भारत दौरे पर आए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन में भव्य स्वागत किया गया था. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से मुलाकात के बाद उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई. यह एक ऐसा सम्मान है जो केवल सर्वोच्च संवैधानिक पदों और विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के लिए होता है.
कब दी जाती है 21 तोपों की सलामी
भारत में 21 तोपों की सलामी को सबसे ऊंचा सैन्य-अनुष्ठानिक सम्मान माना जाता है. यह परंपरा ब्रिटिश काल से चली आ रही है और स्वतंत्रता के बाद भी इसकी गरिमा बरकरार रखी गई. आज यह सलामी राष्ट्रपति, राष्ट्रीय ध्वज और प्रमुख राजकीय समारोहों के दौरान दी जाती है. विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को भी भारत इसी सम्मान के साथ आधिकारिक स्वागत करता है.
किसको मिलेगी कितने तोपों की सलामी?
औपनिवेशिक काल में तोपों की सलामी को एक जटिल प्रोटोकॉल के रूप में स्थापित किया गया था. उस समय दी जाने वाली सलामी की संख्या किसी भी व्यक्ति या पद की प्रतिष्ठा दर्शाती थी.
14वीं सदी से शुरू हुई तोपों की सलामी की परंपरा!
ऐतिहासिक स्रोत बताते हैं कि यह प्रथा 14वीं सदी में समुद्री परंपरा से विकसित हुई. उस दौर में तोपों को एक बार चलाने के बाद दोबारा लोड करना मुश्किल था. इसलिए किसी जहाज़ के बंदरगाह में प्रवेश करते समय सभी तोपें दाग देना शांति और भरोसे का प्रतीक माना जाता था, जिससे यह संकेत मिलता था कि जहाज़ असहाय है और हमला नहीं कर सकता.
शुरुआत में जहाज़ 7 गोलों की सलामी देते थे. एक ऐसा अंक जिसके धार्मिक और ज्योतिषीय अर्थ माने जाते थे. तटीय किले इसके जवाब में प्रति एक गोली पर तीन गोल दागते थे, जिससे कुल संख्या 21 हो जाती थी. समय के साथ यही संख्या विश्वभर में सम्मान की मानक परंपरा बन गई.
भारत में कब दी जाती है 21 तोपों की सलामी?
आज के भारत में 21 तोपों की सलामी सिर्फ सबसे विशिष्ट अवसरों पर दी जाती है, जैसे राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के तुरंत बाद, गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस समारोह, विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के राजकीय स्वागत के समय, राष्ट्रीय ध्वज को सम्मान देने के अवसर पर. राष्ट्रपति पुतिन को दी गई यह सलामी भारत की ओर से सम्मान, मित्रता और राजकीय गरिमा का प्रतीक है.