
भारत में मोटापा बड़ी समस्या बनता जा रहा है. इसे देखते हुए पीएम मोदी तक फिट इंडिया जैसी पहल शुरू कर चुके हैं. फिर भी बहुत से लोग हैं जिन्हें लगता है मोटापा कम करने के लिए जिम में बहुत पैसे खर्च करने पड़ेंगे या फिर क्रैश डाइट कॉर्स लेने पड़ेंगे. लेकिन अगर हम कहें कि आप घर पर ही वर्कआउट करके, घर में बनाया हुआ हेल्दी खाना खाकर वजन कम कर सकते हैं तो? शायद आपको यकीन न हो.
लेकिन प्रांजल पांडे ने यही कर दिखाया है. इस युवा महिला ने इंस्टाग्राम पर अपनी जर्नी शेयर की, जहां उन्होंने 154 किलो से 65 किलो तक का सफर तय किया. लेकिन उनका यह कायाकल्प किसी क्रैश डाइट या जिम में पसीना बहाकर नहीं हुआ. यह बदलाव आया खुद को बेहतर समझकर, संतुलित खाने की आदतों और फिटनेस से.
कम नहीं... सही खाना है जरूरी
आमतौर पर माना जाता है कि वज़न घटाने का सबसे तेज़ तरीका है खुद को भूखा रखना या बहुत सख्त डाइट अपनाना. लेकिन प्रांजल की कहानी इस मिथक को तोड़ती है. उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, “वज़न घटाना इस बात पर निर्भर करता है कि आप क्या खाते हैं.” प्रांजल ने प्रोटीन को "राजा" कहा और फाइबर को वह गुप्त हथियार जो चुपचाप असर करता है. प्रोटीन और फाइबर डाइट में लेने से पेट लंबे समय तक भरा रहता है और फिर आप बिना मतलब स्नैकिंग या बिंज ईटिंग नहीं करते.
उनके खाने में दालें, पनीर, अंडे, हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, बीन्स और गाजर आदि शामिल हैं. लोग मानते हैं कि प्रोटीन सिर्फ बॉडीबिल्डर्स के लिए होता है, लेकिन असल में यह मेटाबॉलिज़्म, मांसपेशियों की मरम्मत और भूख से संतुष्टि में मदद करता है- जो वज़न घटाने में बेहद ज़रूरी हैं. फाइबर पाचन को धीमा करता है, ब्लड शुगर को स्थिर रखता है और फैट कंट्रोल व ऊर्जा संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है.
HIIT नहीं, वेट ट्रेनिंग बनी हथियार
बहुत से लोग हाई-इंटेंसिटी वर्कआउट्स (HIIT) को आदर्श मानते हैं, लेकिन प्रांजल ने एक अलग राह चुनी. उनका रूटीन था: रोज़ाना 45-60 मिनट वेट ट्रेनिंग और इसके बाद 15-30 मिनट लो-इम्पैक्ट कार्डियो. लेकिन उन्होंने हर दिन रूटीन बनाए रखा. कार्डियो का दिल की सेहत में बड़ा रोल होता है, लेकिन फैट घटाना और मांसपेशियां बनाना हो तो वेट ट्रेनिंग ज्यादा असरदार साबित हुई. इससे मेटाबॉलिज़्म बढ़ा, शरीर टोन हुआ और ज़्यादा कैलोरीज़ बर्न होने लगीं.
मेंटल हेल्थ पर फोकस
वेटलॉस सिर्फ शरीर का नहीं होता है बल्कि यह हमारी मेंटल हेल्थ पर भी असर करता है. प्रांजल ने मेंटल हेल्थ की अनदेखी नहीं की. उन्होंने "ग्रैटिट्यूड जर्नलिंग" यानी आभार लिखने की आदत शुरू की. वह हर दिन छोटी-छोटी चीजें लिखने लगीं. इससे उन्हें उनके लक्ष्य से जुड़े रहने, आगे बढ़ने और भावनात्मक रूप से बैलेंस्ड रहने में मदद मिली.
पांच छोटी लेकिन असरदार आदतें
प्रांजल ने कोई मुश्किल रूटीन नहीं अपनाया. न 4 बजे उठकर लंबा मेडिटेशन, न दिखावटी हैबिट्स. उन्होंने पांच सरल लेकिन असरदार आदतें अपनाईं, जो उनका रूटीन बन गईं:
ये सभी आदतें छोटी लग सकती हैं, लेकिन नियमित रूप से करने पर इनका असर बड़ा होता है. ये वैज्ञानिक रूप से पाचन, हार्मोनल बैलेंस और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हैं.
प्रांजल हम सबके लिए मिसाल हैं जिन्होंने बिना किसी दिखावे के अपनी फिटनेस जर्नी को जारी रखा.