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Vibrant Village Scheme: भारत-चीन सीमा के पहले गांव में खुशियों का माहौल, वाइब्रेंट विलेज योजना ने बिखेरे रंग

जादूंग और नेलांग जैसे गांव, जो कभी युद्ध की त्रासदी में खो गए थे, अब वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत नई पहचान बना रहे हैं. भारतीय सेना और सरकार के संयुक्त प्रयासों से ये गांव न केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजो रहे हैं, बल्कि पर्यटन और विकास के नए रास्ते भी खोल रहे हैं. 

खुशी मनाते गांव वाले खुशी मनाते गांव वाले

भारत-चीन सीमा पर बसे सीमांत गांव जादूंग और नेलांग, जो कभी 1962 के युद्ध की त्रासदी में उजड़ गए थे, अब फिर से गुलज़ार हो रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट 'वाइब्रेंट विलेज योजना' के तहत ये गांव नई जिंदगी पा रहे हैं. सोमवार को जादूंग गांव में भारतीय सेना की राजपुताना रायफल्स और आईबैक्स ब्रिगेड द्वारा आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में ग्रामीणों ने अपनी पारंपरिक संस्कृति का रंगारंग प्रदर्शन किया. इस दौरान भोटिया और जाड़ समुदाय के सैकड़ों लोग अपने पैतृक गांव पहुंचे और अपने आराध्य देवताओं की पूजा-अर्चना कर आस्था की अनूठी मिसाल पेश की.

पारंपरिक नृत्य और भक्ति का संगम
जादूंग गांव में आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में ग्रामीणों ने पांडव चौक और रिंगाली देवी चौक में लाल देवता और रिंगाली देवी की डोलियों की भव्य शोभायात्रा निकाली. पारंपरिक वेशभूषा में सजी महिलाओं ने रांसो-तांदी नृत्य के साथ पौराणिक गीत गाए, जिससे पूरी घाटी भक्तिमय हो उठी. इन गीतों और नृत्यों ने न केवल स्थानीय संस्कृति को जीवंत किया, बल्कि ग्रामीणों की आस्था और एकता को भी दर्शाया. यह दृश्य इतना मनमोहक था कि हर कोई इस सांस्कृतिक समागम का हिस्सा बनने को आतुर दिखा.

सेना का योगदान और स्वच्छ जल की सौगात
इस ऐतिहासिक अवसर पर भारतीय सेना ने ग्रामीणों के लिए विशेष व्यवस्थाएं कीं. राजपुताना रायफल्स और आईबैक्स ब्रिगेड के अधिकारियों ने न केवल इस आयोजन को सफल बनाया, बल्कि जादूंग गांव में एक आरओ प्लांट का उद्घाटन भी किया. इस प्लांट के जरिए गांव को स्वच्छ पेयजल की सुविधा मिलेगी, जो स्थानीय लोगों के जीवन स्तर को और बेहतर बनाएगा. सैन्य अधिकारियों ने भी ग्रामीणों के साथ पूजा-अर्चना में हिस्सा लिया, जिससे सेना और स्थानीय समुदाय के बीच का रिश्ता और मजबूत हुआ.

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वाइब्रेंट विलेज योजना
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद जादूंग, नेलांग और कारछा जैसे सीमांत गांवों के निवासियों को विस्थापित कर बगोरी, डुंडा और हर्षिल जैसे क्षेत्रों में बसाया गया था. युद्ध की त्रासदी ने इन गांवों को वीरान कर दिया था, लेकिन ग्रामीणों की परंपराएं और आस्था आज भी जीवित हैं. हर साल ये लोग अपने पैतृक देवस्थलों पर लौटकर पूजा-अर्चना करते हैं और अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'वाइब्रेंट विलेज योजना' ने इन उजड़े गांवों में नई जान फूंक दी है. इस योजना के तहत जादूंग और नेलांग में 14 होम स्टे विकसित किए जा रहे हैं, जो न केवल स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करेंगे, बल्कि इन क्षेत्रों में पर्यटन को भी बढ़ावा देंगे. इन प्रयासों से सीमावर्ती गांव फिर से जीवन और खुशियों से भर रहे हैं.

ग्रामीणों की आस्था और सेना का साथ
इस आयोजन में भोटिया और जाड़ समुदाय के लोगों ने अपनी सांस्कृतिक जड़ों को न केवल जीवंत रखा, बल्कि इसे एक उत्सव की तरह मनाया. फॉरेस्ट विभाग के रेंज ऑफिसर ने भी इस कार्यक्रम की सराहना की और इसे सीमांत क्षेत्रों के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम बताया. ग्रामीणों का उत्साह और सेना का सहयोग इस बात का सबूत है कि सही दिशा में उठाए गए कदम इन गांवों को फिर से समृद्ध बना सकते हैं.

जादूंग और नेलांग जैसे गांव, जो कभी युद्ध की त्रासदी में खो गए थे, अब वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत नई पहचान बना रहे हैं. भारतीय सेना और सरकार के संयुक्त प्रयासों से ये गांव न केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजो रहे हैं, बल्कि पर्यटन और विकास के नए रास्ते भी खोल रहे हैं. 

(रिपोर्ट: ओंकार बहुगुणा)