
पश्चिम बंगाल में पूर्वी मिदनापुर के एक प्राथमिक स्कूल में बतौर शिक्षक काम करने वाले श्यामल जाना पिछले काफी समय से पर्यावरण संरक्षण करने में जुटे हैं. वह अपनी बाइक पर एक बैग में ढेर सारे बरगद के पौधे लेकर राज्य के दक्षिणी जिलों में 'ठकबो ना को बोधो घोरे, गच लगाबो बिस्सो जुरे' का नारा लगाते हैं.
जिसका मतलब है कि मैं घर में बैठने की बजाय पेड़-पौधे लगाऊंगा. जाना का उद्देश्य अगले पांच वर्षों में पहाड़ियों से लेकर बंगाल की खाड़ी तक, पूरे राज्य में 5,000 बरगद के पेड़ लगाने का है.
वह पहले ही राज्य की राजधानी कोलकाता और उत्तर बंगाल के डुआर्स सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में 600 से अधिक पेड़ लगा चुके हैं. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बचपन से ही उन्हें अपने जीवन में पेड़ों की आवश्यकता के बारे में सिखाया जाता था. और आज वह उस सीख पर अमल कर हे हैं.
क्यों लगाते हैं बरगद के पेड़
अब सवाल है कि जाना सिर्फ बरगद का पेड़ ही क्यों लगाते हैं? इसका कारण वह बताते हैं कि बरगद को एक पवित्र वृक्ष माना जाता है। लोग इससे जलाऊ लकड़ी नहीं इकट्ठा करते हैं. यह अपने विशाल आकार के कारण कई घोंसलों को आश्रय देता है.
ग्रामीण बंगाल में, एक बरगद का पेड़ भीषण गर्मी में छाया देता है. पिछले कुछ महीनों में जाना ने राज्य में 595 बरगद के पेड़ लगाए. उन्होंने कलिम्पोंग, उत्तरी दिनाजपुर, बांकुरा, पुरुलिया, पूर्व और पश्चिम मिदनापुर और दक्षिण 24 परगना जिलों के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है.
पत्नी दे रही हैं पूरा साथ
इस काम में जाना की पत्नी मोनिका ने उनकी मदद की है. मोनिका का कहना है कि शादी के बाद उन्हें थोड़ा बुरा लगता था कि उनके पति छुट्टियों पर अपनी मोटरसाइकिल के साथ पौधे लेकर घर से निकल जाते थे. बाद में उन्हें एहसास हुआ कि पेड़ ही उनका जीवन है. वह वृक्षारोपण के बिना जीवित नहीं रह सकते. इसलिए वह उनके काम में साथ देने लगीं. जाना ने हावड़ा पुलिस मुख्यालय के सामने भी पौधे लगाए हैं.