
भारत की 197 अति संकटग्रस्त भाषाओं में शामिल भूमिज भाषा अब विलुप्त होने की कगार से लौट आई है. साल 2018 से भूमिज समाज ने इस भाषा को बचाने के लिए एक सशक्त आंदोलन शुरू किया, और आठ सालों के भीतर 50,000 से अधिक लोगों को यह भाषा सिखाकर इसे फिर से जीवित कर दिया.
बोर्ड का गठन और स्कूलों की स्थापना
भाषा पुनर्जीवन की शुरुआत "वेस्ट बंगाल आदिवासी भूमिज डेवलपमेंट बोर्ड" के गठन से हुई. इसके बाद झारग्राम, पुरुलिया, बांकुड़ा और पश्चिम मेदिनीपुर- जंगलमहल क्षेत्र के चार प्रमुख जिलों में 70 भूमिज भाषा स्कूल खोले गए. यह क्षेत्र भूमिज समुदाय की सबसे बड़ी आबादी (लगभग 9-10 लाख) वाला क्षेत्र है.
ऑनलाइन कोर्स से जुड़ रहे बाहर के लोग
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबकि, इन जिलों से बाहर रहने वाले भूमिज समुदाय के लोगों के लिए ऑनलाइन कोर्स की शुरुआत की गई, जिससे वे भी अपनी भाषा फिर से सीख सकें.
भाषा भूले लोगों को दोबारा जोड़ना
बोर्ड अध्यक्ष नित्यालाल सिंह बताते हैं कि भूमिज समुदाय के लोग बांग्ला और अन्य भाषाएं अपना चुके थे और अपनी मातृभाषा भूलते जा रहे थे. इसलिए उन्होंने नई पीढ़ी को सिखाने के लिए स्कूलों में वीकेंड पर क्लासेस शुरू कीं. इन स्कूलों में 10 साल के बच्चों से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक पढ़ाई कर रहे हैं. शिक्षक 25 साल से ज्यादा उम्र के होते हैं और बिना वेतन के शिक्षा देते हैं.
सीखो और सिखाओ की योजना
जो 50,000 लोग अब तक भूमिज सीख चुके हैं, उन्हें कम से कम एक और व्यक्ति को सिखाने का लक्ष्य दिया गया है ताकि जल्द ही यह संख्या 1 लाख तक पहुंच जाए. इस साल पहली बार इन छात्रों की परीक्षा भी ली गई, ताकि यह मूल्यांकन हो सके कि वे दूसरों को सिखाने के लिए तैयार हैं या नहीं.
तीन भाषाओं के सहारे भूमिज की शिक्षा
बांकुड़ा के किसान विकास पातोर पिछले तीन सालों से भूमिज पढ़ा रहे हैं. वे बांग्ला, हिंदी और अंग्रेजी के माध्यम से यह भाषा सिखाते हैं. रोज़मर्रा की चीज़ों जैसे फल, सब्ज़ियां और वाक्यांशों के भूमिज नाम सिखाए जाते हैं. जैसे:
झारखंड में मान्यता, ओडिशा में पढ़ाई
नित्यालाल सिंह के अनुसार, झारखंड में भूमिज भाषा को सरकारी मान्यता प्राप्त है और ओडिशा में यह भाषा कक्षा 8वीं तक के सिलेबस में शामिल है. अब उनका लक्ष्य है कि पश्चिम बंगाल में भी यह भाषा शैक्षणिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बने.
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