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आहा बनारस, जाड़े के स्वाद और ठिठुरती कोहरे से नहाए सुबह-ए-बनारस की मिठाइयां

कहते हैं काशी में मरने पर स्वर्ग मिलता है, तो सोचिए जीना कितना आनंददायक होगा. इस आनंद में गोता लगाते हुए यहां की मिठाइयां अपने आप में इतिहास समाए हुए हैं. सिर्फ इतिहास ही नहीं, इस शहर की मिठाइयां आयुर्वेद को भी समाहित कर चुकी हैं.

sweets of Subah-e-Banaras sweets of Subah-e-Banaras

अलसाई सी सुबह और गंगा पार रेती पर उगते सूरज को निहारते हुए गंगा में आचमन कर जब एक बनारसी काशी विश्वनाथ के सुबह की मंगला आरती कर चुका होता है तो सबसे पहले कचौड़ी गली का रुख करता है, बांसफाटक (जो कि अब नए समय में गेट नंबर 4 हो गया है) से चौक की तरफ बढ़ते हुए, गर्मागर्म कचौड़ी और जलेबी छानने के बाद दिन की शुरुआत हो जाती है. अपने खान पान और अकेली अल्हण परंपरा का शहर बनारस (आप चाहे काशी कह लें या वाराणसी कह ले) अपनी ही शान में नजर आता है. बनियान (लोकर भाषा में गंजी) और गमझा ओढ़े एक अंजान सा बनारसी मुस्कराते चेहरे से महादेव के उद्घोषक अभिवादन के साथ जब निकलता है तो सारी परंपराएं, सारे विचार एक विचार पर खत्म हो जाते हैं. 

काशी की मिठाइयां-
कहते हैं काशी में मरने पर स्वर्ग मिलता है, तो सोचिए जीना कितना आनंददायक होगा. इस आनंद में गोता लगाते हुए यहां की मिठाइयां अपने आप में इतिहास समाए हुए हैं. सिर्फ इतिहास ही नहीं, इस शहर की मिठाइयां आयुर्वेद को भी समाहित कर चुकी हैं. दुनिया के सबसे पुराने शहर (अगर डिबेट ना हो तो) कहे जाने वाले बनारस की मिठाइयों की बात आते ही हमारे ज़ेहन में एक नाम बार-बार गूंजता है—‘ठठेरी बाजार’। इस बाज़ार में बनारसी हलवाइयों की दो सौ बरस पुरानी समृद्ध और सुस्वादु परम्परा रही है. इस परम्परा के उदाहरणस्वरूप बिहारी साव, हरखू साव, मथुरा साव, केदार साव और बैजू साव का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है, इनमें से हर एक का योगदान इस शहर की मिठाई संस्कृति में अमिट छाप छोड़ गया है.

जब बात मिठाइयों की आती है, तो आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार उन्हें हर मौसम के अनुरूप चुनना चाहिए. आयुर्वेद में तीन दोषों – वात, पित्त और कफ – का संतुलन बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, और यही सिद्धांत मिठाइयों के चयन पर भी लागू होता है.

गर्म तासीर वाली मिठाइयां-
ठंड के मौसम में वात दोष प्रबल होता है, जिसका निदान वातनाशक मिठाइयों से किया जा सकता है. ठंड में तासीर गर्म रखने वाली मिठाइयाँ जैसे तिल-गुड़ के लड्डू या मैथी के लड्डू लाभदायक हैं. ये न केवल शरीर को गर्म रखते हैं, बल्कि प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाते हैं.

ठंड में वातनाशक, वसंत में कफनाशक और गरमियों में पित्तनाशक मिठाइयॉं होनी चाहिए. वात, पित्त और कफ. आयुर्वेद का पूरा चिकित्सा विज्ञान इसी में संतुलन बिठाता है. बादाम सोचने-समझने की ताकत बढ़ाता है, पर उसका पेस्ट कब्ज बना सकता है. बादाम के दो भागों के बीच अनान्नास का पल्प डाल उन्होंने एक मिठाई बनाई ‘रस माधुरी’. इसमें फाइबर भी था और यह ‘एंटी ऑक्सीडेंट’ भी.

बनारस की मलइयो-
बनारस की सबसे खास मिठाई जो शायद पूरी दुनिया में कहीं और नहीं बनती है. मलइयो जो सिर्फ सर्दियों के मौसम में बनाई जाती है. यही खास मिठाई उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी काफी पसंद है. ठिठुरती ठण्ड की खास बनारस की मिठाई मलइयो सर्दी की सुबह तैयार होती है जब हर कोई ठंड की वजह से रजाई में दुबका रहता है तभी बनारस के लोग एक ऐसी मिठाई का लुत्फ़ लेते है जो सिर्फ पुरे साल में सिर्फ सर्दी के तीन महीने ही ओस की बूंदों से तैयार होती है. इस खास दूध से बनने वाली मिठाई को बनाने की शुरुआत सैकड़ो साल पहले बनारस से ही शुरू हुई है. हालांकि लखनऊ वाले मक्खन मलाई और दिल्ली वाले दौलत की चाट से तुलना करते रहते हैं. लेकिन अभी पहुंच नहीं पाए हैं. ये अपने अनुभव से कह पा रहा हूं.

नागरमोथ, सोंठ, भुने-चने के बेसन और ताजा हल्दी से वे एक लड्डू बनाते थे, ‘प्रेम वल्लभ’ जो कफनाशक था. स्वाद में बेजोड़। मिष्ठान्न निर्माण में वे सिर्फ ऋतुओं का ही ध्यान नहीं रखते थे. बल्कि उसके डिटेल में भी जाते थे. सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायण होने से उनकी मिठाइयों की तासीर और तत्त्व बदल जाते. सोंठ और गोंद का एक लड्डू बनाते हैं जो वास्तव में ‘पौरुषवर्धक’ होता. शरीर को डिटॉक्स भी करते हैं. सर्दी के लड्डुओं की तासीर गरिष्ठ होती है. इन्हें खाने के बाद जब भूख लगे तो खाना खाएं, नहीं तो गुणवत्ता कम होगी. पाचन भी बिगड़ सकता है. साथ में खट्टी-ठंडी चीजें जैसे दही, छाछ, अचार, अमचूर, जंक- फास्ट फूड, मैदा, मावा, बेसन और मेवे की मिठाइयां भी नहीं खाएं. बनारस में इस मौसम में हालांकि लस्सी, छांछ (मट्ठा, मंठा)  हमारे बचपन में नहीं मिलता था, लेकिन समय के साथ बाजारवाद के चलते अप चुख इलाके खासतौर पर लंका, गौदोलिया, नदेसर पर विश्व प्रसिद्ध हो चुकी दुकानों पर साल पर मिलते हैं, लेकिन पुराने बनारस की गलियों में ये बंद हो जाते हैं. 

मशहूर मगदल-
मूंग की धुली दाल, घी, चीनी और पिस्ता मिलाकर तैयार किया गया मगदल भी बनारस में खूब मशहूर है. इसके अलावा, आयुर्वेद में सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायण होने पर भी मिठाइयों के प्रकार और तासीर को बदलने की सलाह दी जाती है. आयुर्वेद के अनुसार मिठाइयों का सही चयन न केवल स्वास्थ्य को लाभ पहुँचाता है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन को भी बनाए रखता है. इस प्रकार, आयुर्वेदिक मिठाइयाँ ना केवल स्वादिष्ट होती हैं, बल्कि पूरे साल स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी सिद्ध होती हैं. मूंग की दाल आंखों की रोशनी बढ़ाने और आइसाइट बेहतर बनाने में मदद करती है , शारीरिक क्षमता बढ़ाने और मांसपेशियों को मज़बूत बनाने में मदद करती है. जाड़े में मौसमी बिमारी से होने वाले बुखार से राहत दिलाने में मदद करती है. जाड़े में लोगों को स्किन प्रोब्लम बढ़ जाती है तो बनारसियों इसका इलाज में अपनी मिठाई में ढूंढ निकाला, त्वचा के रंग में सुधारकर चेहरे का निखार बढ़ाती है मूंग.

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