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धर्म

Kedarnath Yatra 2023: भक्तों के लिए खुला बाबा केदारनाथ का द्वार, जानें इस चमत्कारी धाम का पौराणिक इतिहास

केदारनाथ यात्रा
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हिमालय की चोटियों पर छह महीने तक मौन धारण करने के बाद मंगलवार को केदारनाथ धाम मुखर हो उठा. सुबह-सुबह पवित्र कपाट खोल दिए गए हैं. मंत्रोचारण के साथ बाबा का कपाट खुला तो श्रद्धालु भक्ति में लीन हो गए. हजारों भक्त बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए बाबा की नगरी में उमड़ने लगे हैं. सबसे पहले डोली को मंदिर के अंदर प्रवेश कराया गया. दर्शन के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पहुंचे. 

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भगवान केदारनाथ के मंदिर को फूलों से सजाया गया है. फूलों के साथ बेलपत्री, आम और पीपल के पत्तों की माला का भी उपयोग किया गया है. भोले के भक्तों की आस्था और उनके विश्वास को शक्ति प्रभु के भक्ति से ही मिलती है. यही वजह कि बाबा के भक्त बड़ी बेसब्री से कपाट खुलने का इंतजार करते हैं.

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परंपरा के मुताबिक 6 महीने तक ऊखीमठ के ओमकारेश्वर मंदिर में रहने के बाद भगवान शिव की पालकी केदारनाथ के लिए रवाना होती है..अब अगले 6 महीने तक बाबा केदारनाथ में ही विराजेंगे.
 

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केदारनाथ धाम शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में पांचवां स्थान रखता है और इस दिव्य और चमत्कारी स्थान का पुराणों और धर्म ग्रंथों में भी महत्व है. केदारनाथ मंदिर सिर्फ आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि देश के सदियों पुराने इतिहास का साक्षी भी है. केदारनाथ तक पहुंचने की राह कठिन जरूर है. लेकिन श्रद्धा और भक्ति के आगे कठिन राह कुछ भी नहीं.
 

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केदारनाथ धाम के पौराणिक इतिहास की बात करें, तो माना जाता है कि शिव जी यहां भैंसे के रूप में प्रकट हुए थे. पांडवों के अथक परिश्रम से उन्हें यहां शिव जी का दर्शन हुआ और वे पाप मुक्त भी हुए.  इसीलिए यहां के शिवलिंग का स्वरूप भैंसे की पीठ के समान है.

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केदार धाम मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है. बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं. इस मंदिर की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी. मन्दिर के गर्भगृह में केदारनाथ का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है, जो अनगढ़ पत्थर का है. इनकी पूजा उपासना और परिक्रमा की जाती है

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केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण और शिव पुराण दोनों में मिलता है. कहते हैं इस धाम का महत्व भगवान शंकर के कैलाश निवास के जितना है. शिव का ये धाम सभी भक्तों की आस्था का केंद्र है. यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं शिव शंकर.
 

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भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं. प्रात:काल में शिव-पिंड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराया जाता है. इसके बाद शिव-पिंड पर घी-लेपन किया जाता है. फिर धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है. शाम के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है. उन्हें विविध प्रकार से सजाया जाता है. इस दौरान भक्तगण दूर से केवल प्रभु के दर्शन ही कर सकते हैं.