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किसी ब्रांड का 36 साइज है 'M', तो किसी के लिए है वो 'L'.. आखिर क्यों रेडिमेड फैशन इंडस्ट्री ने पाले है ऐसे नियम?

फैशन इंडस्ट्री के नहीं है मेज़रमेंट एक जैसे, जिसके कारण महिलाओं को खरीददारी करने में परेशानी होती है. वह साइज़ सलेक्शन को लेकर काफी चिंतित रहती हैं.

आज के दौर में फैशन की होड़ इतनी तेज़ है कि रेडीमेड कपड़ों की मांग लगातार बढ़ रही है. लेकिन इन कपड़ों को खरीदते समय सबसे बड़ी चुनौती होती है सही साइज चुनना. एक ही साइज 'एम' अलग-अलग ब्रांड्स में अलग-अलग माप का होता है. यही कारण है कि ग्राहक खासकर महिलाएं, अकसर उलझन और मानसिक तनाव महसूस करती हैं. इसको लेकर दैनिक भास्कर ने एक खबर छापी है. जिसमें कई मुद्दों पर बात की गई है.

एक ही साइज, अलग-अलग फिट
फैशन इंडस्ट्री का यह विरोधाभास चौंकाने वाला है. उदाहरण के लिए, एक ब्रांड का 'एम' साइज आराम से फिट हो जाता है, लेकिन दूसरे ब्रांड का वही 'एम' साइज कमर तक भी नहीं पहुंचता. इससे उपभोक्ताओं को लगता है कि शायद उनके शरीर का आकार बदल गया है, जबकि असल समस्या ब्रांड्स के साइजिंग सिस्टम की होती है.

सिंगापुर की स्टडी, चौंकाने वाले नतीजे
सिंगापुर में किए गए एक अध्ययन में 8 लोकप्रिय ब्रांड्स के साइज चार्ट्स का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया. परिणामों में सामने आया कि 'एम' साइज के नाम पर बस्ट, वेस्ट और हिप की माप में 4 से 10 सेमी तक का अंतर पाया गया. उदाहरण के लिए, यदि किसी महिला का बस्ट 90 सेमी है, तो एक ब्रांड उसे 'एम' मानता है, दूसरा 'एल' और तीसरा 'एक्सएल'. यानि, साइज अब केवल तकनीकी माप का मामला नहीं रहा, बल्कि मार्केटिंग रणनीति का हिस्सा बन गया है।

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ब्रांड्स का 'फिट मॉडल' खेल
हर ब्रांड अपने टारगेट ग्राहकों को ध्यान में रखकर 'फिट मॉडल' तय करता है. उसके आधार पर कपड़ों का डिज़ाइन और साइजिंग की जाती है. इसका अर्थ यह है कि अगर आपका शरीर उस 'आदर्श फिट मॉडल' के अनुरूप नहीं है, तो कपड़े आपको सही से फिट नहीं होंगे, चाहे आपकी माप कितनी भी सटीक क्यों न हो.

महिलाओं पर मनोवैज्ञानिक असर
इस असंगत प्रणाली का सबसे अधिक असर महिलाओं पर पड़ता है. जब उन्हें हर बार अलग साइज ट्राय करना पड़ता है, तो उनके मन में यह विचार आता है कि शायद उनका वजन बढ़ गया है या शरीर का आकार बिगड़ गया है. कई महिलाएं कहती हैं कि पहले मैं 'एस' थी, अब शायद 'एम' हो गई हूं. यह आत्मविश्वास को कमजोर करने वाली स्थिति है.

अध्ययन और सर्वेक्षणों में पाया गया कि 58% महिलाओं के पास 3 अलग-अलग साइज के कपड़े हैं. 20% महिलाएं मानती हैं कि उन्होंने अब तक 5 तक अलग-अलग साइज पहने हैं. 40% महिलाएं खरीदारी करते समय साइज को लेकर भ्रमित रहती हैं. इसका सीधा असर महिलाओं की खरीदारी के अनुभव और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर पड़ता है।

रेडीमेड कपड़ों की साइजिंग केवल तकनीकी विषय नहीं, बल्कि फैशन इंडस्ट्री की मार्केटिंग पॉलिसी बन चुका है. अलग-अलग ब्रांड्स अपने हिसाब से माप तय करते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को बार-बार भ्रम का सामना करना पड़ता है. महिलाओं को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए ज़रूरी है कि फैशन इंडस्ट्री यूनिफॉर्म साइजिंग सिस्टम अपनाए.