन इसी दौर में संगरूर ज़िले के सरकारी शिक्षक लक्ष्मण सिंह चठा ने एक अनोखी मिसाल कायम की है. उन्होंने अपनी पाँच कनाल निजी ज़मीन पर केवल पक्षियों के लिए बाजरे की फसल उगाई है. यह जमीन अब उनके लिए कमाई का साधन नहीं, बल्कि पक्षियों के लिए “लंगर” बन चुकी है.

पक्षियों के लिए “लंगर”

सुबह और शाम को सैकड़ों तोते, चिड़िया, नीलकंठ और अन्य पक्षियों के झुंड यहां जुटते हैं और प्राकृतिक दाना चुगते हैं. चठा बताते हैं कि यह केवल फसल नहीं, बल्कि प्रकृति से दोबारा जुड़ने की कोशिश है. लगभग दो महीने तक यह फसल पक्षियों के लिए खुली रहती है.

18 सालों से प्रयास

लक्ष्मण सिंह चठा केवल बाजरा उगाने तक ही सीमित नहीं हैं. वर्ष 2016 से वे गांव और शहर के लोगों में घोंसले और मिट्टी के कटोरे बांट रहे हैं ताकि पक्षियों को पानी और ठिकाना मिल सके. बच्चे और ग्रामीण उन्हें प्यार से “कटोरों वाला मास्टर” कहते हैं. हर गर्मी में वे बच्चों को लेकर गलियों में निकलते हैं और घर-घर के बाहर मिट्टी के कटोरे रखते हैं.

बाजरा- विरासत की फसल

चठा बताते हैं कि बाजरा पंजाब की विरासती फसल है. पहले पंजाब में 20 से अधिक तरह की फसलें होती थीं, जिनसे इंसानों के साथ-साथ पक्षियों और जानवरों को भी भोजन मिलता था. लेकिन अब रसायनों और आधुनिक खेती ने यह परंपरा तोड़ दी है. बाजरा न केवल पौष्टिक है, बल्कि पक्षियों के लिए सबसे प्राकृतिक दाना भी है.

परिवार का साथ और दसवंध

इस पूरी पहल के लिए चठा किसी NGO से नहीं जुड़े. वे अपनी निजी आय से ही इसे संचालित करते हैं. सिख परंपरा के अनुसार “दसवंध” यानी अपनी आय का दसवां हिस्सा निकालकर यह अभियान चलाते हैं. उनकी पत्नी, बच्चे, भतीजे-भतीजियां- सभी इस मिशन में उनका साथ देते हैं.

चठा बताते हैं कि वे गुरु नानक देव जी की शिक्षा- “किरत करो, वंड छको और नाम जपो”- को जीवन मंत्र मानते हैं. उनका कहना है, “इंसान ने बड़े-बड़े घर और गाड़ियाँ तो बना लीं, लेकिन पक्षियों के लिए अनाज और पानी की जगह खत्म कर दी. यही कारण है कि हजारों पक्षी प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं.”

पक्षियों के घोंसले और चहचहाहट

चठा द्वारा लगाए गए घोंसलों में आज देसी चिड़ियां, तोते, उल्लू की प्रजातियां और नीलकंठ जैसे पक्षी प्रजनन कर रहे हैं. उनका मानना है कि ये पक्षी खेतों में कीड़े खाकर फसल को बचाते हैं, यानी पक्षियों की रक्षा से खेती भी सुरक्षित होती है.

जहां उनकी जमीन की कीमत 80–85 हज़ार रुपये प्रति एकड़ है, वहां वे इसे बेचने या खेती से मुनाफा कमाने के बजाय पक्षियों के नाम कर चुके हैं. उनका कहना है कि यह सुकून पैसों से कहीं ज्यादा कीमती है, जो पक्षियों की चहचहाहट से मिलता है.

चठा ने यह भी बताया कि जब बाजरे की फसल सूख जाएगी, तो वे इसे कुत्तों, बिल्लियों और गायों जैसे जानवरों के लिए उपयोग करेंगे. आने वाले दिनों में वे अपनी ज़मीन पर हरा चारा भी उगाने की योजना बना रहे हैं, ताकि पशुओं को भी लाभ मिले.

चठा लोगों से अपील करते हैं कि हर कोई छोटी-छोटी कोशिशों से प्रकृति से जुड़े. उनका मानना है कि यदि पक्षियों की संख्या बढ़ेगी, तो कीटनाशकों की ज़रूरत अपने आप कम हो जाएगी. वे कहते हैं- “पक्षी कभी बेजुबान नहीं होते, बस हम उनकी भाषा समझ नहीं पाते.”

(कुलवीर सिंह की रिपोर्ट)