
ऐतिहासिक विरासत और इतिहास को संजोय रखने के लिए अलग-अलग कदम उठाए जा रहे हैं. अब इसी कड़ी में रत्नागिरी की प्राचीन कलाकृतियों को बचाने के लिए भी ऐसा ही किया जा रहा है. महाराष्ट्र सरकार ने आधिकारिक तौर पर रत्नागिरी में जियोग्लिफ और पेट्रोग्लिफ को 'संरक्षित स्मारक' यानी प्रोटेक्टेड मॉन्यूमेंट घोषित किया है.
जियोग्लिफ और पेट्रोग्लिफ क्या हैं?
जियोग्लिफ और पेट्रोग्लिफ धरती की सतह पर पाई जाने वाली अलग-अलग प्रकार की प्राचीन कलाएं हैं. इन दोनों में चट्टान की सतहों पर डिजाइन या चित्र बने होते हैं.
-पेट्रोग्लिफ्स: ये चट्टान की सतहों पर नक्काशी है. इनमें जानवरों, मनुष्यों या अलग-अलग पैटर्न बनाए गए हैं. रत्नागिरी में, पेट्रोग्लिफ में गैंडे, हिरण, बंदर, गधे और यहां तक कि पैरों के निशान जैसे जानवरों का चित्रण शामिल है. इस नक्काशी में प्राचीन काल के लोगों के जीवन की झलक दिखाई गई है.
-जियोग्लिफ्स: ये जमीन पर बने बड़े डिजाइन हैं. इनमें अक्सर ऊपर से दिखाई देने वाले पैटर्न चट्टानों पर बने हैं.
रत्नागिरी के पेट्रोग्लिफ्स का ऐतिहासिक महत्व
रत्नागिरी में पेट्रोग्लिफ, विशेष रूप से देउड में, मेसोलिथिक युग के हैं. ये लगभग 20,000 से 10,000 साल पुराने हैं. यह काल, जिसे मध्य पाषाण युग के रूप में भी जाना जाता है, वह समय था जब शुरुआत में इंसानों ने खुद को एक्सप्रेस करने के नए तरीके खोजे थे.
ये मेसोलिथिक इंसानों की रचनात्मक अभिव्यक्तियों को दिखाते हैं. साथ ही ये दिखाते हैं कि इतने साल पहले इंसान कैसे थे, क्या करते थे, और कैसे रहा करते थे. संरक्षित किए जाने वाले इन स्मारकों के आसपास का कुल क्षेत्रफल 210 वर्ग मीटर है.
भारत की नॉर्मल रॉक पेंटिंग से है अलग
भारत की नॉर्मल रॉक पेंटिंग से रत्नागिरी की कलाकृतियां काफी अलग हैं. इनमें समुद्री जीवों की छवियां, नदी के जानवरों का चित्रण, अलग-अलग जानवर (जो कभी इस क्षेत्र में मौजूद होंगे), सांप और मेंढक जैसे जीवों की छवियां और पक्षियों का चित्रण शामिल है. हालांकि, जिन जानवरों को इसमें बनाया गया है उनमें से कई जानवर सदियों से इस क्षेत्र से गायब हो गए हैं. ऐसे में इन कलाकृतियों का ऐतिहासिक रिकॉर्ड रखना और भी जरूरी हो गया है. बता दें, अकेले रत्नागिरी में 70 अलग-अलग जगहों पर 1,500 से ज्यादा ऐसी ही कलाकृतियां हैं.
गौरतलब है कि एक्सपर्ट्स ने इन साइटों को लेकर चिंता जताई थी. इनमें से कुछ जियोग्लिफ के पास स्थित बार्सू में एक प्रस्तावित तेल रिफाइनरी ने चेतावनी दी थी. उनके मुताबिक, इससे इन प्राचीन कलाकृतियों को नुकसान पहुंच सकता है. रिफाइनरी के बनने से जियोग्लिफ को नुकसान पहुंच सकता है.