

अयोध्या इस बार एक अद्भुत और ऐतिहासिक नजारे की गवाह बनेगी. दीपोत्सव पर जब श्रीराम जन्मभूमि नगरी 26 लाख दीपों की रोशनी से जगमगाएगी, तो उनमें पांच लाख ऐसे विशेष दीपक भी शामिल होंगे जो साधारण मिट्टी के नहीं, बल्कि गोमय (गाय के गोबर) और औषधीय सामग्रियों से बने होंगे.
जयपुर से पहुंचे खास दीपक
जयपुर की पांच स्वैच्छिक संस्थाओं से जुड़ी करीब 50 महिलाएं इन दीपकों को बना रही हैं. टोंक रोड स्थित पिंजरापोल गौशाला के वैदिक पादप अनुसंधान केंद्र में हर दिन हजारों दीपक तैयार किए जा रहे हैं. यहां माता रानी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं प्रतिदिन लगभग 500-500 दीपक बनाती हैं, जिससे दिनभर में करीब 5,000 दीपक तैयार हो जाते हैं.
औषधीय सामग्रियों से तैयार
इन दीपकों में गाय के गोबर के साथ जटामासी, अश्वगंधा, रीठा, देसी घी, काली मिट्टी, अतीवला, काली हल्दी, मोरिंगा पाउडर, नीम पाउडर, तुलसी और कई दुर्लभ जड़ी-बूटियों का मिश्रण किया गया है. यही वजह है कि जब ये दीपक जलेंगे तो सिर्फ रोशनी ही नहीं, बल्कि हवन सामग्री जैसी सुगंध भी फैलाएंगे. इससे वातावरण शुद्ध और सुगंधित हो जाएगा.
एक दीपक तैयार करने में लगता है करीब 2 मिनट
महिलाओं का कहना है कि एक दीपक तैयार करने में महज 1 से 1.30 मिनट का समय लगता है. यह काम न केवल उन्हें रोज़गार और आत्मनिर्भरता दे रहा है, बल्कि ग्रामीण कारीगरों, महिलाओं और गौशालाओं को भी जोड़ रहा है. यह एक प्रकार का “लोक-सहयोगी अभियान” बन चुका है, जिसने पारंपरिक कला को नई पहचान दी है.
कई बार इस्तेमाल हो सकने वाले दीपक
इन दीपकों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये हल्के हैं, गिरने पर टूटते नहीं और इन्हें बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है. जलने के बाद भी इनका महत्व खत्म नहीं होता. इन्हें मिट्टी या पौधों के पास डालने पर ये प्राकृतिक खाद (फर्टिलाइजर) का काम करते हैं. यानी ये दीपक रोशनी और सुगंध के साथ पर्यावरण को भी पोषण देंगे.
यह प्रयोग भारतीय परंपराओं में वर्णित “पंचगव्य” की भावना को साकार करता है. यह संदेश देता है कि आधुनिक दौर में भी स्वदेशी और पर्यावरण-हितैषी नवाचारों को अपनाकर त्योहारों को और खास बनाया जा सकता है.
अयोध्या की यह अनोखी दिवाली सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं होगी, बल्कि पूरे देश के लिए पर्यावरण-संवेदनशील त्योहार मनाने की प्रेरणा बनेगी. जब पांच लाख गोमय दीपक अयोध्या की धरा पर जलेंगे, तो दृश्य न केवल दिव्य और भव्य होगा, बल्कि यह भी दर्शाएगा कि भारतीय संस्कृति विज्ञान, प्रकृति और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है.