
उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, एक्स पर एक वीडियो शेयर किया. यह वीडियो गुजरात के कच्छ में लगे एत मियावाकी जंगल का है. इस जंगल आकार को देखकर महिंद्रा आश्चर्य में हैं. महिंद्रा मियावाकी वृक्षारोपण तकनीक के बारे में जानते हैं, हालांकि, उन्हें यह नहीं पता था कि यह इतना बड़ा जंगल भारत के ही एक बिजनेसमैन और एंवायरमेंटलिस्ट, डॉ. आर. के. नायर ने लगाया है.
उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, "मुझे मियावाकी वन के बारे में तो पता था, लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि डॉ. नायर ने भारत में दुनिया का सबसे बड़ा ऐसा वन कैसे बनाया. जब अमेरिका ने सस्टेनेबिलिटी को अपनी प्राथमिकताओं से हटा लिया है, तो मैं बस इस बात के लिए आभारी हूं कि हमारे बीच ऐसे हीरो मौजूद हैं."
कौन हैं डॉ. आर. के. नायर
आनंद महिंद्रा ने जो वीडियो शेयर किया है, उसमें बताया गया, "यह एक मियावाकी वन है, जिसे राज्य सरकार की पर्यावरणीय पहलों और डॉ. राधाकृष्ण नायर की दृष्टि और कड़ी मेहनत से संभव बनाया गया. वे भारत के 'ग्रीन हीरो' हैं." अब सवाल है कि आखिर डॉ. आर. के. नारायण हैं कौन? आपको बता दें कि गुजरात में रहने वाले आर. के. नायर मूल रूप से केरल से ताल्लुक रखते हैं. काम की तलाश में वह पहले मुंबई और फिर गुजरात के उमरगांव पहुंच गए. यहां पर उन्होंने कपड़ों का व्यापार शुरू किया.
इसके साथ-साथ नायर सामाजिक कामों से भी जुड़े हैं. खासतौर पर वह पर्यावरण के लिए काम कर रहे हैं. नायर सालों पहले अपनी गाड़ी से कहीं जा रहे थे तो रास्ते में उन्होंने देखा कि एक चिड़िया सड़क के किनारे पर काफी शोरगुल कर रही थी. वह बार-बार पेड़ पर बने अपने घोंसले में जाती और फिर नीचे आ जाती. नायर ने जब नीचे झुककर देखा तो पाया कि उसके अंडे नीचे टूटे पड़े हैं. इस घटना ने नायर को झकझोर दिया. उस पल में उन्हें लगा कि इंसान प्रकृति के साथ कितना गलत कर रहा है और हमें इस बारे में कुछ करना चाहिए.
जापान से सीखी मियावाकी तकनीक
इस घटना के कुछ समय बाद ही उन्हें काम के चलते जापान जाना पड़ा. किस्मत से, उन्हें यहां मशहूर मियावाकी तकनीक के बारे में पता चला. उन्होंने जाना कि कैसे इस तकनीक से कम समय में सघन और सस्टेनेबल जंगल तैयार किया जा सकता है. उन्होंने जापान से यह तकनीक सीखी और भारत लौटकर उमरगांव में ही एक मियावाकी वन लगाने का फैसला किया.
उनका पहला प्रोजेक्ट सफल रहा और उसके बाद साल 2014 में उन्होंने अपने दोस्त, दीपेन जैन के साथ मिलकर एनवायरो क्रिएटर्स फाउंडेशन की शुरुआत की. इस फाउंडेशन के तहत वह देशभर में 100 से ज्यादा मियावाकी जंगल लगा चुके हैं. उन्होंने पुलवामा शहीदों के नाम पर 40 हजार पेड़ लगाए हैं. और कच्छ में लगाया उनका मियावाकी जंगल. यह वन 470 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें 3 लाख से अधिक स्वदेशी पेड़ हैं, जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा मियावाकी जंगल बनाता है.
क्या होती है मियावाकी तकनीक
जापानी वनस्पतिविज्ञानी अकीरा मियावाकी ने 1970 में मियावाकी तकनीक को ईजाद किया था. यह एक बहुत ही खास वृक्षारोपण विधि है. इस विधि या तकनीक का मुख्य उद्देश्य तेजी से घने और स्वदेशी जंगल तैयार करना है. मियावाकी तकनीक में कुछ चीजें महत्वपूर्ण हैं:
स्वदेशी पेड़ लगाना: मियावाकी तकनीक में सिर्फ स्थानीय (स्वदेशी) प्रजातियों के पेड़ लगाए जाते हैं, जो उस क्षेत्र के पर्यावरण के लिए प्राकृतिक होते हैं.
सघन रोपण: इस तकनीक में पेड़ों को बहुत करीब-करीब और सघन तरीके से रोपा जाता है, ताकि वे तेजी से बढ़ें. इससे वन बहुत घना और तेजी से विकसित होता है.
प्राकृतिक जीवन चक्र: इस तकनीक में पेड़ एक-साथ मिलकर अपना प्राकृतिक जीवन चक्र बनाते हैं. इससे पेड़ों को एक-दूसरे से सुरक्षा मिलती है और उनका विकास स्वाभाविक रूप से होता है.
जल्दी विकसित होते हैं जंगल: मियावाकी जंगल पारंपरिक तरीकों के मुकाबले 10 गुना तेज़ी से बढ़ते हैं और 30 गुना ज्यादा घने होते हैं. इससे कम समय में एक स्वस्थ और समृद्ध वन तैयार होता है.
आत्मनिर्भर जंगल: मियावाकी तकनीक से बने जंगल आत्मनिर्भर होते हैं, यानी इन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती. एक बार लगाने के बाद, इन्हें कम समय के लिए ही बाहरी देखभाल की जरूरत होती है. फिर ये अपने आप पानी और पोषक तत्वों की आपूर्ति कर लेते हैं.
बताया जा रहा है कि डॉ. आर. के. नायर का अगला लक्ष्य 2030 तक 100 करोड़ पेड़ लगाने का है, ताकि इकोसिस्टम को रिवाइव किया जा सके और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक हरित भविष्य सुरक्षित किया जा सके.