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No Cost EMI: कहीं 'नो कॉस्ट ईएमआई' में नुकसान तो नहीं करवा रहे अपना आप, इस तरह समान खरीदने से पहले जान लें ये बात

'नो कॉस्ट ईएमआई' के नाम पर आपको डिस्काउंट से दूर कर दिया जाता है. कई तरह के चार्जेस लगा दिए जाते हैं. साथ ही प्रोडक्ट की कीमत भी बढ़ा दी जाती है.

अपने प्रॉडक्ट बेचने के लिए ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म और बड़े इलेक्ट्रॉनिक स्टोर्स पर अक्सर आपको "नो कॉस्ट EMI" का ऑफर दिखाया जाता है. इस ऑफर को देखकर लगता है कि अब महंगे गैजेट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स या अन्य प्रोडक्ट्स को बिना किसी अतिरिक्त खर्च के आसान किस्तों में खरीदा जा सकता है. लेकिन क्या सच में यह ऑफर पूरी तरह मुफ्त है? आइए जानते हैं कि नो कॉस्ट EMI की असलियत क्या है और इसमें छिपे हुए चार्जेज कैसे ग्राहकों की जेब पर बोझ डालते हैं.

नो कॉस्ट EMI क्या है?
नो कॉस्ट EMI का सीधा मतलब है कि ग्राहक को सामान खरीदते समय बताया जाता है कि किस्तों पर कोई ब्याज नहीं देना पड़ेगा. यानी 12 महीने की EMI चुनने पर कुल भुगतान उतना ही होगा जितना कि प्रोडक्ट की कीमत है. लेकिन असलियत इससे थोड़ी अलग है.

कैसे काम करता है यह ऑफर?
बैंक और NBFC सीधे-सीधे ब्याज माफ नहीं करते. बल्कि कंपनियां प्रोडक्ट की कीमत के साथ छेड़-छाड़ कर वो ब्याज आपसे वसूल कर ही लेती है. यह ब्याज पहले ही प्रॉडक्ट की कीमत में एडजस्ट करके रखा जाता है. कई बार रिटेलर प्रोडक्ट पर मिलने वाला डिस्काउंट हटा देता है और वही रकम EMI पर ब्याज चुकाने में जोड़ दी जाती है। कुछ मामलों में प्रोसेसिंग फीस और GST जोड़कर ब्याज वसूला जाता है. यानी नाम भले ही "नो कॉस्ट" हो, लेकिन लागत कहीं न कहीं से वसूली ही जाती है.

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डिस्काउंट का नुकसान
मान लीजिए किसी मोबाइल फोन की कीमत 20,000 रुपये है. कैश पेमेंट पर रिटेलर आपको 2,000 रुपये का डिस्काउंट देता है. लेकिन अगर आप 'नो कॉस्ट EMI' चुनते हैं तो डिस्काउंट नहीं मिलेगा और आपको पूरी 20,000 रुपये की कीमत चुकानी होगी. यानी आप 0% ब्याज पर प्रोडक्ट खरीदने की सोचते हैं, लेकिन असल में डिस्काउंट गंवा देते हैं.

छिपे हुए चार्जेज और पेनल्टी
"नो कॉस्ट EMI" में अक्सर कई तरह के अतिरिक्त खर्च छिपे होते हैं:

  • प्रोसेसिंग फीस
  • GST
  • क्रेडिट कार्ड चार्जेज

इन सभी को जोड़ने पर असल में ग्राहक उतना ही या उससे भी ज्यादा खर्च कर देता है जितना वह ब्याज में करता. इसके अलावा यदि ग्राहक समय पर EMI नहीं चुका पाता तो उस पर भारी पेनाल्टी लगाई जाती है.

कंपनियां कैसे कमाती हैं?
यह ऑफर ज्यादातर क्रेडिट कार्ड EMI या NBFC लोन के जरिए दिया जाता है. कार्ड कंपनियां और फाइनेंसर ग्राहक से ब्याज न लेने का दावा करते हैं, लेकिन उनकी कमाई रिटेलर से वसूले गए मार्जिन और ग्राहक पर डाले गए छिपे चार्जेज से होती है.

ग्राहक के लिए सही रणनीति
नो कॉस्ट EMI ऑफर पर भरोसा करने से पहले इन बातों पर जरूर ध्यान दें:

  • प्रोडक्ट की कैश प्राइस और EMI प्राइस की तुलना करें.
  • छिपे हुए चार्जेज जैसे प्रोसेसिंग फीस, GST, कार्ड चार्जेज की जांच करें.
  • देखें कि EMI लेने पर आप डिस्काउंट तो नहीं खो रहे.